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भाषा का अस्तित्व लिपि पर अवलंबित है : प्रो. गुरूमीत सिंह


नागपुर/पुणे। भाषा का अस्तित्व लिपि पर अवलंबित होने से किसी भी भाषा को यदि जीवित रखना है तो उसकी लिपि ही अनिवार्य शर्त होती है। इस आशय का प्रतिपादन पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी के कुलपति प्रो. गुरूमीत सिंह ने किया। आचार्य विनोबा भावे जी की सत् प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के तत्वावधान में  पुदुच्चेरी में आयोजित 44 वें अखिल भारतीय नागरी लिपि सम्मेलन में उद्घाटक के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे।


नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के अध्यक्ष पूर्व कुलपति डाॅ.प्रेमचंद पतंजलि ने समारोह की अध्यक्षता की। प्रो. सिंह ने आगे कहा कि सभी भारतीय भाषाओं के मध्य समन्वय की भूमिका निभानेवाली नागरी लिपि के प्रचार, प्रसार व विकास के क्षेत्र में नागरी लिपि परिषद सराहनीय कार्य कर रही है। मुख्य अतिथि डाॅ.अनिल शर्मा 'जोशी', उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा ने अपने मंतव्य में कहा कि नागरी लिपि केवल लिपि नहीं है, बल्कि देश को एकसूत्र में बाँधनेवाली महत्वपूर्ण कडी है। दुख इस बात का है कि भारतीय युवा अपनी भाषा के प्रति उदासीन हैं। भाषा के लोगों की शक्ति पर भाषा की शक्ति निर्भर करती है।

विशिष्ट अतिथि डाॅ.अश्विनी कुमार, निदेशक,  रोगवाहक नियंत्रण अनुसंधान केंद्र, पुदुच्चेरी ने कहा कि हिंदी और देवनागरी लिपि हमारे लिए पवित्र नदी गंगा के समान है। हिंदी और नागरी लिपि हमारे खून में होने से वे हमारे लिए सरल माध्यम है।
नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डाॅ. हरिसिंह पाल ने बीज भाषण में कहा कि एक संपर्क लिपि के रूप में नागरी लिपि का स्वीकार करना बहुत जरूरी है। पांडिचेरी में पचपन भाषाएँ बोली जाती है तथा फ्रेंच भाषा भी वहाँ प्रचलित है। विविध भाषाओं को सीखने हेतु नागरी लिपि एकता की सूत्र बन सकती है। वैज्ञानिक गल्प लेखक डाॅ. शुकदेव प्रसाद, प्रयागराज ने भी अपने विचार रखे। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के अध्यक्ष डाॅ.प्रेमचंद पतंजलि, पूर्व कुलपति ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि समस्त भारतीय भाषाओं को एकसूत्र में बाँधना जरूरी है।भारत अाध्यात्मिक नेतृत्व की भूमि है।नागरी लिपि के अभियान में जब तक हम युवा वर्ग को नहीं जोडेंगे तब तक भारतीय भाषाओं  के विकास की कठिनाई दूर नहीं होगी।नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष, डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने भी अपना मंतव्य प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर  कुलपति प्रो. गुरूमीत सिंह पुदुच्चेरी को राष्ट्रीय नागरी सम्मान, डाॅ. अनिल शर्मा, 'जोशी', उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा को डाॅ. परमानंद पांचाल राष्ट्रीय नागरी सम्मान, डाॅ. राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्ने को आचार्य विनोबा भावे राष्ट्रीय नागरी सम्मान, डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र को चौधरी चरण सिंह राष्ट्रीय  नागरी सम्मान, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डाॅ. प्रभु चौधरी, उज्जैन को संत गंगादास राष्ट्रीय नागरी सम्मान तथा डाॅ.हाशम बेग मिर्जा, नलदुर्ग, महाराष्ट्र को पं. गौरी दत्त राष्ट्रीय नागरी सम्मान, डाॅ. तुंबम रीवा, ईटानगर, अरूणांचल प्रदेश को न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र राष्ट्रीय नागरी सम्मान से गौरवान्वित किया गया। 

समारोह में डाॅ. वीरेंद्र सिंह, पटना, डाॅ. गंगाधर वानोडे, हैदराबाद, कर्मवीर सिंह, हापुड, डाॅ. विनोद बब्बर, दिल्ली, डाॅ. गोपाल, विशाखापट्टनम्, उमाकांत खुबालकर, गाजियाबाद, डाॅ. पुष्पा पाल, दिल्ली, श्रीमती सरोज शर्मा, दिल्ली, श्रीमती अंशुमाला यादव, पटना, परिषद के कोषाध्यक्ष आचार्य ओम प्रकाश,  दिल्ली,  डाॅ. ऋतुराज निरंजन, पुदुच्चेरी, श्रीमती किसलय शर्मा, दिल्ली, डाॅ. बाबा कानपुरी, दिल्ली, प्रो. कार्तिकेय शर्मा, विश्व नागरी विज्ञान संस्थान, गुरूग्राम, हरियाणा, श्री मोहन द्विवेदी, गाजियाबाद, डाॅ. निशा मुरलीधरन,  चेन्ने, डाॅ.नागनाथ भेंडे, कलबुर्गी, कर्नाटक, डाॅ. के कविता, पुदुच्चेरी, अक्षत गोयल, दिल्ली आदि महानुभावों का सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में सक्रिय सहभाग रहा। सम्मेलन का सफल संयोजन व संचालन डाॅ. एस पदमप्रिया तथा डाॅ. जयशंकर बाबू ने किया तथा डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, कार्याध्यक्ष, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
साहित्य 5167412657206438851
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