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भारतबोध ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति का संकल्प : डॉ. रवीन्द्र शुक्ल


नागपुर। ऐसा समाज जो अपनी शिक्षा और संस्कृति की विरासत को भूल जाता है, वह जड़मूलहीन हो जाता है। अपनी  परंपरा एवं संस्कृति का अवगाहन करते रहने से राष्ट्रीय एकता और स्वत्वबोध जाग्रत रहता है। विविधता को स्वीकारने वाले भारत को सम्प्रदायों, जातियों और भाषा के नाम पर बांटने का षड्यन्त्र चल रहा है। भारत को पुनः एकता के सूत्र में पिरोने के लिए भारतबोध आवश्यक है। भारतबोध से ही भारत संगठित होगा। भारत बोध ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के केंद्र में है। यह बात उत्तर प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री तथा प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ने कही। वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति : भारतबोध की परिकल्पना’ विषय पर आयोजित एक विशिष्ट व्याख्यान में  बोल रहे थे। 


डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि विश्व की कई सभ्यताएं अपनी परंपरा, संस्कृति से विच्छिन्न होने के कारण ही नष्ट हुई हैं। भारत की राष्ट्रीय एकात्मता को समाप्त करने के लिए दुष्ट शक्तियां सक्रिय हैं। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि अच्छाई यदि सतत सक्रिय नहीं हुई तो बुराई हावी हो जाती है। इसलिए सज्जनशक्ति को सक्रिय होना होगा। कार्यक्रम के अध्यक्ष मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. शामराव कोरेटी ने कहा कि भारत को मानसिक गुलामी से बाहर आना होगा। गौरवशाली विरासत का अध्ययन करके स्वाभिमान जाग्रत होता है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से भारत के इस स्व-बोध से विद्यार्थी लाभान्वित होंगे। 

प्रास्ताविक रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि  राष्ट्रीय एकता के लिए भारतबोध आवश्यक है। स्व-बोध के बिना राष्ट्र के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतबोध की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. लखेश्वर चन्द्रवंशी ने और आभार डॉ. संतोष गिरहे ने व्यक्त किया। इस अवसर पर आयकर विभाग के राजभाषा उपनिदेशक अनिल त्रिपाठी, तेजवीर सिंह, डॉ. मधुलता व्यास, टीकाराम साहू, डॉ. सुमित सिंह, अजय पांडे , कल्पना शर्मा, डॉ.कुंजन लिल्हारे, प्रा. दामोदर द्विवेद्वी, साक्षी लालवानी, प्रा. विनय उपाध्याय सहित अनेक विद्यार्थी और  शोधार्थी उपस्थित थे।
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