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हां! मैं मधुशाला जाता हूं


हां! मैं मधुशाला जाता हूं
अपनी सुधा मिटाने को
 मृगतृष्णा को पाने को
 थोड़ा सा बुदबुदाने को 
मन को अपने समझाने को 
हां! मैं मधुशाला जाता हूं ²

कड़वी बातें सताती है
हंसी की गुंजन नहीं सुहाती है 
दिल को अपने बहलाने को 
नई ऊर्जा फिर से पाने को 
हां! मैं मधुशाला जाता हूं ²

नादान नहीं हूं पागल नहीं हूं 
ना मैं भूला भटका हूं 
सभी की बातें सुनता हूं 
जख्म मै दिल में रखता हूं
खुद अपने मन की सुनने को
 हां! मैं मधुशाला जाता हूं ²

घर बाहर दुनियादारी से 
गमो खुशी और जिम्मेदारी से
थोड़ी देर ² थोड़ी राहत पाने को
 केवल पुरुष नहीं इंसान हूं मैं 
यही खुद को समझने को
हां! मैं मधुशाला जाता हूं ²

गिरकर रोज संभालता हूं
फिक्र को घुट - घुट पीता हूं 
हर दिन नई आशा जगाता हूं 
दिन भर दूसरों की खातिर लड़ता हूं
सब सहकर भी खुश रहता हूं 
क्योंकि मैं मधुशाला जाता हूं 
हां! मैं मधुशाला जाता हूं - 2

- मेघा अग्रवाल, 
नागपुर, महाराष्ट्र
काव्य 3844571170507622950
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