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इस्कॉन की आल इंडिया पदयात्रा के 7 वें चक्र हेतु द्वारका धाम में भव्य आयोजन




इस्कॉन द्वारा आयोजित आल इंडिया पदयात्रा के 36 वर्ष पूर्ण होगये। इन 36 वर्षों में निरन्तर चलते हुए सम्पूर्ण भारत वर्ष की कुल 6 बार परिक्रमा कर ली। छटवीं परिक्रमा का समापन 1 जनवरी 2021 नववर्ष के प्रथम दिन हुआ। द्वारका वासियों ने इस परिक्रमा का भव्य स्वागत किया। द्वारकाधाम में एक प्रवेश द्वार बनाया हुआ जिसका नाम ही इस्कॉन पदयात्रा द्वार है। प्रत्येक पदयात्रा इसी द्वार से प्रवेश करती है। एक सप्ताह इस्कॉन द्वारका के आतिथ्य में रुकने के बाद जब सातवीं परिक्रमा के लिये विदा हो रहे थे उस समय भव्य कार्यक्रम का आयोजन हुआ। 

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता इस्कॉन वर्ल्ड वाइड पदयात्रा के प्रमुख श्री ल लोकनाथ स्वामी महाराज ने की। मुख्य अतिथि रहे अर्जिन्टीना निवासी एच. एच. रूप रघुनाथ स्वामी महाराज एवं द्वारका धाम की नगराध्यक्ष श्री मति ज्योतिबेन सामानि। विशेष अतिथि थे महुआ से मनीष भाई, राजकोट से वैष्णव सेवा प्रभु, अहमदाबाद से मुरली मोहन प्रभु एवं चेतन्य चंद्र प्रभु। इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिये पूरे विश्व से 870 लोकेशन्स से 1500 से ज्यादा भक्त एवं श्रील लोकनाथ स्वामी महाराज पंढरपुर धाम से वर्चुअल ज़ूम क्लाउड पर एक साथ उपस्थित थे। 

इसके अलावा महुआ से 50 भक्त आये  जहाँ पूरे लॉक डाउन समय यह पदयात्रा 6 महीने तक एक ही स्थान पर रही। इन सभी भक्तों ने मनीष भाई के नेतृत्व में सभी पद यात्रियों का, निताई गौर सूंदर का, श्रील प्रभुपाद का एवं साथ मे चल रहे 5 बेलों का विशेष ध्यान रखा। इस कार्य के लिये लोकनाथ स्वामी महाराज ने सभी का आभार माना।

कार्यक्रम का संचालन अहमदाबाद से पद्मामाली प्रभु ने किया। सर्व प्रथम पदयात्रा के अध्यक्ष एच. जी. आचार्य दास ने सभी मुख्य अतिथियों एवम विशेष अतिथियों का स्वागत किया। 
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्रील लोकनाथ स्वामी महराज ने बताया कि पदयात्रा का शुभारंभ 36 वर्ष पूर्व 2 सितंबर 1984 को राधाष्टमी के दिन हुआ। यह पदयात्रा मदर पदयात्रा है। इससे संपूर्ण विश्व मे 108 से भी ज्यादा पदयात्राएं प्रारम्भ हो चुकी है।

स्वामी महाराज ने पदयात्रा का इतिहास बताते हुये कहा "वर्ष 1986 में चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य अथवा आविर्भाव को ५०० वर्ष पूर्ण होने जा रहे थे। संसार और  इस्कॉन को भी महाप्रभु के  आविर्भाव का पंच शताब्दी महोत्सव  मनाना था। इस्कॉन की गवर्निंग बॉडी कमिशन ने इस पर बहुत विचार विमर्श किया कि कैसे हम चैतन्य महाप्रभु के  आविर्भाव दिवस का पंच शताब्दी  महोत्सव  मना सकते हैं। तत्पश्चात यह तय हुआ कि इस्कॉन के भक्त पदयात्रा का आयोजन करेंगे। 

पदयात्रा द्वारका से प्रारंभ करेंगे इस निर्णय। हुआ। पदयात्रा करते हुए पदयात्रियों को पहुंचना तो ईस्ट इंडिया (पूर्व भारत) में  अर्थात गौर पूर्णिमा के समय बंगाल, मायापुर धाम  में।अर्थात वर्ष १९८८ में गौर पूर्णिमा अर्थात जिस दिन चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए थे, उस दिन मायापुर, नवद्वीप पहुंचना था। पश्चिम दिशा में द्वारका  अर्थात द्वारकाधाम से पदयात्रा प्रारंभ होगी, यह भी लक्ष्य था भगवान श्री कृष्ण पुनः भगवान्‌ गौरांग के रूप में आए हैं, गौर-वर्ण अवतार श्रीराधाजी के प्रेम व परमआनन्दित भाव से युक्त और पवित्र भगवन्नामों हरे कृष्ण के कीर्तन का विस्तार से चारों ओर प्रसार किया है। (अब उन्होंने हरे कृष्ण महामंत्र का वितरण किया है)

