रागदारी में बरसती गीतधारा
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स्वरधारा की शानदार प्रस्तुति 'राग रस बरसे'
नागपुर। लंबे समय के बाद, सायंटिफिक सभागृह में शास्त्रीय रागों पर आधारित गीतों की एक दुर्लभ प्रस्तुति देखी गई, और दर्शकों ने संगीत की आनंदमय अनुभूति की। अवसर था स्वरधारा परिवार द्वारा आयोजित 'राग रस बरसे' कार्यक्रम का, जिसमें हिंदी फिल्म गीतों की एक संगीतात्मक प्रस्तुति थी।
कार्यक्रम की संकल्पना चंद्रशेखर तासगांवकर ने की थी, जिन्होंने एक गायक के रूप में भी प्रस्तुति दी। मुख्य अतिथि, नागपुर के प्रसिद्ध संगीतकार और गायक अशोक गोकर्ण ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत मानसी बढे द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुई, जिसके बाद शास्त्रीय रागों पर आधारित एक के बाद एक गीत प्रस्तुत किए गए। मानसी बढे ने 'सुनरी पवन पवन पुरवय्या' गीत से कार्यक्रम की शुरुआत की।
चेतन एलकुंचवार ने 'अखियन संग अखिया' (राग - मालकंस), रोहिणी पाटणकर ने 'आपकी नजरोने समझा प्यार के काबील' (अडाणा), श्रीकांत पैठणकर ने 'कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया' (गारा), श्रद्धा डाऊ ने 'रुक जा रात, ठहर जारे चंदा' (आसावरी), विजयजी ने 'दिल की तपिश' (किरवानी), मनश्री जोशी ने 'आ जा रे परदेसी' (बागेश्री), चंद्रशेखर तासगांवकर ने 'राधिके तुने बन्सरी चुराई' (अडाणा) जैसे लोकप्रिय गीत प्रस्तुत कर दर्शकों की दाद बटोरी।
वंदना कडू ने 'तोरा मन दर्पण कहलाये' (दरबारी कानडा), विवेक सकदेव ने 'अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो' (चारुकेशी) जैसे गीतों को ताकत से प्रस्तुत किया।
इसके बाद कार्यक्रम का विशेष आकर्षण मेडले राउंड शुरू हुआ, जिसमें सोहनी, यमन, रूपाली, पहाडी, शिवरंजनी रागों पर आधारित तीन-तीन गीत जोड़ी में प्रस्तुत किए गए। 'कुहू कुहू बोले कोयलिया' ने वन्स मोर लिया।
इसके बाद स्त्री युगल और पुरुष युगल गीत प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम का समापन 'सावरे सावरे' और 'लागा चुनरी मे दाग छुपाऊ कैसे' जैसे भैरवी राग में गीतों के साथ हुआ।
शेखर पाटणकर के जानकारीपूर्ण निवेदन ने दर्शकों को बांधे रखा और कार्यक्रम को ऊंचाई पर पहुंचाया। संजय कुलकर्णी ने तकनीकी और अशोक गांधी ने प्रस्तुति में सहयोग किया।
एकंदरीत, भरपूर उपस्थिति में नागपूरकरों को एक अनोखा और शास्त्रीय रागों पर आधारित कार्यक्रम सुनने का संतोष मिला।
