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ट्रेफिक सिग्नल...





आज हर शहर के व्यस्त सड़कों पे आपने ट्रैफिक    सिग्नल तो देखे ही होंगें। ट्रेफिक सिग्नल जो की हमारे शहर की बढ़ती भीड़, यातायात व्यवस्था, और बढ़ते हुए परिवहनों की सुविधाओं के लिये हर चौराहे पे बनाए गये हैं जिससे की शहरों मे बढ़ रहे हादसे जैसे कि सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण रखा जा सके। 

निरंतर बढ़ती आबादी के साथ - साथ परिवहन सुख सुविधाओं का बढ़ना भी स्वभाविक ही है।
परंतु ये क्या  बढ़ते परिवहन के चलते यातायात को सुचारु रुप से चलाने के लिये जिन ट्रेफिक सिग्नलों को बनाया गया है वहां सुबह से ही कितने लोग इकटठे होके उसे भीख मांगने का एक अड्डा बना बैठें हैं या तो वहां एसे कई छोटे-छोटे फुटकर फेरी वाले लोगों ने डेरा डाल रखा है। 

ये क्या जैसे ही ट्रेफिक सिग्नल लाल हुआ औरतें तो औरतों आदमी लोग भी गाड़ियों के बीच मे आके भीख मांगनें लगते हैं एसी बहुत सी औरतें हैं जो मासूम से छोटे - छोटे दूधमुंहे बच्चों को कोख मे लिये बच्चों के नाम पर ही भीख मांगनें लगती हैं कि बच्चा भूखा है अरे जो बच्चा सिर्फ दूध पी सकता है जिसे अपनी मां का दूध चाहिये उसकी भूख के नाम पे बच्चे को रोता बिलखाता यूं भीख मांगनें के लिये उपयोग मे लाना कहां तक सही है। सच देख उस मासूम बच्चे को दया आ जाती है जो अभी तो बोलना तक नहीं सिख पाया है उसे अपने वाहयात धंधें मे लगा दिया।शर्मनाक है ये बहुत परंतु क्या कर सकतें हैं और कब तक ?

सुना है कि बड़े-बड़े शहरों मे तो ऐसे बहुत से गुट मिलके अनैतिक काम कर रहें हैं जिसमें अलग - अलग शहरों से बच्चों का अपहरण कर उन्हें मोटी रकम पर अनैतिक गुटों को बेच दिया जाता है और उन बच्चों के अंगों को काट के उन्हें अपाहिज बना के भीख मांगनें के धंधें में उतार दिया जाता है।

कितनी हृदयविदारक है ये बात मात्र कल्पना से ही सिहरन उठ पड़ी अंग मे हमारे शरीर मे यदि कोई छोटी चोट लगे य थोड़ा सा जल ही जाए कोई हिस्सा तो हम तड़प उठते हैं, जरा उन बच्चों के बारे मे सोचें जो अपराधियों के हत्थे चढ़ अपने मां बाप से बिछड़ के उस दलदल मे धंस जाते हैं जहां से निकलना उनके लिये नामुमकिन सा हो जाता है।

जब बच्चे सिग्नलों पर भीख मांगतें हैं तब कोई न कोई पैनी नजर उन्हें दूर बैठे देखती रहती है कि कहीं कोई बच्चा भागने की कोशिश तो नहीं कर रहा या कोई थक कर बैठ तो नहीं रहा यदि किसी दिन कोई बच्चा कम पैसा लाता भीख मे तो उसे सजा के तोर पर खाना नहीं दिया जाता या तो कोई भी सजा दी जाती है।

बहुत से बच्चे तो एसे मिलते सिग्नलों पे जो हाथ मे फूल, बुके, गुब्बारे आदि बहुत तरह के सामान बेचते मिल जाऐंगे जिन बच्चों की उम्र खुद खिलौनों से खेलने की है वे खुद खिलोने से मासूम बच्चे दूसरों के बच्चों के लिये खिलोने बेच खुद के लिये रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं क्या इस ओर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। 

सामाजिक संस्थाओं को कि जिन हाथों मे अभी किताबें होनी चाहिये उन हाथों मे रोज़ी कमानें का ज़रीया है या तो उन हाथों को भीख मंगवाने के लिये प्रयोग किया जा रहा है।

आज बहुत सी सामाजिक संस्थाओं को देख रही हूं जो एक समाज सेवा का कार्य कर पचास फोटो लेते और बस पेपर बाज़ी करते अरे समाज सेवा करनी है तो उन फुटपाथ के बच्चों के लिये करो जो भूख से व्याकुल हाथ फैला रहे हैं। 

यदि एक सामाजिक संस्था चार या पांच सिग्नलों के बच्चों को लेके उनका कल्याण करे तो हमारी ट्रेफिक सिग्नलों की व्यवस्था तो ठीक होगी ही साथ ही हमारे देश के ये नोनिहाल भी बेहतरीन की ओर अग्रसर होंगे।
         बेचारे मासूम बच्चे जो मैंने देखे हैं कार के शीशे बजाते मिल जाते हैं कि सेठ कुछ दे दो सेठानी कुछ दे दो मैं भूखा हूं आदि बहुत से सम्मानिय शब्दों संग हमें संबोधित कर अपने लिये पैसा मांगते और उसके बदले ढ़ेर सारी दुआओं से हमारी झोली भर देते। 

कभी बोलते भगवान ओर धनवान बनाए तो कभी बच्चे तुम्हारे सलामत रहे जो खुद मासूमियत से भरे बच्चे हैं उनकी मासूमियत देख दर्द भी उठता दिल मे की आखिर कब तक ये सिलसिला चलता रहेगा ? कब तलक इन मासूम बच्चों का यूंही शोषण होता रहेगा ? 

कब तक भूखे बच्चे यूं बिलखते रहेंगे सिग्नलों पे मां की गोद मे। कब हमारी कोई सामाजिक या सरकारी संस्थाऐं जागरूक होंगी हमारे ट्रेफिक सिग्नलों की कृपा से पल रहें बच्चों के प्रति, पेपर बाजी छोड़ उन मासूमों की मदद करने के लिये आगे बढ़े और सच सामाजिक सेवा करनी है और पुण्य कमाना है तो इससे बेहतर समाज सेवा न होगी।
    इन फुटपाथ के बच्चों को संस्थाओं द्वारा गोद लेके इनकी शिक्षा के प्रति ध्यान रखना चाहिये ताकि यही बच्चे देश के भविष्य का निर्माण कर सकें हो सकता है की इन्हीं बच्चों मे से कोई इतना बड़ा वैज्ञानिक, डा., या इंजनियर बन जाए की देश का नाम स्वर्णिम अक्षरों मे लिखा जा सके। 

आज भी ऐसे बहुत से महान लोगों के उदाहरण हैं जो गरिबी मे भी रह के पढ़ के विदेशों मे अपना परचंम लहराऐ हैं। जिनकी जीवन गाथा बहुत से लोगों के लिये मार्गदर्शन, प्रेरणादायक बन के रह जाती है। तो जागिये सभी समाज की सामाजिक संस्थाऐं और बढ़ाइये हाथ उन असहाय, भूखे, लावारिस बच्चों की तरफ जो एक बेहतर जिंदगी पा कर सितारों की तरह चमक सकते हैं।

- वीना आडवानी, नागपुर, महाराष्ट्र
(प्रसिद्ध कवियत्री तथा लेखिका)

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