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राष्ट्रीय एकता की कड़ी है नागरी लिपि : डॉ. हरिसिंह पाल



नागपुर/पुणे। भारत की प्रधान लिपि देवनागरी राष्ट्रीय एकता की महत्वपूर्ण कड़ी है। अतः नागरी लिपि का भविष्य उज्ज्वल  है। इस आशय का प्रतिपादन नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने किया। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की मध्य प्रदेश इकाई तथा राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित आभासी गोष्ठी में वे अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे। 

'सार्वदेशिक लिपि देवनागरी की उपलब्धियां और संभावनाएं' गोष्ठी के इस विषय के संदर्भ में डॉ. पाल ने आगे कहा कि हमारी भारतीयता की पहचान नागरी लिपि से है। पूर्वोत्तर की 9 भाषाएं नागरी लिपि में लिखी जा रही है। 17 अगस्त 1975 को स्थापित नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली वैश्विक स्तर पर अपना कार्य कर रही है। 

राष्ट्रीय शिक्षक चेतना के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने प्रमुख अतिथि के रूप में अपने मंतव्य में कहा कि लिपि भाषा को संरक्षित करती है | अतः लिपि के बिना भाषा अधूरी होती है। लिपि भाषा की संवाहिक भी है। आकार और चिह्न लिपि के दो महत्वपूर्ण अंग हैं। लिपि को पूर्णता प्रदान करने में चिह्नों की आवश्यकता होती है। 

नागरी लिपि में व्यंजन के साथ स्वर समाहित है। भारतीय संस्कृति में अक्षर को ब्रह्म माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति ही ध्वनि से हुई है। अतः लिपि दिवस मनाने की परंपरा आरंभ होनी चाहिए।

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि ब्राह्मी लिपि से निर्मित नागरी लिपि का अविर्भाव लगभग आठवीं शताब्दी में हुआ। अधिकांश भारतीय भाषाओं को जीवंत रखने में, हिंदी को शक्ति प्रदान करने में तथा हमारी सांस्कृतिक गौरवशाली परंपरा को अक्षुण्ण रखने में नागरी लिपि का महनीय योगदान है। 

हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी सोशल मीडिया में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के लेखन में नागरी लिपि के बजाय रोमन लिपि का प्रयोग कर रही है। यह प्रचलन नागरी लिपि के अस्तित्व पर संकट ला सकता है। अतः दैनंदिन व्यवहार में नागरी लिपि का प्रयोग व्यापक स्तर पर होना चाहिए। नागरी लिपि परिषद की तमिलनाडु इकाई की प्रभारी डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्नई ने कहा कि देवनागरी लिपि भारतीय संस्कृति की रीढ़ है। दक्षिण भारत में नागरी लिपि लोकप्रिय है। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सिंधु घाटी की लिपि से लेकर ब्राह्मी लिपि और देवनागरी लिपि विश्व सभ्यता की भारत की अविस्मरणीय देन है। 

वर्तमान में दुनिया में 3000 से अधिक भाषाएं बोली जाती है, जबकि लिपियाँ 400 है। देवनागरी लिपि इस देश की अनेक भाषाओं और बोलियों की स्वाभाविक लिपि बनी हुई है। नागरी लिपि सबसे विलक्षण ही नहीं, पूर्णता के निकट है। 

अतः देवनागरी लिपि अधिक वैज्ञानिक, सर्वांगीण और युक्ति संगत है। नागरी लिपि के ध्वनियों के उच्चारण व लेखन में एकरूपता है। हिन्दी वार्ता के पत्रकार श्री. सत्य प्रकाश ने कहा कि नागरी लिपि में 120 बोलियाँ और भाषाएं लिखी जाती है। 

'नासा' के अनुसार संस्कृत में 102 अरब शब्द हो सकते है अत: हमारे पास समृद्ध भाषा व लिपि के होते हुए रोमन के प्रति मोह को त्यागना होगा | भारत सरकार के सूचना प्रकोष्ठ के सलहाकार श्री. हरेराम पंसारी ने कहा कि नागरी लिपि इतनी सक्षम है कि भविष्य में विश्व की भाषाओं के लिए नागरी लिपि का भी प्रयोग  होता रहेगा।

इस अवसर पर राष्ट्रीय शिक्षक  संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा अशोक जाधव, मुंबई, डॉ. पूनम माटिया, नई दिल्ली, डॉ. दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी ने अपने विचार व्यक्त किए। 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, उज्जैन ने स्वागत भाषण दिया। प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। 

डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तावना की। संगोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया । इस आभासी गोष्ठी में प्रा. मधु भंभानी, नागपुर, डॉ. शंकर सिंह परिहार, डॉ. संगीता पाल, कच्छ, गुजरात, डॉ. सरस्वती वर्मा, डॉ. नम्रता ध्रुव, श्रीमती पुष्पा गरोठिया, श्री. हीरा ठाकुर सहित 11 राज्यों के प्रतिभागियों ने अपनी सहभागिता दर्शायी । डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने धन्यवाद ज्ञापित किए।
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