प्रेम का बंधन सदैव बना रहे : रक्षाबंधन
https://www.zeromilepress.com/2025/08/blog-post_91.html
श्रावणमास उत्सव सामाजिक जीवन का प्रतिबिंब है। रक्षाबंधन एक सामाजिक एवं धार्मिक त्यौहार है। यह पर्व सामाजिक परम्परा में सौहार्द, स्नेह, आत्मीयता, भाईचारा, पारिवारिक एकता का प्रवाह निर्माण करता है। रक्षा बंधन एक ऐसा त्योहार है जो संस्कृति को समृद्ध करता है और लोगों के दिलों को आध्यात्मिक स्पर्श से छूता है! रानी कर्णावती ने अपनी रक्षा के लिए हुमायूं को भाई मानकर जो राखी बांधी थी वह इतिहास के पन्नों पर अंकित हो गई। यह हिंदू और मुसलमानों के बीच प्रेम और एकता का जीता जागता सबूत है। यह धर्म, जाति, लिंग के भेदभाव को पार कर ‘स्त्री’ जाति की सुरक्षा के लिए एक कदम है! राष्ट्रीय एकता को पोषित और बढ़ानेवाले आयोजन समाज में सद्भावना और सद्प्रवृत्तियों को पोषित करने का काम करते हैं। बहन अपने भाई को राखी बांधती है और परोक्ष रूप से अपनी सुरक्षा की गारंटी देती है। हिंदू संस्कृति के सामाजिक मूल्यों को पोषित करनेवाली यह सामाजिक परंपरा आज भी देश में बड़े गौरव के साथ देखी जाती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत में जो एक महान भारतीय महाकाव्य है, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का एक कोना फाड़कर उनकी कलाई पर बांध दिया था। इससे भगवान कृष्ण के बीच एक बंधन बना और उन्होंने द्रौपदी की रक्षा करने का वादा किया। राखी बांधते समय बहन को कहना चाहिए, “येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्र महाबलः। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल” (मैं यह राखी आपके हाथ में वैसे ही बांध रही हूं जैसे दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने राक्षस राजा बलि के हाथ में रक्षा (राखी) बांधी थी)
रक्षाबंधन कब शुरू हुआ इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन इसके बारे में एक पौराणिक कथा है। पहले देवताओं और दानवों के युद्ध में देवता दानवों की शक्ति के सामने असहाय थे। राक्षसों के राजा वृत्रासुर ने देवताओं के राजा इंद्र को युद्ध के लिए चुनौती दी। इन्द्र अपने वज्र के साथ युद्ध करने निकले। उस समय इंद्र की विजय के लिए उनकी पत्नी शुचि ने विष्णु से प्राप्त धागा (राखी) इंद्र के हाथ में बांध दी थी। उसकी श्रध्दा थी कि उस राखी के प्रभाव से इंद्र वह युद्ध जीत जायेंगे। अंत में विश्वास सच हुआ और इंद्र विजयी हुए और उन्होंने अपना पिछला गौरव पुनः प्राप्त कर लिया। ऐसा कहा जाता है कि, इसी अवसर की याद दिलाने के लिए कलाई पर राखी बांधने की प्रथा शुरू की गई थी।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण में आनेवाली राखी पूर्णिमा नारली पूर्णिमा के दिन या लगातार दो दिन पूर्णिमा होने पर अगले दिन मनाई जाती है । इस दिन को ‘रक्षाबंधन’ कहा जाता है। इस दिन रक्षा बंधन कार्यक्रम होता है. यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट, भावुक प्रेम को याद करने का दिन है। शास्त्रों में कहा गया है कि श्रावण पूर्णिमा के दिन राखी बांधनी चाहिए। इस अनुष्ठान को ‘पवित्ररोपन’ भी कहा जाता है। यह मंगलकामना है कि भाई की उन्नति हो, भाई हमारी रक्षा करे। उत्तर भारत में यह त्यौहार राखी के नाम से प्रसिद्ध है । इस दिन बहनें अपने भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधती हैं और "भाई की लंबी उम्र और खुशियों" की कामना करती हैं। राखी बांधने का मतलब है खुद को बांधने वाले के प्यार भरे बंधन में बांधना और उस व्यक्ति की रक्षा करने की जिम्मेदारी स्वीकार करना।
राखी बांधने के इस त्यौहार के माध्यम से स्नेह और आपसी प्रेम बढ़ाने की प्रथा अस्तित्व में आई है। रक्षा बंधन हाथ में राखी को साक्षी मानकर अपनी बहन की सदैव रक्षा करने का वचन है। कुछ प्रांतों में एक नौकर अपने मालिक को, एक ब्राह्मण अपने मेजबान को, एक लड़की अपने पिता को और एक पत्नी अपने पति को राखी बांधती है। इसके पीछे भावना यह है कि आप अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति को राखी बांधें और अपनी सुरक्षा का वादा करें। रक्षाबंधन का त्यौहार भारतीय समाज में एकता और प्रेम को बढ़ावा देने के लिए राजपूतों के बीच एक परंपरा बन गया। हालाँकि आजकल यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें न केवल अपने भाई- बहन के हाथों पर राखी बांधती हैं, बल्कि उन लोगों को भी राखी बांधती हैं जिनसे उनका भाई जैसा रिश्ता होता है।
