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ठीक नहीं है


हरदम उँगली उठाने का चलन ठीक नहीं है 
बेवज़ह दोषारोपण का चलन ठीक नहीं है।

अँधेरा भगाने को एक चिराग ही बहुत है 
रोशनी की खातिर घर का दहन ठीक नहीं है।

रस्सी को साँप बनाना बड़ा हुनर है लेकिन 
खुद अपने दोष छिपाने का फन ठीक नहीं है।
 
हालातों के थपेड़े तनिक झेल नहीं पाते 
इतना भी फूल-सा नाज़ुक बदन ठीक नहीं है।

शौक से जा सकता है चिरुंगुन नीड़ छोड़कर 
जिसे ऐसा लगे कि अपना चमन ठीक नहीं है।

ज़ुल्म के खिलाफ हर कोई मौनव्रती है यहाँ
बगैर ज़मीर जिऊँ ऐसा अमन ठीक नहीं है।

जीते जी लिवास चाहिए 'शशि' बदन ढँकने को 
मरने के बाद मखमल का कफ़न ठीक नहीं है।

- डॉ. शशिकांत शर्मा
  नागपुर, महाराष्ट्र 

काव्य 767964795916499872
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