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लेखक के लिए नहीं, पाठक के लिए लिखें : सुभाष चंदर



व्यंग्यधारा की 64 वीं ऑनलाइन व्यंग्य विमर्श गोष्ठी

 नागपुर। व्यंग्य में विसंगति की पहचान जरूरी है और उस पर प्रहार करने का सामर्थ्य भी होना चाहिए। प्रहार तभी कर पाएंगे जब आपके पास औजार होगा, ठीक उसी तरह जैसेशेर को मारने के लिए पत्थर नहीं, बल्कि हथियार चाहिए। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि आप लेखक के लिए नहीं, पाठक के लिए लिख रहे हैं। 

यह विचार वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री सुभाष चंदर (नई दिल्ली) ने व्यंग्यधारा की चौसठवीं (64 वीं) ऑनलाइन वीडियो व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में बतौर अतिथिवक्ता व्यक्त किए। 

गोष्ठी का विषय ‘व्यंग्य में विसंगति की पहचान और प्रहार' था। सुभाष चंदर ने कहा कि सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं से अलग और अटपटी चीजें ही विसंगति हैं। व्यंग्यकार के पास तीन चीजें होनी चाहिए - विसंगति की पहचान, विसंगति में जाने की गहराई और हथियार। विसंगति की पहचान के बाद विसंगति की गहराई में जाकर व्यंग्य के औजार से विसंगति की जड़ को काटेंगे। 

उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि आज जो व्यंग्य लिखे जा रहे हैं वह आसान विषयों पर और खतरे कम उठाने वाले प्रतीत हो रहे हैं। लेखन के लिए सॉफ्ट टारगेट तलाशे जा रहे हैं। सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांप्रदायिक विसंगतियों के बजाय साहित्यिक विसंगतियों पर व्यंग्य ज्यादा लिखे जा रहे हैं। 

इसके पूर्व व्यंग्य विमर्श की शुरुआत करते हुए ब्रजेश कानूनगो ने कहा कि आज व्यंग्यकार के सामने विसंगति की पहचान का संकट और चुनौती है। जिन बातों और मूल्यों को व्यंग्यकार विसंगति मानता आया है, वह नई पीढ़ी के लिए मूल्य बन गए हैं। हम विसंगति को चिन्हित नहीं कर पा रहे हैं। नए समाज के नए सवालों पर व्यंग्य लिखे जाने की जरूरत है। हम विसंगति के किस पक्ष में खड़े हैं, वह व्यंग्य को सार्थक बनाता है। व्यंग्यकार संकेत करता है, कार्रवाई नहीं। व्यक्ति के बजाय प्रवृत्ति पर व्यंग्य करें। 

गोष्ठी के विशिष्ट वक्ता राजेंद्र वर्मा ने कहा कि विसंगतियां व्यंग्य का प्रमुख तत्व हैं। व्यंग्यकार का काम विसंगतियों की पहचान कर उन पर प्रहार करना है। उन्होंने असंगत और विसंगत का उल्लेख करते हुए कहा कि सामान्य तौर पर जो गड़बड़ी दिखे, उसके पीछे विसंगति है।

आज हमारे सामने छल, झूठ, पाखंड, भ्रष्टाचार, धार्मिक पाखंड है। विसंगति के लिए जिम्मेदार पर प्रहार करना जरूरी है। व्यंग्यकार का काम आलोचक की भूमिका निभाना है, गलत पर उंगली रखना और सही का पक्ष लेनाहै। उन्होंने हरिशंकर परसाई के अनेक व्यंग्यों के उदाहरण भी दिए। 

वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी (जबलपुर) ने संचालन करते हुए कहा कि जिन मूल्यों को हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल, रवींद्रनाथ त्यागी ने बरकरार रखा था, आज वह खो गए हैं। जिन विसंगतियों पर व्यंग्य लिखे जाते रहे हैं वह झूठ, फरेब, मक्कारी, पाखंड, भ्रष्टाचार, नैतिक और चारित्रिक पतन आजहमारे मूल्य बन गए हैं। कितनी सफाई से सत्ताके कर्ता-धर्ता झूठ बोल जाते हैं और प्रमाण भी देते हैं। यहीं से व्यंग्यकार का काम शुरू होजाता है, लेकिन विडंबना यह है कि कई व्यंग्यकार समझौता भी करते हैं। 

