भारतीय संस्कृति का मूल है एकात्म जीवन दर्शन : निवेदिता दीदी
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नागपुर। भारतीय संस्कृति एकात्म जीवन दर्शन पर आधारित है। संस्कृति के तीन घटक हैं – जीवन दर्शन, जीवन मूल्य और जीवन व्यवस्था। संस्कृति के ये तीनों घटक पूरे भारत में समान रूप से विद्यमान है, इसलिए भारतीय संस्कृति तात्विक रूप से एक है। एकात्म जीवन दर्शन परस्पर सम्बन्धित, परस्परावलम्बी तथा परस्परपूरक है। यह बात विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा पद्मश्री निवेदिता दीदी ने कही। वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय भाषा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित ‘भारतीय संस्कृति : चुनौतियाँ और सम्भावनाएं’ विषय पर बोल रही थीं।इस दौरान व्यासपीठ पर रा.तु.म. नागपुर विश्वविद्यालय मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. शामराव कोरेटी तथा हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय उपस्थित थे।
निवेदिता दीदी ने आगे कहा कि हमारे देश के प्रत्येक मत, पंथ या सम्प्रदायों के अनुयायी से लेकर सामान्य मनुष्य भी कहता है कि ईश्वर सर्वत्र है। कोई यह दावा नहीं करता कि मैं जिस देवता या देवी की पूजा करता हूँ वही सर्वश्रेष्ठ है। भारतीय व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपने इष्टदेव की उपासना करता है। हमारे यहाँ नदी, वृक्ष, पर्वत, जीव-जन्तु पूरी प्रकृति की पूजा होती है। यही भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य है। ए कत्व भाव ही भारतीय जी वनशै ली और उपासना पद्धति का मूल है।
राष्ट्रीय ध्येय के लिए जीवन जियें : निवेदिता दीदी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने भारत के दैवीय लक्ष्य से राष्ट्र को अवगत कराया था। विश्व को आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि भारत को देना है। किन्तु आज हम अपने धर्म, संस्कृति यहाँ तक अपने आप को भूले बैठें हैं। दीदी ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि हम ‘मैं’ और ‘मेरा’ की सोच में उलझे हुए हैं। बाहरी दिखावा और फूहड़ चर्चाओं में समय बर्बाद करते हैं। हमारी बातें तो उदात्त होती हैं किन्तु हमारे आचरण निम्न स्तर का होता है। भौतिक इच्छाओं में ही फंसे होने के कारण हम अपने जीवन का उद्देश्य को भूल बैठे हैं।
पर्यावरण का क्षरण हो रहा है। हमारे परिवार टूट रहे हैं, और हम गम्भीर नहीं है। इसलिए हमें सम्भलने की जरूरत है। परिवारों में परस्पर संवाद, संयम, संस्कारों की आवश्यकता है। ईश्वरीय शक्ति को आत्म-संयम और अनुशासन से ही अनुभव किया जा सकता है। दीदी ने जोर देकर कहा कि जीवन का वास्तविक आनंद राष्ट्र के ध्येय के साथ एकाकार होने में हैं। जीवन का यह वास्तविक आनंद खोकर हम विकसित नहीं हो सकते।
अपने अध्यक्षीय भाषण में मानविकी संकाय के अधिष्ठता डॉ. शामराव कोरेटी ने कहा कि हमारी संस्कृति महान है। हमारे आदर्श महान है। किन्तु हमारी कथनी और करनी में समानता नहीं है, इसलिए समस्या है। हमें अपनी सांस्कृतिक मूल्यों को जीवा होगा।
इससे पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने अपने प्रास्ताविक भाषण में कहा कि राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयन्ती को ‘भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन पर बल दे रही है। भारतीय भाषा अनेक हैं, किन्तु भाव एक है। सभी भारतीय भाषाएं भारतीय संस्कृति की संवाहक है।
डॉ. लखेश्वर चन्द्रवंशी ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका चित्राताई जोशी, विवेकानन्द केन्द्र की महाराष्ट्र प्रान्त संगठक सुजाताताई दलवी, केन्द्र के विदर्भ विभाग प्रमुख भरत जोशी, तरुण भारत के संचालक मीराताई कडबे, एबीवीपी के नागपुर महानगर संगठन मंत्री देवाशीष गोतरकर, डॉ. चन्द्रकान्त रागीट, डॉ. राजेन्द्र काकड़े, डॉ. शेषराव बावनकर, सुनील किटकरु, ब्रजेश मानस, चारुदत्त कहू सहित बड़ी संख्या में प्राध्यापक, शोधार्थी और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
