बिना चिंतन, मनन और लक्ष्य के व्यंग्य लेखन व्यंग्य के लिए उचित नहीं है : राजेंद्र सहगल
व्यंग्यधारा समूह की 77वीं ऑनलाइन व्यंग्य विमर्श गोष्ठी
नागपुर। बिना चिंतन, मनन और लक्ष्य के व्यंग्य लेखन व्यंग्य के लिए उचित नहीं है। यह बात व्यंग्यधारा द्वारा आयोजित व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में व्यंग्यकार राजेंद्र सहगल ने कही।
व्यंग्यधारा समूह की 77वीं ऑनलाइन व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में ‘व्यंग्य की लोकप्रियता के खतरे' विषय पर अतिथि वक्ता शशांक भारतीय (पुणे) विशिष्ट वक्ता व्यंग्यकार कुंदन सिंह परिहार (जबलपुर) और व्यंग्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी' (बीकानेर) थे।
गोष्ठी की शुरुआत करते हुए कुंदनसिंह परिहार ने इस बात पर चिंता जताई कि व्यंग्य में सामाजिक सरोकार और विचार की कमी आ रही है। आजकल व्यंग्य सुबह अखबार पढ़ कर लिखे जा रहे हैं, जिनमें विचार पक्ष कमजोर होता है। आज के दौर में व्यंग्य बहुतायत में लिखा जा रहा है, लेकिन गुणवत्ता के मानकों पर खरे नहीं उतरते ऐसी स्थिति में अच्छे लेखकों को रेखांकित करने की आवश्यकता है।
व्यंग्य में खतरे की अनेक बिंदुओं पर बात करते हुए मधु आचार्य 'आशावादी' ने कहा कि व्यंग्य अपनी विश्वसनीयता के कारण पहचाना जाना चाहिए। अखबारी व्यंग्य मात्र दो घंटे बाद मर जाता है. व्यंग्य विचार केंद्रित और सरोकारी होने चाहिए। साहित्यकारों पर व्यंग्य लिखना एक तरह से सत्ता का समर्थन करना ही है।
शशांक भारतीय ने कहा कि व्यंग्य एक गंभीर विधा है। यह कोई मजाक या मसखरी नहीं है. व्यंग्य में सामाजिक सरोकार जरूरी है। जिस बात को कहना चाहते हैं उसके मर्म को समझना जरूरी है। व्यंग्य लेखन गंभीरता के साथ किया जाना चाहिए तभी वह सार्थक होगा। सहज और सरल लिखा जाना चाहिए।
व्यंग्य विमर्श गोष्ठी के शुरुआत में भूमिका रखते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी (जबलपुर) ने व्यंग्य की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि व्यंग्य में सामाजिक सरोकार जनपक्षधरता की कमी दिखाई दे रही है। व्यंग्यकार को शोषित वंचित के पक्ष में खड़ा होना है न कि सत्ता और व्यवस्था के। आज हमारे सामने किसान आंदोलन, महंगाई सहित अनेक मुद्दे और समस्याएं हैं जिन पर व्यंग्य लिखे जाने की जरूरत है। दुर्भाग्य से परसाई जी की रचना आवारा भीड़ खतरे के समान की तरह आवारा व्यंग्य के प्रश्न हमारे सामने दिख रहे हैं।
विमर्श को आगे बढ़ाते हुए सेवाराम त्रिपाठी (रीवा) ने कहा कि बिना प्रतिबद्धता व्यंग्य लेखन नहीं किया जा सकता। आज विकलांग भक्ति का दौर चल रहा है। सत्ता की भी प्रशंसा की जा रही है । नकारात्मकता को सकारात्मकता में डालने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ लोग अपनी पहुंँच बनाने और पुरस्कार पाने के लिए व्यंग्य लेखन कर रहे हैं। सामाजिक सरोकार खत्म हो गए हैं।
राजेंद्र वर्मा ने (लखनऊ) दो टूक कहा कि व्यंग्य की लोकप्रियता का सबसे बड़ा खतरा यह है कि जो छप सकता है वही लिखा जा रहा है। रामस्वरूप दीक्षित (टीकमगढ़ )ने कहा कि व्यंग्यकारों की दृष्टि में परिवर्तन की जरूरत है। बृजेश कानूनगो (इंदौर) ने कहा कि सबसे ज्यादा खतरा व्यंग्य के मूल तत्व पर है। बिना प्रतिबद्धता व्यंग्य भजन, आरती और विरुदावली है। अभिजीत दुबे ने कहा कि व्यंग्यकार को स्तरीयता का ध्यान रखना होगा।
अनूप शुक्ला शाहजहांपुर ने स्पष्ट कहा कि लोकप्रियता से व्यंग्य को कोई खतरा नहीं है। इसी में से अच्छा व्यंग्य लिखा जाएगा आज भी अच्छे व्यंग्य लिखे जाते हैं लेकिन छपते नहीं।
कार्यक्रम के संयोजक और व्यंग्य आलोचक डॉ रमेश तिवारी (नई दिल्ली) ने कहा कि व्यंग्य की लोकप्रियता के खतरे यह है कि लिखने और छपने की जल्दबाजी में स्तर का ध्यान नहीं रखा जा रहा। गुणवत्ता के आधार पर सृजन कार्य नहीं हो रहा है। प्रकाशन सम्मान और प्रचार की लालसा से व्यंग्य का उत्पादन हो रहा है।
अंत विमर्श गोष्ठी में उपस्थित सभी सदस्यों का आभार प्रदर्शन रेणु देवपुरा (उदयपुर ) और संचालन रमेश सैनी ने किया. तकनीकी सहयोग अरुण अरुण खरे का रहा.
व्यंग्यधारा की व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में सुनील जैन राही (दिल्ली),दिलीप तेतरबे (राँची) राजशेखर चौबे (रायपुर), डाँ. महेन्द्र कुमार ठाकुर ( रायपुर), सुधीर कुमार चौधरी (इंदौर),कुमार सुरेश (भोपाल) प्रमोद चामोली (बीकानेर) किशोर अग्रवाल (रायपुर), श्रीमती अल्का अग्रवाल सिग्तिया (मुम्बई ) श्रीमती वीना सिंह (लखनऊ), सुरेश कुमार मिश्र 'उरतृप्त' (हैदराबाद), जयप्रकाश पाण्डेय (जबलपुर) टीकाराम साहू ' आजाद' (नागपुर), ओम वर्मा, मुकेश राठौर (भीकनगांव) सूर्यदीप कुशवाहा चेतना भाटी, सौरभ तिवारी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।