ग्रामीण उत्तर भारत में जहां कई गांवों में बहिर्विवाह प्रचलित है, बड़ी संख्या में विवाहित हिंदू महिलाएं त्योहार के लिए हर साल अपने माता-पिता के घर लौटती हैं। उनके भाई, जो आम तौर पर माता-पिता के साथ या उनके पास रहते हैं, कभी-कभी उन्हें वापस लाने के लिए अपनी बहनों के विवाहित घरों में जाते हैं। कई युवा विवाहित महिलाएं कुछ सप्ताह पहले ही अपने जन्म गृह में पहुंच जाती हैं और समारोह तक रुकती हैं। भाई बहन के ससुर और माहेर के बीच आजीवन मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं। शहरी भारत में जहां परिवार तेजी से अलग हो रहे हैं, यह त्योहार अभी भी बहुत लोकप्रिय है, भले ही यह अधिक प्रतीकात्मक हो गया हो। इस त्योहार से जुड़े अनुष्ठान उनके पारंपरिक क्षेत्रों से कहीं आगे तक फैल गए हैं। प्रौद्योगिकी, प्रवास, फिल्म, सामाजिक संपर्क और हिंदू धर्म के राजनीतिक प्रचार द्वारा त्योहार का स्वरूप बदला जा रहा है। असंबंधित पुरुषों और महिलाओं के बीच सहमति से संबंधों की परंपरा भी बदल रही है। इसके लिए जाति और वर्ग से ऊपर उठकर, हिंदू-मुसलमान का भेद भूलकर राखी बांधी जा रही है।
जैन परंपरा में सात सौ मुनियों के दर्शन की लालसा को दूर करने का कार्य इस पर्व में हुआ। रक्षाबंधन के दिन जैन धर्मावलंबी जैन मंदिर में जाकर अभिषेक-पूजन करते हैं और पंडित-पुजारियों के हाथों राखी बंधवाकर यह त्योहार मनाते हैं। यह धार्मिक संरक्षण का एक कण है! पहले धार्मिक और फिर सामाजिक दायित्व पूरे किये जाते हैं। यह मातृभाव के माध्यम से पर्वधर्म और धर्मवलय से जुड़ा है। संस्कृति और धर्म समर्पण की भावना को बढ़ाते हैं। श्रमण संस्कृति में रक्षाबंधन की एक अनूठी विशेषता है। ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना और संस्कृति के प्रति अत्यधिक सम्मान को उच्च स्थान दिया गया है। सामाजिक दृष्टि से रक्षाबंधन प्रेम और भाईचारे का त्योहार है। पर्व के कारण भाईचारा और प्रेम की भावना पढाई जाती है। समाज और धर्म से श्रेष्ठ है राष्ट्रधर्म! इसलिए आज राष्ट्र के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए सामाजिक और धार्मिक अस्तित्व को बचाए रखने की जरूरत है। यह बड़ी जिम्मेदारी आज हम पर है, इसे ईमानदारी के साथ करना जरूरी है।
दिल्ली पर बादशाह आलमगीर का शासन था। उसके मुखिया ने सम्राट की हत्या की साजिश रची और शव को नदी में फेंक दिया। एक महिला ने इसे देख लिया, शव को बहने से बचाने के लिए उसने शव को पानी से बाहर निकाला और शव के पास तब तक बैठी रही जब तक शव वाला नहीं आ गया। काफी समय के बाद सैनिक सम्राट की तलाश में वहां आये। राजा के बेटे शाहआलम ने हिंदू महिला को धन्यवाद दिया। उसे अपनी बहन माना, वह हिंदू महिला हर साल शाहआलम को राखी बांधने लगी। इस प्रथा को अकबर शाह और बहादुर शाह ने जारी रखा, इसका उल्लेख इतिहास में मिलता है। यह मुगल साम्राज्य द्वारा पवित्र माना जानेवाला एकमात्र हिंदू त्योहार है।
इस श्रावण पूर्णिमा को ‘पोवती पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूती धागे की नवसुति (नौ धागों का जोड़ा) से आठ-बारह या चौबीस गांठें बांधी जाती हैं और ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ओंकार, सूर्य आदि देवताओं का आह्वान करने के बाद इन पोवतियों को पहले भगवान के पास ले जाया जाता है और फिर इसी तरह पोवती परिवार के लोगों की कलाइयों पर बांधी जाती है। रक्षाबंधन के अवसर पर भाइयों-बहनों और सभी भारतीयों को इस नाजुक अवसर पर राखी के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा करने, ओलंपिक एथलीटों को शुभकामनाएं देने और नारी हत्या को रोकने का संकल्प लेना चाहिए। रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर सभी भाइयों और बहनों को हार्दिक शुभकामनाएं!
- प्रविण बागडे
नागपुर, महाराष्ट्र
भ्रमणध्वनी : 9923620919