डॉ बलराम विश्व में साहित्य के माध्यम से समन्वय लाना चाहते हैं : डॉ देवधर महंत
विश्व समन्वय साहित्य परिवार द्वारा विचार व काव्य गोष्ठी
मुंबई। शरद पूनम के पावन अवसर पर विश्व समन्वय साहित्य परिवार (वर्ल्ड हारमोनी ऑर्गेनाइजेशन फॉर लिटरेचर WHOL) के तत्वावधान में ऑनलाइन विचार व काव्य गोष्ठी का आयोजन, मुंबई की विचारक/समाजसेवी शशि दीप के संयोजन में सम्पन्न हुआ।
इस गोष्ठी का विषय 'शरद पूनम 2021' था, जिसमें दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार/शिक्षाविद् प्रोफेसर भारती आई जे, मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत किये, वहीं संस्था से लंबे समय से जुड़े बिलासपुर के वरिष्ठ साहित्यकार राघवेन्द्र दूबे तथा रायपुर के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ, साहित्य प्रेमी व गायक डाॅ मनीष श्रीवास्तव विशिष्ठ अतिथि रहे। कार्यक्रम का संचालन बिलासपुर/ मुंबई की वरिष्ठ साहित्यकार, समाजसेवी कोकिल कंठ डाॅ प्रीति प्रसाद ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ परंपरागत रूप से, शशि दीप द्वारा गणपति व माँ सरस्वती मंत्रोपचारण से हुआ। उसके बाद सर्वप्रथम संस्थापक अध्यक्ष डॉ बलराम टहिलियानी सचदेव ने शरद पूनम के आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए साहित्य, विज्ञान व कला के माध्यम से सभी धर्मों व नागरिकों के बीच सद्भाव स्थापित करने को संस्था का मुख्य उद्देश्य बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ देवधर महंत ने कहा कि 'साहित्य मनुष्य बनाता है इसलिए एक सर्जक को सर्वप्रथम एक उत्कृष्ट मानव होना आवश्यक है।'
मुख्य अतिथि प्रोफेसर भारती आई जे ने शरद पूर्णिमा की पौराणिक मान्यताओं की विस्तार से जानकारी दी तथा संस्थापक, अन्य कार्यकारी सदस्यों व समस्त आमंत्रित कवियों को अपनी हार्दिक बधाई एवं नेक शुभकामनाएँ दी। उन्होंने शशि दीप को, उन्हें मुख्य अतिथि के सम्मान के साथ आमंत्रित करने के लिए विशेष आभार व अशेष आशीर्वाद से अनुग्रहित किया।
विशिष्ट अतिथि श्री राघवेन्द्र दूबे ने मुख्य पर्वों व ॠतु पर्वों को साहित्यकारों द्वारा मनाए जाने की वर्षों पहले डॉ बलराम द्वारा श्री गणेश की गयी अनुकरणीय परंपरा का सम्मान करते हुए, इसे न केवल सृजन, मनोरंजन, विचार मंथन बल्कि जीवन में कुछ लक्ष्य निर्धारित करने के लिए उपयोगी बताया। दूसरे विशिष्ट अतिथि डॉ मनीष श्रीवास्तव ने संस्था, इसके उद्देश्यों व इसकी आत्मा डॉ बलराम के प्रति गहरा प्रेम व सम्मान अभिव्यक्त किया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्यगोष्ठी के तहत देश के विभिन्न शहरों से आमंत्रित साहित्यकारों ने अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुति द्वारा शरद पूर्णिमा की पावन चाँदनी से दमकते आभासी पटल को और भी उज्जवल कर दिया। इस गोष्ठी में आमंत्रित साहित्यकारों के रूप में बोकारो से वरिष्ठ साहित्यकार/ हिन्दी/संस्कृत की शिक्षिका श्रीमती कनक लता राय, देहरादून से सावी शर्मा, मुंगेली से राकेश गुप्त 'निर्मल', रांची से श्रीमती मीनू मीना सिन्हा, प्रयागराज से प्रखर लेखक व विचारक श्री प्रभाकर सिंह व बिलासपुर की बहुत ही उत्साही कवयित्री, सरल व प्रेरक व्यक्तित्व श्रीमती रेणु बाजपेयी अपनी गरिमामय उपस्थिती से मंच की शोभा देखते ही बन रही थी।
डाॅ प्रीति प्रसाद, रेणु बाजपेयी व डाॅ देवधर महंत ने कुछ उत्कृष्ट प्रस्तुतियों की तात्कालिक रोचक समीक्षा की जिसमें प्रभाकर सिंह जी की गूढ अभिव्यक्ति 'फिर भी मेरे होनेपन का मैं ही हूँ स्वयमेव प्रमाण' मुख्य था, और इसी कविता की अंतिम पंक्ति 'संपूर्ण विश्व मेरा परिवार' को डॉ देवधर महंत ने समन्वय की भावना के अनुरूप बताया।
इस अविस्मरणीय अवसर पर, कार्यक्रम के सफल संचालन व कुशल संयोजन के लिए, अतिथियों व आमंत्रित साहित्यकारों ने शशि दीप व डाॅ प्रीति प्रसाद की भूरि भूरि प्रशंसा की।