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इश्क़


कुछ गज़लें जो 
लिक्खि तुझ पे, 
ना समझो कि 
इश्क़ हो गया!

होशो-हवाश
जो खो बैठे,
ना समझो कि 
इश्क़ हो गया।

कुछ घूंट ही तो 
उतारी है हलक से,
ना समझो कि 
शराबी हो गया।

मेरी जान 
जो अटकी है 
इस तरह तुम पर,
ना समझो कि
दिवाना हो गया।

चार कदम 
जो चले साथ, 
ना समझो कि 
अफसाना हो गया।

मेरे हम दम,
साथी मेरे,
दिल ना जाने कैसे
बेबस हो गया,
ना समझो कि 
इश्क़ हो गया।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य
   नागपुर, महाराष्ट्र
काव्य 3001266453870013475
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