दृढ़ संकल्प : महिला क्रिकेट विश्व कप - 2025
https://www.zeromilepress.com/2025/11/2025.html
खेल कुशलता, मानसिक दृढ़ता, प्रार्थनाओं का संगम
भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने महिला क्रिकेट विश्व कप 2025 में ऐतिहासिक जीत हासिल की, जिससे देश भर में गर्व और उत्साह की लहर दौड़ गई है। मुंबई के डी वाय पाटिल स्टेडियम में 35,000 दर्शकों से खचाखच भरे स्टैंड्स के सामने एवं सोशल मीडिया पर 40 करोड़ दर्शकों द्वारा सीधा प्रसारण के माध्यम से देखते हुए फाइनल मुकाबले में भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर पहली बार विश्व कप का खिताब अपने नाम किया। इस बार हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में भारतीय टीम खेल रही थी, जो कि इस टूर्नामेंट की दो सबसे उम्रदराज कप्तान एक न्यूज़ीलैंड की सोफी डिवाइन जिन्होने अपना अंतिम विश्व कप खेलकर बिना विश्व कप खिताब जीते इस खेल से बिदाई ले चुकी हैं, दूसरी भारतीय कप्तान हरमनप्रीत कौर थी, जिनके पास उम्र के 36 वे वर्ष में संभवतः विश्व कप जीतने का यह अंतिम अवसर था, कारण चार साल बाद होने वाले विश्व कप में उम्र के 40 साल में वह खेल पाएंगी यह संदिग्ध ही लगता है।
आइए, महीने भर से अधिक चले इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम के सफ़र की हम सभी प्रमुख पहलुओं से समीक्षा करने पर पाते हैं कि इस टूर्नामेंट में उभरकर जो प्रमुख तीन बातें आई हैं - 1) खेल कुशलता ( तकनीक ), 2) मानसिक दृढ़ता और 3) प्रार्थना ( आशीर्वाद)।
टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले सभी देशों के खिलाडिय़ों में तकनीक की कोई कमी नहीं है, बेटवुमन नित्य नए शॉट्स ईजाद करती नज़र आ रही हैं। भारतीय महिला टीम ने लीग चरण में अपने प्रारंभिक आसान मैचेस से साधारण शुरुआत की एवं सभी खेल प्रेमियों को यह उम्मीद थी कि जैसे - जैसे कठिन मैच आते जाएंगे टीम अपने खेल में सुधार लाती जाएगी और ऐसा देखने में भी आया। भारतीय महिलाओ ने अपने खेल के स्तर को ऊंचा अवश्य किया लेकिन वे अच्छा खेलकर भी मैच को अपने पक्ष में हसीन अंत तक पहुंचाने में सफ़ल नहीं हो सकी। हम प्रमुख टीमों - दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से अंतिम क्षणों में खेल के दबाव को सहन करने में अक्षम रहें और तीनों मैच जो कि हम जीत सकते थे, हारते चले गए। लगातार तीन हार के बाद कोच अमोल मुजमदार एवं सहायक स्टॉफ की जिम्मेदारी काफ़ी बढ़ चुकी थी। टीम वही गलतियां दोहरा रही थी जिनकी वजह से हम पूर्व में 2005 और 2017 का विश्व कप फ़ाइनल हारे थे।
कोच अमोल मुजमदार ने इंग्लैंड से मुकाबला हारने के पश्चात टीम को प्रोत्साहित किया लेकिन कुछ आक्रमक अंदाज में। एक प्रशिक्षक की यह महत्ती जिम्मेदारी बनती है और मैदान से बाहर रहकर खेल समझने का नज़रिया अलग रहता है, उसे खेलना नहीं होता, वह तो परिस्थिति समझकर एवं अपने खिलाड़ियों की क्षमता अनुसार रणनीति बनाता है, विरोधी टीम के चक्रव्यूह को समझकर उसे भेदने की योजना अपने खिलाड़ियों को समझाता है। उन्होंने कहा कि हमारी तकनीक में कोई कमी नहीं है ( बीसीसीआई ने खिलाड़ियों के खेल का स्तर सुधारने हेतू एवं अन्य सुविधाओं को उपलब्ध करवाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है) , अर्थात् हुनर की कोई कमी नहीं है, एक टीम के रूप में हम काफी सशक्त हैं, कमी है तो क्षमता रहते हुए भी जीत का मादा रखने की कमी, मानसिक दृढ़ता की चूक।