श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कलियुग का धर्म  हरे कृष्ण नाम , हरे कृष्ण महामंत्र  का प्रचार करने हेतु यात्रा की, जोकि मायापुर से प्रारंभ हुई थी। चैतन्य महाप्रभु मायापुर से  काटवा  गए। उन्होंने  वहां सMM नाम का प्रचार सर्वत्र हो, इस उद्देश्य  से   स्वयं भगवान् ने अपने नाम का प्रचार  किया। चैतन्य महाप्रभु  ने जहां जहाँ  प्रचार किया था अर्थात बंगाल में चैतन्य महाप्रभु जहां  जहां  गए थे या उडीसा में चैतन्य महाप्रभु  जहाँ जहाँ गए या फिर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तत्पश्चात गुजरात में थोड़ा सा प्रवेश किया था। उसके पश्चात चैतन्य महाप्रभु नवद्वीप पुनः लौटे।

 पदयात्रा निकालने के कारणों में दो बातों का संगम हुआ। एक तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का ५००वां अभिर्भाव दिवस था, उसका भी उत्सव मनाना था, उसके लिए यात्रा करेंगे और उन्हीं स्थानों पर जाएंगे,  जहाँ चैतन्य महाप्रभु गए थे औऱ उन्होंने कीर्तन किया था। तत्पश्चात वे आगे बढे थे। वह भी पदयात्रा के आयोजन का एक उद्देश्य था।  दूसरा उद्देश्य यह था कि प्रभुपाद की तीर्थ यात्रा करने की  तीव्र   इच्छा थी। पदयात्रा के आयोजन के पीछे  प्रभुपाद की  इच्छा पूर्ति भी दूसरा उद्देश्य था । 
 इन दोनों यात्राओं का प्रभुपाद एक तो बैल गाड़ी से यात्रा करना  चाहते थे, फिर वह बात नहीं बन पा रही थी। तो फिर वह बस से यात्रा करना चाहते थे। उस समय प्रभुपाद ने सभी के समक्ष मुझे संबोधित करते हुए कहा था।  

तुम इस यात्रा का नेतृत्व करोगे। इस बात को भी सभी ने नोट किया हुआ था। जब जी.बी.सी. ने पदयात्रा का निर्णय लिया, कि हम पदयात्रा करेंगे -द्वारिका से कन्याकुमारी होते हुए मायापुर नवद्वीप जाएंगे तब उसके लीडरशिप  नेतृत्व  के लिए मेरा स्मरण किया गया। इस दास को पदयात्रा का नेतृत्व दिया।। 

अध्यक्षीय उद्बोधन के बाद अर्जिन्टीना के एच. एच. रूप रघुनाथ स्वामी महाराज रिबन काट कर नई सजावट के साथ निताई गौर सुंदर, एवं प्रभुपाद विराजित सातवें रथ का उद्घाटन किया। मायापुर धाम से ईष्टदेव प्रभु ने नई पदयात्रा उत्कल बंग पदयात्रा की जानकारी दी जो मायापुर से रवाना होकर बंगाल एवं उड़ीसा के शहरों एवं गांवों में जायेगी।

इस्कॉन हरिनाम संकीर्तन मिनिस्ट्री के प्रवक्ता डॉ. श्यामसुंदर शर्मा ने विस्तृत जानकारी देते हुये बताया कि  विश्व प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर के प्रांगण से रथ रवाना होने के पूर्व द्वारका धाम की नागराध्यक्षा श्री मति ज्योतिबेन सामानी, चीफ ऑफिसर चैतन्य डोडिया, ज्ञान मंजूरी स्कूल महुआ के अध्यक्ष मनीष भाई देसाई, विट्ठल भाई करोडिया, महेंद्र भाई सेठ,द्वारकाधीश मंदिर के पुजारी नंदन भाई ने अन्य अतिथियों के साथ नारियल पर कपूर रख कर रथ का पूजन किया एवं रथ के सामने नारियल फोड़ कर रथ को 7 वीं यात्रा के लिये विदा किया। द्वारका वासियों ने रास्ते मे पुष्प वृष्टि की। नागपुर के करीब 150 से ज्यादा भक्तों ने इस कार्यक्रम में अपनी वर्चुअल उपस्थित दर्ज करवाई।

डॉ. श्यामसुंदर शर्मा
प्रवक्ता, इस्कॉन हरिनाम संकीर्तन मिनिस्ट्री
धार्मिक 3612687505708697503
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