एशिया का सबसे बड़ा डोलमेन (मांडवगोटा) हीरापुर में
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हजारों साल पुरानी धरोहर उपेक्षा की शिकार!
चंद्रपुर जिले की चिमूर तहसील में स्थित हीरापुर गांव आज भी अपने भीतर हजारों वर्ष पुराना इतिहास समेटे हुए है। यहां स्थित 'हीरापुर मेगालिथिक डोलमेन कॉम्प्लेक्स' (Hirapur Megalithic Dolmen Complex) एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जो नागपुर से लगभग 92 किलोमीटर दक्षिण– पूर्व में, पेरजगढ़– नागभीड़ की पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक युग तक की विभिन्न पुरातात्विक विरासतों को समेटे हुए है।
- इतिहास और पुरातात्विक महत्व
सन् 1963 से लेकर 2009–10 के बीच भारतीय पुरातत्व विभाग और बाद में 2010–13 में डेक्कन कॉलेज, पुणे तथा स्थानीय 'हरित पर्यावरण मंडल, शंकरपुर' द्वारा किए गए अन्वेषणों में यहां से दो दर्जन से अधिक मेगालिथिक समाधियों (burials) के साक्ष्य प्राप्त हुए। इनमें 'डबल चेंबरड डोलमेन' (Double Chambered Dolmen) संरचनाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
स्थानीय भाषा में इन विशाल शिलाखंडों की संरचना को 'मांडवगोटा' कहा जाता है क्योंकि इसका रूप किसी मंडप (पंडाल) जैसा प्रतीत होता है। ये संरचनाएं बलुआ पत्थर और लेटराइट पत्थरों से निर्मित हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह डोलमेन लगभग 10,000 वर्ष पुराना है और अपने प्रकार में एशिया का सबसे बड़ा डोलमेन माना जाता है।
माना जाता है कि उस समय के समाज में मानव अस्थियों को पहले इन कक्षों में दफनाया जाता था। कुछ वर्ष पश्चात् उन अस्थियों को निकालकर पूजा– अर्चना की जाती थी और फिर से उन्हें यहीं पुनः दफन कर दिया जाता था। इस प्रकार यह केवल समाधि स्थल ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक–धार्मिक केंद्र भी रहा होगा।
- संरचना और खोज
डोलमेन परिसर में खुदाई के दौरान आठ छोटी तांबे की मुद्राएं, कांच की मनके, ईंटों से बने प्लेटफॉर्म तथा मृतक कक्षों से विविध सिरेमिक सामग्री प्राप्त हुई है। इनसे पता चलता है कि यह स्थल केवल समाधि के लिए ही नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित सांस्कृतिक परिसर था।
- वर्तमान स्थिति – उपेक्षा की शिकार विरासत
इतिहास की इतनी मूल्यवान धरोहर आज उपेक्षा की स्थिति में है। परिसर में घास और झाड़ियां उग आई हैं, रास्ते टूटे– फूटे हैं, कोई उचित संकेतक बोर्ड नहीं है और न ही वहां नियमित साफ– सफाई या रखरखाव की व्यवस्था। दूर से यह स्थल दिखाई भी नहीं देता। स्थानीय लोगों में भी इसकी जानकारी सीमित है, और प्रशासनिक स्तर पर भी इसे वह महत्त्व नहीं मिला, जिसका यह हकदार है।
- विकास और पर्यटन की संभावनाएं
अगर सरकार और पुरातत्व विभाग इस ओर गंभीरता से ध्यान दें, तो हीरापुर को विश्वस्तरीय पर्यटन मानचित्र पर लाया जा सकता है।
यहां एक विरासत पथ (Heritage Trail) तैयार किया जा सकता है, जो नागपुर– चंद्रपुर के सांस्कृतिक पर्यटन सर्किट से जोड़ा जाए।
उचित सूचना बोर्ड, सड़कों की मरम्मत, प्रकाश व्यवस्था, व्याख्या केंद्र (Interpretation Centre) और गाइड सुविधा से यह स्थल एक जीवंत ऐतिहासिक आकर्षण बन सकता है।
स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित कर गाइड और पर्यटक सहायता केंद्र विकसित किए जा सकते हैं, जिससे रोजगार के अवसर भी बनेंगे।
पुरातात्विक दृष्टि से यह स्थल न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश में अध्ययन और शोध का केंद्र बन सकता है।
- राज्य व केंद्र सरकार की भूमिका आवश्यक
इतना प्राचीन और विशिष्ट मेगालिथिक डोलमेन स्थल केवल महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश की धरोहर है। इसकी जानकारी स्कूल–कॉलेजों में, पर्यटन विभाग के प्रचार माध्यमों में और मीडिया के जरिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
यदि सरकार इस स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित कर, संरक्षण और पर्यटन विकास की ठोस योजना बनाए, तो हीरापुर गांव न केवल ऐतिहासिक मानचित्र पर उभरेगा, बल्कि भारत की प्राचीन सभ्यता के एक गौरवशाली अध्याय को भी नई पहचान मिलेगी।
- डॉ. प्रवीण डबली
वरिष्ठ पत्रकार, नागपुर, महाराष्ट्र
9422125656 / 7020343428


