किडनी प्रत्यारोपण उम्र और हृदय रोग की परवाह किए बिना हो सकता है
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डॉ. शिवनारायण आचार्य के साथ श्री नरेंद्र नागरवाला, श्रीमती ज्योति नागरवाला, डॉ. शैलेन्द्र गंजेवार एवं डॉ. वासुदेव रिधोरकर।
नागपुर। 67 वर्षीय श्री नरेंद्र नागरवाला हृदय रोग से पीड़ित थे और कुछ साल पहले उनकी बाईपास सर्जरी हुई थी।
जैसा कि किस्मत में लिखा था, वह स्थायी रूप से गुर्दे की विफलता से भी पीड़ित थे, जिसके लिए उन्हें डायलिसिस पर रखा गया था।
स्थायी गुर्दे की विफलता से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 2-3 बार आजीवन डायलिसिस से गुजरना पड़ता है। डायलिसिस करने के लिए नागरवाला को हर बार अपने गृहनगर से नागपुर जाना पड़ता था। यह उनके लिए कष्टप्रद था। इसलिए वह डायलिसिस से छुटकारा पाना चाहते थे।
उन्होंने अपने डॉक्टरों से डायालिसिस के विकल्प का अनुरोध किया।
किडनी ट्रांसप्लांट ही डायलिसिस का एकमात्र विकल्प है। लेकिन दिल की गंभीर समस्याओं के कारण उनका प्रत्यारोपण मुश्किल था। 63 साल की उनकी पत्नी अपनी एक किडनी दान करने के लिए आगे आईं। आमतौर पर 60 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को ही किडनी डोनर के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसलिए उनका पूरी तरह से मूल्यांकन किया गया और उन्हें एक किडनी दान करने के लिए सक्षम पाया गया।
इस बीच, श्री नागरवाला को सीने में दर्द होने लगा और यह पाया गया कि उनका बाईपास वाहिनी भी अवरुद्ध हो रहा है। किंग्सवे अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ शैलेंद्र गंजेवार ने तीन बार उनकी एंजियोप्लास्टी की। श्री नागरवाला की तबीयत स्थिर हो गई और जल्द ही गुर्दा प्रत्यारोपण करवाने के लिए उचित पाए गए।
किंग्सवे अस्पताल में उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। डॉ वासुदेव रिधोरकर, डॉ धनंजय बोकारे, डॉ अजय ओसवाल, डॉ चंद्रशेखरन चाम के नेतृत्व में एनेस्थेसियोलॉजिस्ट की टीम सहित डॉक्टरों की विशेषज्ञ टीम ने उसका ऑपरेशन किया। शामिल नेफ्रोलॉजिस्ट और प्रत्यारोपण चिकित्सक डॉ शिवनारायण आचार्य, डॉ विशाल रामटेके और डॉ प्रकाश खेतान थे। श्रीमती शालिनी पाटिल प्रत्यारोपण समन्वयक थीं।
इस प्रत्यारोपण में डायलिसिस तकनीशियनों, ओ टी नर्सेस और समर्पित ट्रांसप्लांट नर्सिंग टीम ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।