हालांकि इस टीम के आधे अर्थात 8 खिलाड़ी पहली बार विश्व कप खेल रहे थे, टीम युवा एवं अनुभव का मिश्रण थी, अधिकतर लड़कियां साधारण परिवेश से निकलकर आई हुई हैं, मानसिक दृढ़ता रखने में अनुभव और परिवेश दोनों आवश्यक है। कोच, सहायक स्टॉफ एवं वरिष्ठ खिलाड़ियों ने मिलकर काम किया और सेमीफाइनल मैच खेलने सात बार की विश्व विजेता और प्रतियोगिता की अब तक अपराजित टीम आस्ट्रेलिया के खिलाफ मैदान में उतरी। ऑस्ट्रेलिया ने अपनी मजबूत बल्लेबाजी की बदौलत 339 रनों का का जीत का भव्य लक्ष्य भारत के सामने रखा था, महिला एक दिवसीय मैच के इतिहास में इतने विशाल लक्ष्य का सफलतम पीछा किसी भी टीम ने अब तक नहीं किया था।
भारत की बल्लेबाजी शुरू होने से पहले कोच ने बस इतना ही कहा था, " कोई मैच बड़ा नहीं होता, हमें बस अंत तक डटे रहना है," और साथ ही ड्रेसिंग रूम के बोर्ड पर एक लाइन लिख दी थी - हमें ऑस्ट्रेलिया से मात्र एक रन ज्यादा बनाना है।
टीम के सामूहिक प्रयासों से जिसमें विशेष योगदान जेमिमा रोड्रिग्स एवं हरमनप्रीत कौर का रहा हमने अंत में आसानी से बाज़ी अपने हक में कर ली, हम 7 बार की विश्वविजेता , और 4 बार की उपविजेता को हराकर फाइनल में प्रवेश कर चुके थे। जो व्यक्ति अपनी गलतियों को समझकर उसे दूर करता है प्रकृति भी उसे सहयोग करती है, गलतियों को मिटाया तो नहीं जा सकता लेकिन उसे सुधारा अवश्य जा सकता है। अलग अलग चैनलों पर कमेंट्री कर रहीं हमारी पूर्व महिला क्रिकेट खिलाड़ी - अंजुम चोपड़ा, झूलन गोस्वामी, वेदा कृष्णमूर्ति, मिताली राज, पूनम यादव सहित दर्शक दीर्घा से टीम का उत्साह बढ़ाती भारतीय महिला क्रिकेट की दिव्य चरित्र - डायना एड्लजी इस बात के प्रत्यक्ष साक्षी बनें कि जिन गलतियों की वजह से हम पूर्व में विश्व कप फ़ाइनल में हारे थे इस टीम ने आज उन गलतियों से सबक लेकर मैदान पर हर क्षेत्र में दमदार ऑस्ट्रेलिया को परास्त कर दिया था। हमने अपनी मानसिक दृढ़ता को मजबूत किया, विश्व कप सेमीफाइनल मैच का दबाव मस्तिष्क पर हावी नहीं होने दिया, और अपनी समृद्ध तकनीक और मानसिक दृढ़ता की बदौलत ऑस्ट्रेलिया के 338 रनों से 1 रन ज्यादा अर्थात् 339 रन 9 गेंद शेष रहते बना लिए थे, और ड्रेसिंग रूम के बोर्ड पर लिखे अपने कोच की लाइन को सार्थक कर दिखाया। कोच अमोल मुजमदार ने श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की इस बात - ‘चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊं, गीदड़ से मैं शेर लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं .. इस कथन को सार्थक कर दिखाया।
फ़ाइनल की तैयारी -
