कुर्बानी : समाजसेविका निशा खान की अनोखी पहल
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नागपुर। कुर्बानी का त्योहार ईद - उल - अजहा (बकरीद) मनाई जाती है। ईद - उल - अजहा 21 जुलाई को लेकर शहर में तैयारी शुरू हो गई थी। ऐसे में शहर की समाजसेविका निशा खान ने अपने परिवार की सलाह मशवरा के बाद कुर्बानी को लेकर एक नई पहल की शुरुआत की है जिसे सभी तबकों ने बहुत सराहा है।
कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी लोगों को घर ही नमाज अदा करनी पड़ी। लोगों में भ्रम की स्थिति थी कि इस बार मस्जिदों में ईद की नमाज पढ़ी जाएगी या नहीं लेकिन शासन के निर्णय के अनुसार सभी ने अपने अपने घरों में ही ईद का त्यौहार मनाया। इस वर्ष 21 जुलाई को बकरीद मनाई गई थी।
12 जुलाई से इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी महीना शुरू होता है. इस माह को जो जुल हिज्जा के नाम से जाना जाता है। इस्लाम में इस माह का बहुत अधिक महत्व होता है। इस महीने में हज यात्रा अदा की जाती है, कुर्बानी का बकरा भी इन दिनों बाजार की रौनक बढ़ा रहा था। ईद के दिन मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़ने के बाद अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करते हैं।
समाजसेविका निशा खान और उनके परिवार ने मिलकर फैसला किया कि इस वर्ष हम कुर्बानी नहीं करेगे। जो 21000/रुपये कुर्बानी के लिए रखे थे, उन रुपयों को यतींम, विधवा और बीमार या जरूरतमंद लोगों में तकसीम किया जाएगा।
इनकी बहुत बड़ी सोच में हमें भी सोचने मजबूर कर दिया है की आज भी कई लोग ऐसे है जिनको एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता है। अगर हमारी छोटी सी मदद से किसी का चूल्हा जलता है, किसी बीमार की दवाई और किसी यतीम बच्ची की शादी के लिए कुछ मदद हो सकती है तो मैं समझती हूं कि हमने कुर्बानी का हक अदा कर दिया। मेरा अल्लाह मेरे गुनाहों को और इस हिमाकत को माफ करे।
समाजसेविका निशा खान का कहना है की उन्होंने सामाजिक दृष्टि से ऐसा निर्णय लिया है, इन्होंने पहल करते हुए यह कदम उठाया है की कुर्बानी करना ही है तो अपने मन में आए हुए बुरे विचारों की कुर्बानी करो। इस निर्णय से अनेक लोगों ने सराहना भी की है।


