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मीडिया समाज का दिशा दर्शक है : प्रो. अरुणकुमार भगत



नागपुर। मीडिया समाज का दिशा-दर्शक होता है। यह समाज के सभी पक्षों पर रोशनी डालता है। समाचार घटना प्रधान और तथ्यपरक होते हैं। इसलिए कहा जाता है कि समाचार की यात्रा तथ्य से सत्य की ओर होती है। जबकि समाचारेत्तर लेखन तथ्य और सत्य के साथ रोचक भी होता है। 

यह बात बिहार लोकसेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत ने  हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 'कौशलपरक हिन्दी - विविध आयाम' विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में कही। 

कार्यशाला के चौथे दिन 'समाचारेत्तर मीडिया लेखन' पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी मीडिया में समाचारेत्तर पक्षों पर मौलिक और प्रासंगिक लेखन की नितांत आवश्यकता है। समाचारेत्तर लेखन के विविध प्रकारों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में नवाचार की संभावनाओं को रेखांकित किया।

प्रो. भगत ने कहा कि मौलिक लेखन ही पाठक के हृदय और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। समाचारेत्तर लेखन के माध्यम से व्यक्त विचार ही समाज को आंदोलित करते हैं। अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने फीचर, व्यंग्य, आलेख, कहानी आदि विविध समाचारेत्तर आयामों पर उन्होंने सोदाहरण प्रकाश डाला।

औपनिवेशिकता से मुक्ति में ही हिन्दी की प्रयोजनीयता निहित : प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह

हम आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त हैं। हम हर काम में विदेशी भाषा का सहारा लेते हैं। यह हमारी मानसिकता बन गई है कि तकनीक, विज्ञान और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारतीय भाषा उपयुक्त नहीं है। जब तक हम इस मानसिकता को नहीं छोड़ेंगे तब तक हिन्दी  ही नहीं भारतीय भाषाओं का भी अपेक्षित विकास नहीं होगा। 

यह बात इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कार्यशाला में 'हिन्दी की प्रयोजनीयता' पर विचार करते हुए कही। 

प्रो. सिंह ने कहा कि भाषा हमारी सामाजिक सम्पत्ति है। यह हमारी मानसिकता और चेतना से संबन्धित है। इसलिए भाषा को सुदृढ़ करने और उसे समृद्ध बनाने का दायित्व भी हम सभी का है। हम तकनीकी और प्रशासनिक शब्दावली हिन्दी में चाहते हैं, पर हम अपने व्यावहारिक जीवन में हिन्दी का कितना उपयोग करते हैं, यह विचार का विषय है।

प्रोफेसर सिंह ने हिन्दी के विकास पर बल देते हुए कहा कि भाषा का विकास व्याकरणविद नहीं करते बल्कि देश की सामान्य जनता के व्यवहारिक संवाद से होता है। जापान, जर्मनी, फ्रांस, कोरिया आदि देशों ने तकनीकी और विज्ञान के लिए अपने देश की भाषा को अपनाया। हमें भी शिक्षा, तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में अपने देश की भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिन्दी का प्रयोग अपने व्यवहार में लाना चाहिए। 

स्वागत उद्बोधन देते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि हिन्दी की प्रयोजनीयता स्वयंसिद्ध है, जरूरत है उसे व्यवहार में लाने की। मीडिया के विविध माध्यमों के जरिए हिन्दी के प्रयोजन परक क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। संयोगवश इसके लिए अनुकूल माहौल निरंतर बन रहा है। कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्रा.दिलीप गिरहे ने किया।
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