किसी की पोती, किसी की बेटी, किसी की बहन तो किसी के गांव की रोशनी विश्व कप के फ़ाइनल में पहुंच चुकी थी। फाइनल और वह भी अपने देश में, अब भला कौन शांत रह सकता था, ऋचा घोष, हरमनप्रीत कौर, एवं कुछ स्थानीय खिलाड़ियों के माता - पिता, परिजन तो अपनी बेटियों और टीम को उत्साहित करने के लिए 2 - 3 मैच से ही स्टेडियम में उपस्थित थे। क्रांति गौड़ के भाई मयंक मध्यप्रदेश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र घुवारा से नगर पंचायत प्रमुख सहित कुल 17 लोग टेम्पो ट्रैवलर्स से 24 घंटे की लंबी यात्रा कर रविवार सुबह मुंबई पहुंच गए थे। दीप्ति शर्मा के भाई सुमित आगरा से रेल यात्रा कर इस उम्मीद के साथ मुंबई आए थे कि इतने वर्षों का सूखा है, उसे आज मिटाना है। प्रकृति भी इस सूखे को मिटाने के शुभ संकेत कर रही थी, उसने तो मैच प्रारम्भ होने के पूर्व बारिश कर मैदान गीला कर यह संकेत कर दिया था कि, सुमित भाई अब सूखा समाप्त हो गया है, और भारत विश्व विजेता बनने जा रहा है - होई शगुन शुभ सुंदर नाना .... ।
शेफाली वर्मा के पिता अपने शहर रोहतक से कुलदेवी मनसा देवी, दहमी गांव, बहरोड़ ( राजस्थान) की 300 कि.मी. की यात्रा एक सप्ताह में दो बार करके लौटे थे, और यह प्रार्थना भी करके आए थे कि विश्व विजेता बनने के पश्चात अपनी बेटी शेफाली के साथ पुनः आऊंगा। रेणुका सिंह ठाकुर के भाई विनोद जो कि हिमाचल प्रदेश के अपने पैतृक गांव परसा जो कि सेब के लिए अपनी पहचान रखता है जल प्रदाय विभाग में कार्यरत हैं, यह निश्चिंत थे कि आज रविवार है, काम की कोई इमर्जेंसी नहीं रहेगी, सुबह अपने ईष्ट की प्रार्थना के लिए मंदिर गए तो लगभग पूरा गांव उस प्रार्थना में शामिल था। सेब के लिए अपनी पहचान बनाने वाला गांव अपने गांव की बेटी के नाम से पहचान स्थापित करने की प्रार्थना कर रहा था, रेणुका सिंह अपने पिता के सपनों को जीवंत रख कर खेल रही थी, उनके स्वर्गीय पिता की इच्छा थी कि उनका बेटा या बेटी देश के लिए क्रिकेट खेले।
जिन खिलाड़ियों के परिजन मुंबई में थे वो तो लगातार अपने - अपने प्रार्थना केंद्रों का दौरा करते नहीं थक रहे थे। हरमनप्रीत कौर के कोच कमलदीश सिंग सोढ़ी जो कि अपने पुत्र से मिलने ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में हैं, वह भी गुरुद्वारा जाकर टीम की जीत के लिए अरदास कर रहे थे। इन सभी के साथ पूरा देश प्रार्थना कर रहा था, कोई यज्ञ करवा था तो कोई और कुछ। हमारी खिलाड़ियों के पुरुषार्थ को ईश्वरीय कृपा का साथ, यह जीवन में आवश्यक होता है। प्रार्थना जीवन संघर्ष में ऊर्जा और आशा देती है तथा कठिन समय में मार्गदर्शन का स्तोत्र बनती है। इन सभी के बीच कोच अपने सहयोगियों के साथ मैदान पर एवं मैदान के बाहर विभिन्न तरीकों से खिलाड़ियों की कुशलता पर तो काम कर ही रहे थे लेकिन साथ ही साथ टीम के लिए विभिन्न योजनाओं का परीक्षण ( Trial) भी करवा रहे थे। टीम अपने प्लान ए, प्लान बी एवं प्लान सी पर कार्य कर रही थी।
2005 एवं 2017 की हार का इतिहास बदलाव के लिए पुकार रहा था, खिलाड़ी तैयार थे, परिजन प्रार्थना कर रहे थे, समर्थक आशावादी थे, लेकिन मैच का समय शीघ्र आने का नाम ही नहीं ले रहा था। बारिश के चलते 2 घंटे विलंब से शुरू हुए मैच में भारतीय टीम ने टॉस हारकर प्रथम बल्लेबाजी करते हुए 298 रन बनाएं जो कि स्पर्धात्मक स्कोर अवश्य था लेकिन सुरक्षित स्कोर से 30 रन कम लग रहे थे। भारतीय टीम यदि अपने आरंभिक लय को बनाए रखती तो यह संभव था। भारतीय टीम जब बोलिंग करने आई उस समय सभी खिलाड़ी उत्साहित एवं सकारात्मक अवश्य दिखाई दे रहे थे, लेकिन इन 30 कम बने रनों का एहसास उनके चेहरे पर परिलक्षित हो रहा था।
