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महाकवि कालीदास की पुण्य स्मृति में आयोजन हुआ बहुभाषी कवि सम्मेलन


प्रभा मेहता ने सुनाई 'विदेशों में स्थायी रूप से बसे बच्चों के माता पिता की पीड़ा और एकाकीपन के दर्द'

नागपुर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद की विदर्भ शाखा द्वारा महाकवि कालीदास की पुण्य स्मृति में बहुभाषी कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें विदर्भ के बीस विभिन्न भाषा भाषी कवियों ने अपनी मातृभाषा में काव्यपाठ किया।विशेषता यह कि रसिक श्रोताओं ने कविताओं का आह्वान मूल  भाषा में ही किया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही सभागृह में पूरा देश झंकृत हो रहा था।

इस अद्वितीय कार्यक्रम में प्रभा मेहता ने अपनी मातृभाषा गुजराती में कविता पाठ किया।
विदेशों में स्थायी रूप से बसे बच्चों के माता पिता की पीड़ा, एकाकीपन के दर्द को दर्शाती कविता को प्रभा मेहता ने गुजराती में प्रस्तुत की।
       
              'तो केटलू सारू थात'
      
घर थी दूर, खू..ब  दू......र,
परदेश मां वसेला छोकराओ,
समझावे छे एमने,जे हवे
खूब घरडा थई गया छे,
तन मन थी मांदा रहे छे।

कहे छे-बधुज तो छे घर मां,
धन दौलत, नोकर चाकर अने मनोरंजन ना अनेक साधनों,
ड्राइंग रूम नी भीत उपर मोटो
एलसीडी टीवी टंगाएलू छे,
जे चोविस कलाक बोलतू होय छे,
सारे रिमोट नी सगवड़ पण ते,

अनेक एनाथी पण मन नदी भरातू तो सी डी, डीवीडी, व्हाट्सएप,
केटला बधा साधनों छे मनोरंजन ना, लोकों थी जोडा़ववाना,
हां बेटा, घणा साधनों छे मनोऱजन ना, लोकों थी जोडा़ववाना,
पण तमने केवी रीते समझाऊं के
बंद वारणाओं नी भीतर 

रात्र दिवस बोलता बड़बड़ाता,
आ साधनों थी मन,
जराए नथी भरातू, केम के ए
फक्त संभलावेज छे
सांभलता तो जरा ए नदी,

मन तो बोलवानूं थाय छे, तरसे छे,
पोताना लोकों थी बोलना,
प्रेम नां बे बोल सांभलवा झुरे छे,
पोताना सुख दु:ख कहीं मन,
हल्कु करवानूं थाय छे,
घर आंगणें रमता बालकों नूं हास्य,
मोटाओ नी मजा मस्करी वगर,

घर सूनूं सूनूं लागे छे ने
आंखों थी वादल  वरसे छे,
जो बेटा मनोरंजन ना आ साधनों,
नां पण होत, पण तमें अहिं होत,
आपडे़ बधा साथे होत, तो,
केटलू आनंद आवत, मजा आवत,
तो केटलू सारू थात।
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