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समझौता...


कुछ समय पूर्व अपनी निकट परिचिता के घर किसी अत्यावश्यक कार्य सेजाने का अवसर मिला। उनके घर पहुंचकर जब काल बेल बजाई तो कुछ क्षणों में मेड सर्वेंट ने आकर दरवाजा खोला। उसे अपने नाम की स्लिप देकर मैं प्रतीक्षा में खडी़ रही। थोडी़ देर में उस मेड सर्वेंट ने आकर बैठने को कहा। संयोगवशात मैं ड्राईंग रुम के उस सोफे पर बैठी थी,जहां से घर के अंदर का हिस्सा दिखाई देता था।

मैंने देखा वह मेड सर्वेंट व दो नर्स तीनों मिलकरउन वृद्ध महिला को कुर्सी पर बैठाने का भरसक प्रयत्न कर रही हैं। उस समय उनके शरीर का एक एक अंग इस तरह हिल रहा था, आडा़ तेडा़ हो रहा था व दर्द के मारे चेहरे के भाव इस तरहविचित्र हो रहे थेकि उनकी यह हालत देख मन अंदर ही अंदर दुख से भर गया। इसी बीच व्हील चेअर पर बैठाकर उन्हेंयत्नपूर्वक बाहर लाया गया।

कुछ ही देर में सहज होने का प्रयत्न कर उन्होंने बात आरंभ की। काम की बात होने के बाद जब मैने बच्चों के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि दोनों बच्चे विदेश में बसते हैं। ईश्वर ने उन्हें विलक्षण, अद्भुत प्रतिभा दी है। उसका उपयोग तो होना ही चाहिए ।केवल मेरे अकेले की देखरेख के लिए अपनी  प्रतिभा का हनन करना कहां तक उचित होता ? फिर पल पल मेरी देखरेख के लिए उन्होंने ये सारी व्यवस्था कर रखी है। रात दिन की दो नर्सें, नौकर चाकर, पंडित सबकुछ ।इसके अतिरिक्त नई तकनीक का भी लाभ।

दिन में दो बार सबके चेहरे दिख जाते हैं, बातें भी हो जाती हैं। और क्या चाहिए? हमने अपना जीवन अपनी अपनी तरह से जिया, अब उन्हें भी अपनी तरह से जीने का अधिकार है ।
यह सब कहते हुए उनका चेहरा प्रफुल्लित था। न कोई बनावटीपन, न शिकवा न शिकायत। इस दर्दनाक स्थिति में भी परिस्थितियों से समझौता करने की उनकी योग्यता देख मैं आश्चर्य चकित थी।
उसदिन की मुलाकात मेरे लिए एक प्रेरणा,एक संदेश बन गई। वरना हम अनुकूल परिस्थितियों में भी जीवन से शिकायतें ही तो करते रहते है ?

- प्रभा मेहता
नागपुर, महाराष्ट्र

कथा 4580871469483292542
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