दक्षिण अफ्रीका टीम के पहले दो विकेट गिरने के पश्चात उनके बल्लेबाज लय प्राप्त करते नज़र आ रहे थे, पिच से कोई सहायता या मूवमेंट नहीं मिल रहा था, तब कप्तान हरमनप्रीत कौर ने गेंद शेफाली वर्मा को थमा दी, सभी दर्शकों और व्यूवर्स को कप्तान के इस कदम से थोड़ा आश्चर्य अवश्य हुआ होगा। शेफाली ने प्राप्त अतिरिक्त जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निर्वाह की और अपने प्रथम दो आवरों में लूस और काप जैसे महत्वपूर्ण बल्लेबाजों को पवेलियन वापिस भिजवा दिया, साथ ही उनका बोलिंग एवरेज भी काफ़ी किफायती रहा। यह मैच में भारत के पक्ष में प्रथम टर्निग पॉइंट था, क्लाइमैक्स आना अभी शेष था। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि टीम अपने विभिन्न गेम प्लान पर काम कर रही थी, हमारा बोलिंग पक्ष कुछ कमजोर अवश्य है, जिसके चलते हम छः बोलर रखकर खेलना तय करने के बावजूद भी अभ्यास के दौरान नेट्स पर शेफाली वर्मा से काफ़ी बोलिंग प्रैक्टिस करवाई गई थी। योजना को सफलता मिलती देखकर टीम मैनेजमेंट प्रसन्न था, एवं जब टीम की प्रमुख गेंदबाज राधा यादव आज लय में नहीं थी तब उसके ओवरों को भी शेफाली पूर्ण कर रही थी। मैच समाप्ति पर दक्षिण अफ्रीका की कप्तान वालफर्ट ने शेफाली वर्मा के सिंपल बोलिंग एक्शन को नहीं समझ पाने की अपनी टीम की कमजोरी को हार के प्रमुख कारणों में से एक बताया।
41वे ओवर तक मैच झुकता लग रहा था लेकिन दक्षिण अफ्रीका के पक्ष में 1- 2 अच्छे ओवर से मैच पलट भी सकता था, और वर्तमान समय में ऐसा होते हमने अनेकों बार देखा है। दक्षिण अफ्रीकी टीम भी मानसिक रूप से काफी परिपक्व थी, वह अपने साथ खेल मनो प्रेरक ( Mentor) मंडला माशिम्बी को साथ लेकर आई थी, बाज़ी पलटी जा सकती थी। जेमिमा जैसे सुरक्षित हाथों से कैच छुटना दर्शा रहा था कि दबाव तो भारतीय खेमें मे भी था। कप्तान वूलफोर्ट चांसलेस शतक लगाकर क्रीज़ पर थी, सेमीफाइनल मैच में इंग्लैंड के खिलाफ वे चमत्कार कर चुकी थी, उनके बल्ले पर गेंद ठीक तरह से आ रही थी, और यह निश्चिंत था कि अब वे बड़े शॉट की ओर जाएंगी और उन्होनें ऐसा किया भी। दीप्ति शर्मा जो कि प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट रही वह भी अपने अनुभव और कोचिंग के समय दिए टिप्स के आधार पर तैयार थी, उनकी ऑफ और मिडल स्टंप की गेंद , स्टंप की लाईन की सामान्य उछाल वाली गेंद थी, जिसे उन्होनें थोड़ा रोककर फेंका था, जिसे नियमित गति की गेंद समझकर वुल्फर्ट ने डीप मिड विकेट के बाहर मारने के लिए उठाया, गेंद थोड़ा रुककर आने की वजह से दूर जाने की बजाए ज्यादा ऊंची चली गई और अमनज्योत कौर ने अपने आगे की ओर तेज भागकर गेंद को सही ऊंचाई पर अपने दोनों हाथों से लपक लिया, लेकिन यह क्या, अचानक गेंद हाथों से छटककर खिसकी, अमनज्योत की निगाहें लगातार गेंद पर बनी हुईं थी उसने दोनों हाथों से पुनः प्रयास किया, गेंद हाथों में आकर पुनः उछल गई, अब तीसरे प्रयास में उन्होंने अपने एक हाथ में गेंद को थाम लिया, यह कैच पकड़ने से ज्यादा मैच पकड़ना हुआ। यह सब पलक झपकते हुए हुआ था, और यही मैच का क्लाइमैक्स साबित हुआ।
