शक्ति और संवेदना का काव्य है भक्ति साहित्य : प्रो. तिवारी
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नागपुर। भक्ति काव्य शक्ति और संवेदना का काव्य है। वह पौरुष और जिजीविषा की कविता है, न कि निराशा और हताशा की। भक्ति काल के सभी कवियों ने सामाजिक जागृति का कार्य किया। उन्होंने मानवीय संवेदना को भक्ति के आवरण में प्रस्तुत किया।
यह बात दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कैलाश नारायण तिवारी ने हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में कही।
व्याख्यान का विषय था- 'भक्ति काव्य और हमारा समय'। उन्होंने कहा कि कबीर की भक्ति निर्गुण-सगुण के परे उस मानवीय भूमिका की प्रस्तावना रखती है जहां मानुष की सत्ता प्रधान है। कबीर सामाजिक ताने-बाने को बुनने वाले कवि थे। उन्होंने अपनी वाणी से सामाजिक समरसता के लिए प्रयत्न किया।
प्रो. तिवारी ने कबीर का वैशिष्ट्य निरूपित करते हुए इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि किसी भी समय में वही कवि प्रासंगिक हो सकता है जिसमें अपने समय की चिंताओं की अनुगूंज हो। जो कवि अपने समय में दखल नहीं रखता, वह किसी भी काल -समय का नहीं हो सकता। कबीर अपने समय के साहित्यिक ही नहीं, सामाजिक मानक हैं। इसीलिए वे हमारे समय को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले तुलसी के पासंग के कवि हैं।
दूसरे अतिथि वक्ता डॉ अंबेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के प्रो. सर्वेश सिंह ने तुलसी के अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि तुलसी समूचे भक्ति साहित्य के मानदंड हैं। तुलसी को छोड़कर भक्ति साहित्य का कोई भी अध्याय पूर्ण नहीं हो सकता। उन्होंने भारतीय समाज को जोड़ने का कार्य किया और उसके समक्ष वह आदर्श प्रस्तुत किया जो पराभव और निराशा के दौर में किसी भी समाज का संबल हुआ करता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लम्बे समय तक हिन्दी आलोचना में एक खास तरह की विचारधारा के चश्मे से भक्ति काव्य का मूल्यांकन किया जाता रहा। भक्ति कविता को और विशेषकर तुलसीदास को इसका सर्वाधिक दंश झेलना पड़ा। तुलसी के काल-समय को,उस समय की परिस्थितियों की विडंबनाओं को और स्वयं उनके आत्मसंघर्ष को स्वनामधन्य आलोचकों तक ने सही परिप्रेक्ष्य प्रदान करने की ईमानदार पहल नहीं की।
प्रो. सर्वेश सिंह ने भारतीय साहित्य में तुलसी के 'मानस' का महत्व निरूपित करते हुए कहा कि इस कृति में भारतीय जन-जीवन की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति हुई है। यह केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, न ही कोई कल्पित मिथ है, असल में यह भारतीय जीवन-शैली का प्रादर्श है। तुलसी ने भारतीय मानस की आशाओं- आकांक्षाओं को वाणी दी। और उस समय यह कार्य किया जब समाज भयंकर रूप से विश्रृंखलता का शिकार था। इसीलिए शुक्ल जी ने इसे जनता के गले का कंठहार कहा है। भारतीय जनमानस में इसकी अद्भुत स्वीकार्यता के कारण ही ग्रियर्सन ने भक्तिकाल को स्वर्णकाल की संज्ञा दी है।
प्रास्ताविक रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि भक्ति काव्य भक्ति के आवरण में जीवन चेतना की कविता है। उसकी चेतनता ही उसे हमारे समय में भी प्रासंगिक बनाए हुए है। यह सचेतनता उसकी मूल्य-दृष्टि में है। जीवन जब तक मूल्य आधारित रहेगा, तब तक भक्ति काव्य हमारा पथ-प्रदर्शक बना रहेगा। क्योंकि भक्ति काल के प्रायः सभी कवियों ने ईश्वर के माध्यम से मानवीय मूल्यों को स्थापित करने का प्रयत्न किया है।
आनलाइन आयोजित इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से अनेक विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्राध्यापकों ने हिस्सा लिया। अतिथि वक्ताओं ने प्रतिभागियों के प्रश्नों का संतोषजनक समाधान भी किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ सुमित सिंह ने, अतिथि परिचय डॉ. गजानन कदम ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रा. जागृति सिंह ने किया।