रामस्वरूप दीक्षित (टीकमगढ़) ने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर व्यंग्य लिखे जाने पर जोर दिया। सुधीर कुमार चौधरी ने कहा कि बदलते दौर में चारित्रिक अवमूल्यन, राजनीतिक पतन और विसंगति की पहचान जरूरी है। 

व्यंग्य विमर्श में अपनी बात रखते हुए व्यंग्य समालोचक डॉ. रमेश तिवारी (नई दिल्ली) ने तीन बातों को जरूरी बताया- विसंगति की पहचान, उसके चयन का आधार और प्रहार। उन्होंने कहा कि विसंगति पर प्रहार की हर लेखक की अपनी शैली होती है जैसे हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल और रवींद्रनाथ त्यागी के प्रहार की अपनी अलग शैली थी। 

श्रीलाल शुक्ल के व्यंग्य का उदाहरण देते हुए कहा कि रचनाकार का किसके प्रति झुकाव है या किसके पक्ष में खड़ा है, उसका सामाजिक मूल्य क्या है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। व्यंग्य लेखन बचकर नहीं कर सकते। दुर्भाग्य से व्यंग्य में विसंगतियों पर प्रहार करने की क्षमता कम होती गई है। कमलेश पांडेय (नई दिल्ली) ने विसंगतियों को चीरकर निकाल कर जोरों से आक्रमण करने और डॉ. गणेशराय ने जिनके लिए लिखा जा रहा है उन तक बात पहुंचाने की बात कही। 

रेशमा मालू (केरल) ने कविता में व्यंग्य तत्व की कमी का मुद्दा उठाया जिसका उत्तर देते हुए सुभाष चंदर ने कहा कि कविता में हास्य ज्यादा, व्यंग्य कमहै। व्यंग्य कविता अपनी जगह नहीं बना पाई। ब्रजेश कानूनगो ने व्यंग्य कविता की खोज करने और राजेंद्र वर्मा ने कविता में व्यंग्य ढूंढने पर बल दिया। सुरेश कुमार मिश्र उरतृप्त के सवाल पर श्री चंदर ने कहा कि मीडिया का सत्ता के आगे समर्पण तानाशाही की नींव रखेगी। मीडिया सत्ता की गोद में बैठ गया है। 

अनूप शुक्ल (शाहजहांपुर) ने कहा कि विसंगति दर्शाने से भी व्यंग्य का काम पूरा हो जाता है। प्रहार कैसे किया और उसे कैसे लिया, यह भी महत्वपूर्ण है। समाज और विषय की जानकारी के लिए अध्ययन जरूरी है। आभार प्रदर्शन प्रभात गोस्वामी (जयपुर) ने किया। 

गोष्ठी में व्यंग्यकार मधु आचार्य‘ आशावादी’ (बीकानेर), वेद प्रकाश भारद्वाज (गाजियाबाद), संतोष खरे (सतना), सेवाराम त्रिपाठी (रीवा), पिलकेंद्र अरोरा (उज्जैन),चंदन कुमार मिश्र, अमरेंद्र श्रीवास्तव, अनुराग पाण्डेय, राजशेखर चौबे (रायपुर), सुनील जैनराही (दिल्ली) श्रीमती अल्का अग्रवाल सिगतिया (मुम्बई), श्रीमती रेणु देवपुरा (उदयपुर), डा. महेंद्र कुमार ठाकुर (रायपुर), वीरेन्द्र सरल (धमतरी), टीकाराम साहू‘ आजाद' (नागपुर), मुकेश राठौर (भीकमगांवम प्र),  हनुमान प्रसाद मिश्र (अयोध्या), सूर्यदीप कुशवाहा, अनिल वर्मा ‘मीत’, किशोर अग्रवाल, सौरभ तिवारी आदि प्रमुखता से उपस्थित थे।
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