अमनज्योत कौर मोहाली, चंडीगढ़ से आती हैं, इनके यहां तक पहुंचने में इनकी दादी भगवंती का प्रमुख योगदान रहा है। विश्व कप के प्रारम्भ अर्थात सितम्बर में ही इनकी दादी को हार्ट अटैक आ गया था, परिवार ने पूरे टूर्नामेंट में इस बात को अमनज्योत से छुपाए रखा था, उसे शक ना हो इसके लिए अलग - अलग समय अलग बहाने बताकर उन्हें समझा दिया जाता। एक बार बहुत ज़िद करने पर वीडियो कॉल पर बात करवा दी थी और सभी कुछ सामान्य है ऐसी स्थिति संभाल ली गई। जीवन में कोई भी काम करते समय एकाग्रता कितना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं इसे अमनज्योत ने फ़ाइनल मैच में दो बार सिद्ध किया। दक्षिण अफ्रीका का प्रथम विकेट ओपनर ब्रिट्स को रन आउट करने के लिए स्टंप पर सीधा थ्रो एवं इतने कठिन बनते कैच को थामना एकाग्रता से ही संभव था। एक खिलाड़ी का जीवन बनाने के लिए परिवार को और खिलाड़ी दोनों को अनेकों त्याग करने पड़ते हैं, भावनाओं से ऊपर उठकर निर्णय लेने पड़ते हैं, यह दादी की बीमारी छुपाना उसकी लय तथा एकाग्रता को बनाए रखने के लिए लिया गया निर्णय था। इस टीम के अनेकों खिलाड़ियों एवं परिवार के त्याग के अनेक किस्से हैं, जिसकी चर्चा हम फिर कभी करेगें। विश्व कप जीतने के बाद अमनज्योत को दादीजी के हार्ट अटैक की जानकारी दी गई।
प्लेयर ऑफ द मैच रही शेफाली वर्मा का योगदान बैटिंग और बोलिंग दोनों में महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। शेफाली को बैटिंग के दौरान अपने शॉट्स सिलेक्शन पर पुनः कार्य करना होगा, फाइनल मैच में जिस शॉट पर वह आउट हुई, उसकी पहली बॉल पर भी उन्होंने ठीक वैसा ही मिस टाईम शॉट खेला था जो फील्डर से थोड़ा पहले गिरा था, फिर दूसरी गेंद पर उसी शॉट को दोहराना समझदारी नहीं है, जीवन सभी को तीसरा अवसर नहीं देता। उनके इसी तरह विकेट फेंकने के चलते ही टीम से उन्हें आराम दिया गया था, वह तो भाग्यशाली हैं कि प्रतिका रावल के पैर में चोट की वजह से शेफाली को मौका मिला। शेफाली इस तरह विकेट नहीं फेंकती तो भारतीय टीम 30+ रन और बना सकती थी। आज टीम में रहने हेतू स्पर्धा अत्यंत कड़ी है, आपकी लापरवाही दूसरे को अवसर हेतू आमंत्रण देने का मौका ही सिद्ध होगा।
प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट दीप्ति शर्मा अपने खेल के स्तर को बहुत ऊंचाईयों तक ले जाने में सफल रही हैं। परिस्थिति अनुसार वह किसी भी क्रमांक पर बैटिंग कर सकती है, अपने बैटिंग करने के अंदाज को परिस्थितियों अनुसार करने की क्षमता, किफायती और विकेट लेने वाली गेंदबाज़ी और इन सबसे ऊपर अपने कप्तान को लगातार सहयोग, ऐसी बहुआयामी प्रतिभा की धनी बन चुकी हैं। कुछ माह पूर्व वृंदावन में संत श्री प्रेमानंद महाराज जी से मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात इनके खेल का स्तर अधिक ऊंचा हुआ है, टूर्नामेंट में कुल 215 रन और 22 विकेट उनके नाम रहे, और फ़ाइनल मैच का उनका योगदान भी शेफाली वर्मा के समकक्ष ही था।
यह महिला क्रिकेट टीम केवल खेल के मैदान में ही बेहतर नहीं हुई हैं, यह तो कैमरे का सामना करने एवं मीडिया के प्रश्नों का उत्तर देने में भी उतनी ही परिपक्व हुई हैं। मैच के प्रारम्भ और समाप्ति पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुशलता पूर्वक बातचीत, सेमीफाइनल मैच में जेमिमा रोड्रिग्स का बयान, " तुम खड़े रहो, मैं ( ईश्वर) तुम्हारे लिए खड़ा रहूंगा।" फाइनल मैच में अमनज्योत कौर का उस क्लाइमैक्स कैच पकड़ने पर दिया जवाब, " जीवन कभी दोबारा अवसर नहीं