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आंदोलन में व्यंग्यकार की भूमिका लोगों को आंदोलित कर जगाना है : शशिकांत सिंह ‘शशि'


व्यंग्यधारा समूह की साप्ताहिक 81वीं ऑनलाइन व्यंग्य गोष्ठी विमर्श

नागपुर। व्यंग्य झकझोर कर जगाने की विधा है। आंदोलनों में व्यंग्यकार की भूमिका लोगों को आंदोलित कर जगाना है। यह कहना है व्यंग्यकार शशिकांत सिंह 'शशि' (मधेपुरा,बिहार) का।
व्यंग्यधारा समूह की साप्ताहिक 81वीं ऑनलाइन गोष्ठी में ‘आंदोलन में व्यंग्यकार की भूमिका' विषय पर व्यंग्य विमर्श का आयोजन किया गया। प्रमुख अतिथि वक्ता शशिकांत सिंह 'शशि', राजेन्द्र वर्मा (लखनऊ), सुधीर कुमार चौधरी (इंदौर), प्रभाशंकर उपाध्याय (सवाई माधोपुर, राजस्थान) थे।

 शशिकांत सिंह ‘शशि' ने कहा कि कबीर ने सामाजिक आंदोलन किया और जाति -धर्म की लड़ाई लड़ी। व्यंग्यकार संपादक सुखाय लिख रहे हैं। एक वर्ग साहित्य पर ही लिखता है, क्योंकि प्रकाशित होने में आसानी होती है। व्यंग्यकार छपने के लोभ में आंदोलन पर नहीं लिखता या लिखता है तो प्रकाशक व संपादक की मांग पर आंदोलन के विरोध में लिखता है। हालांकि कुछ व्यंग्यकार अभी भी हैं जो आंदोलन के पक्ष में और व्यवस्था की नियामक शक्तियों की अमानवीयता पर लगातार लिख रहे हैं| अनूप मणि त्रिपाठी, राजशेखर चौबे, शांतिलाल जैन आदि व्यंग्यकार ऐसे ही लेखन के लिए जाने जाते हैं। अधिकांश व्यंग्यकार तो सरकार के प्रवक्ता के रूप में लिख रहे हैं। उन्हें भ्रम है कि सरकार के साथ रहना ही राष्ट्रवाद है। वे आलोचना करने से डर रहे हैं, जबकि आलोचना करना व्यंग्यकार का धर्म है। लेखक का काम अपने विचारों को रखना है। समाज तभी आंदोलित होगा, जब व्यंग्य समाज से जुड़ेगा। वरिष्ठ व्यंग्यकार बालमुकुंद गुप्त ने कहा था व्यंग्यकार समाज का वकील है। व्यंग्यकार का काम खुश करना नहीं है वरना वह चारण हो जाएगा।

वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रभाशंकर उपाध्याय ने कहा कि सन 1857 की क्रांति के असफल होने पर जनता में हताशा बढ़ी| ऐसे समय व्यंग्यकारों ने अलख जगाने का काम किया। आंदोलनों में शब्द शक्ति का महत्त्व बताते हुए आंदोलनों का इतिहास और साहित्यकारों की भूमिका पर विस्तृत प्रकाश डाला।

सुधीर कुमार चौधरी ने कहा कि व्यंग्यकार को सत्ता या विपक्ष के पक्ष में नहीं, हमेशा सत्य के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। व्यंग्यकार आम आदमी की आवाज को सत्ता के बहरे कानों तक पहुंचाता है। मदमस्त सत्ता पर अंकुश लगाता है। व्यंग्यकार को शोषित, दलित, दमित के साथ खड़ा होना चाहिए। स्वार्थपरक और राजनीति से प्रेरित आंदोलन से पर्दा उठाना भी व्यंग्यकार का धर्म है। आजादी के आंदोलन में साहित्यकारों की  महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेंद्र वर्मा ने कहा कि व्यंग्यकार का दायित्व है कि वह अपनी जगह पर खड़ा रहे। सत्ता कोई भी हो सकती है। व्यंग्यकार का काम समाज को दिशा देना और चेतना जगाना है। व्यंग्यकार आंदोलन के केंद्रीय तत्व से जुड़े। जन आंदोलन होते रहे हैं और दबा- कुचला, शोषित व्यक्ति ही आंदोलन करता है।

संचालन व आभार प्रदर्शन प्रखर व्यंग्य आलोचक डॉ. रमेश तिवारी  (दिल्ली) ने किया। डॉ तिवारी ने कहा कि सच्चा साहित्यकार आंदोलन के साथ खड़ा होता है और ऐसी स्थिति में चाहे-अनचाहे वह सत्त्ता-व्यवस्था के खिलाफ दिखाई देता है। लेखक में विचार और साहित्य दृष्टि जरूरी है। यदि विचार को मनुष्य से अलग कर दें तो मनुष्य और पशु में कोई अंतर नहीं रहेगा| विचार ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है| सुप्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती की कालजयी कविता ‘मुनादी’ का पाठ करते हुए यह बताया कि एक सच्चा साहित्यकार जनता के साथ खड़ा होगा ही होगा और जब भी वह जनता के साथ, जनांदोलनों के साथ खड़ा होगा, सत्ता के खिलाफ नजर आएगा| मुनादी कविता आपातकाल के विरोध में लिखी गई थी, किंतु यह कविता आज की शासन व्यवस्था पर भी उतनी ही फिट बैठती है| व्यंग्य की सार्थकता यही है| विमर्श के मर्म को समझने के लिए यह व्यंग्य-कविता बार-बार पढ़ी जानी चाहिए|  

प्रो. सेवाराम त्रिपाठी ने कहा कि व्यंग्यकार को जनता से जुड़ना होगा, वरना लिखना- पढ़ना सब बेकार है। आज हमारा बुद्धिजीवी वर्ग भ्रमित है। आंदोलन और आम जनता की भावनाओं को समझना होगा। आज के लेखन में महंगाई और बेरोजगारी मुद्दा नहीं है। व्यंग्यकारों में दोगलापन दिखाई दे रहा है। आंदोलन हमेशा अच्छे काम के लिए किए जाते हैं। व्यंग्यकार हमेशा जनता के पक्ष में खड़ा होता है। सुनील जैन राही ने व्यंग्यकार पर कविता सुनाई जबकि ब्रजेश कानूनगो ने कहा कि आज का व्यंग्य नैरेटिव हो गया है। व्यंग्यकारों के पास राजनीतिक दृष्टि होनी चाहिए। व्यंग्यकार किशोर अग्रवाल ने कहा कि व्यंग्यकारों को पैना और आग लगाने वाला लिखना चाहिए। समाज में विसंगतियों के खिलाफ जागरूक करना व्यंग्यकार का काम है। रामस्वरूप दीक्षित (टीकमगढ़), डॉ . महेन्द्र कुमार ठाकुर (रायपुर), भारत अनुराग तथा अभिजीत कुमार दुबे (अगरतला) ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

संयोजक राजशेखर खर चौबे (रायपुर) ने कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए आंदोलन आंदोलन में व्यंग्यकारों की भूमिका पर प्रकाश डाला। व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में रमेश सैनी (जबलपुर), अलका अग्रवाल सिग्तिया (मुम्बई), रेणु देवपुरा (उदयपुर), मुकेश राठौर (भीकनगाँव मप्र), टीकाराम साहू ‘आजाद' (नागपुर), अमृत शर्मा सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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