नारी सशक्तिकरण संपूर्ण समाज का सशक्तिकरण है : डाॅ. शैलेंद्रकुमार शर्मा
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नागपुर। नारी सशक्तिकरण मात्र नारी सशक्तिकरण नहीं है,बल्कि संपूर्ण समाज का सशक्तिकरण है।हिंदी के प्रारंभिक उपन्यासों ने पुनर्जागरण के प्रसारण के मूल्यों में बहुत योगदान दिया है।इस आशय का प्रतिपादन विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन,म.प्र.के कुलानुशासक तथा कला संकाय के अधिष्ठाता डाॅ.शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया।
शासकीय माता कर्मा कन्या महाविद्यालय, महासमुंद छत्तीसगढ, हिंदी विभाग द्वारा आयोजित 'हिंदी उपन्यासों में स्री की दशा और दिशा' इस विषय पर राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे अपना मंतव्य दे रहे थे।डाॅ.शर्मा ने आगे कहा कि साहित्य जितना जीवन के निकट आ रहा है, उतनी मात्रा में उपन्यास विधा में लेखन हो रहा है।
उपन्यास विधा ने आधी दुनिया को केंद्र में रखकर महनीय कार्य किया है।एक जमाने में स्री को शिक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं था। उनका अपना दायरा निश्चित था।परंतु हिंदी उपन्यास ने अपने प्रारंभिक पडाव से लेकर निरंतर यात्रा में स्री के जीवन में आनेवाले बदलाव को बडी मार्मिकता से प्रस्तुत किया है।
हिंदी के अनेक उपन्यासों में यथार्थ के प्रति आग्रह और नवीनता के स्वीकार को देखा जाता है। ऐतिहासिक उपन्यासों में नारी शक्ति व नारी चरित्र को उजागर किया गया है।प्रेमचंद के आगमन से उपन्यास का तेवर ही बदल गया है।क्योंकि स्री विद्रोह करने लगी है।
प्रेमचंद ने एक झटके के साथ समाज में आमूल चूल परिवर्तन किया।प्रेमचंद नारी की तत्कालीन स्थिति से असंतुष्ट थे। डाॅ.शर्मा ने प्रेमचंद पूर्व,प्रेमचंद युगीन व प्रेमचंदोत्तर युगीन तथा वर्तमानकालीन उपन्यासकारों व उनकी कृतियों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
डाॅ. प्रिया ए. सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, कोरियाकोस ग्रिगोरियस काॅलेज, पाम्पडी, कोट्यम, केरल ने अपने उद्बोधन में कहा कि सदियों से पीडित नारी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए हाथ में कलम लेकर जीवन के हर पक्ष को अभिव्यक्त करने लगी है। महिला उपन्यास लेखन में संपूर्णता इस अर्थ में आयी है कि अब उसमें आँसू और वेदना के स्वर गायब हो गए हैं।
लेखन की एक संपूर्ण नई धारा फूट पडी है; जिसमें स्री संघर्ष के साथ समय और समाज की चिंता भी समग्रता से प्रस्तुत हुई है। हिंदी के महिला उपन्यासकारों ने अपनी साहित्य सर्जना के माध्यम से साहित्य जगत को ज्यादा संवेदनशील और मानवीय बना दिया है। निश्चय ही हिंदी का महिला साहित्य लेखन अत्यंत व्यापक, प्रौढ और प्रभावशाली है। जागृतिकाल में नारी सुधार की भावना प्रबल हुई है। नव उदारवादी समय में धीरे धीरे नारी अपनी जमीन को मजबूत करती जा रही है। जागरूक होकर वह अपने अधिकारों की मांग कर रही है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ.प्र. के अध्यक्ष, प्राचार्य डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि हिंदी साहित्य में स्री का सशक्त चित्रण उपन्यास विधा के माध्यम से भरपूर मात्रा में हुआ दिखाई देता है। अधिकांश महिला उपन्यासकारों ने स्री के उभरते व्यक्तित्व को रेखांकित किया है।
महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. रमेशकुमार देवांगन ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि विश्व की केंद्रबिंदू नारी है। कालानुसार नारी की अपनी महत्ता रही है।नारी के बिना विश्व की कल्पना ही असंभव है। आभासी गोष्ठी की समन्वयक डाॅ. सरस्वती वर्मा ने अपने प्रास्तविक भाषण में गोष्ठी के उद्देश्य और महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। गूगल मीट व यू ट्युब के माध्यम से तीन सौ ग्यारह प्रतिभागियों ने अपना पंजीकरण कराया था।
गोष्ठी का सफल, सुंदर संचालन व नियंत्रण समन्वयक डाॅ. सरस्वती वर्मा ने किया तथा सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग की प्रा. डाॅ. श्वेतलाना नागल ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।