प्रदान करता, लेकिन जिंदगी ने आज मुझे तीसरा अवसर भी दिया, और मैने उसे एक हाथ से थाम लिया। उपरोक्त दोनों जवाब आपकी दृढ़ता और दार्शनिकता दोनों का महत्व सिद्ध करता है। प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुने जाने के पश्चात दीप्ति शर्मा का बयान, विश्व कप हाथ में थामे कप्तान हरमनप्रीत कौर का बयान सभी आपकी कुशलता, परिश्रम, एकजुटता और प्रार्थना, को प्रमाणित करता है। यह प्रमाणित करता है कि हमारी बेटियां भय से अब काफ़ी आगे निकल चुकी हैं। विश्व कप जीतने के पश्चात कप्तान हरमनप्रीत कौर द्वारा अपने कोच अमोल मुजमदार ( गुरु) के चरण स्पर्श करना हमारी महान संस्कृती को दर्शाता है साथ ही साथ उसकी रक्षा करता हुआ भी दिखाई देता है।
पूरे टूर्नामेंट में खिलाड़ियों का एक - दूसरे को सपोर्ट करना, जेमिमा रोड्रिग्स को उसके कठिन समय से बाहर निकालने में रुम मेट्स अरुधंति रेड्डी की महत्वपूर्ण भूमिका रही, यह दर्शाता हैं कि पूरी टीम एक परिवार बन चुकी है। यदि हम मैच दर मैच समीक्षा करते हैं तो यह पाते हैं कि प्रत्येक मैच में कोई अलग 2 या 3 खिलाड़ियों ने विशेष योगदान किया, अर्थात टीम के सभी खिलाड़ी क्षमता रखते है। डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम कहते हैं , " पहाड़ों के किनारे शिखर का निर्माण करते हैं।" प्रत्येक खिलाड़ी एक किनारे के रूप में स्थापित रहकर विश्व कप ट्रॉफी रूपी शिखर का निर्माण करना ही हुआ है। विश्व कप जीतने के बाद मध्य रात्री में मैदान और मैदान के बाहर जीत का जश्न मनाने का अंदाज, यह सभी कुछ इस बात को प्रमाणित करता है कि खेल से हमारा चंहुमुखी विकास होता है।
इस टीम की विशेष बात यह रही कि पूरी टीम मैदान में डटी रही और एक दूसरे को प्रोत्साहित करते हुए देश के लिए एकजुटता के साथ खेली। स्टेडियम में बी सी सी आई के अधिकारी, क्रिकेट लीजेंड सचिन तेंदुलकर, वी वी एस लक्ष्मण, रोहित शर्मा सपत्नीक, नीता अंबानी सहित अनेक दिग्गजों का उपस्थित रहना भी टीम के उत्साहवर्धन के साथ गौरवान्वित करने वाला सिद्ध होता है। खेल , मैदान पर खेलकर और ड्रेसिंग रूम में योजना बनाकर ही जीता जाता है वहीं हमारी प्रार्थनाएं हमें आशा प्रदान करती हैं। हमारा जीवन भी इसी तरह का होता है, हमारा कार्यक्षेत्र यह खेल का मैदान है, हमारी आपसी मंत्रणाएं, हमारी नीतियां बनाना हमारा ड्रेसिंग रूम है और हमारी ईश्वर के प्रति आराधना, ध्यान, आहार - विहार नियंत्रण हमारी प्रार्थनाएं हैं। इन्हीं तीनों का समन्वयन हमें सफलता प्राप्त कराता है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की विश्व कप 2025 की जीत ना केवल खेल बल्कि एक बड़े सामाजिक बदलाव का प्रतीक बन गई है। यह जीत मेहनत, संघर्ष और टीम वर्क का मिश्रित परिणाम है, जिससे करोड़ों भारतीयों को गर्व मिला और महिला खिलाड़ियों को (चाहे फिर वह कोई भी खेल हो) समाज में मान्यता प्राप्त करने का एक और द्वार खोल कर रख दिया है। आज टीम के सभी खिलाड़ी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से मिलने के पश्चात अपने अपने गृह नगर पहुंचेंगी उस समय उनके गांव में जो उनका यशोगान होगा, उनका सम्मान होगा वह अकल्पनीय होगा ।सभी इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
नागपुर, महाराष्ट्र
