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मध्यकाल श्रृंगारिक काव्य निर्मिति का कालखंड रहा : प्रो. संगीता पवार


नागपुर/पुणे। हिंदी साहित्य के इतिहास का मध्यकाल श्रृंगार काव्य निर्मिति के कालखंड के रूप में पहचान लेकर आगे बढ़ गया। यह विचार शरद चंद्र पवार महाविद्यालय,  जेजुरी, पुणे, महाराष्ट्र की हिंदी विभाग की प्रो. संगीता दत्तात्रय पवार ने व्यक्त किए। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में आयोजित 115 वीं गोष्ठी के विषय - 'रीतिकाल के प्रबंध काव्य' पर मुख्य अतिथि के रूप में वे अपना मंतव्य दे रही थीं। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख,  ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। प्रो. पवार ने आगे कहा कि - मध्यकाल में प्रबंध काव्य की निर्मिति तो हुई पर उन्हें अधिक प्रसिद्धि नहीं मिली।

संगोष्ठी की वक्ता तथा मेट्स विश्वविद्यालय, रायपुर , छत्तीसगढ़ के हिंदी विभाग की प्राध्यापिका डॉ. सुनीता शशि कांत तिवारी ने कहा कि - रीतिकाल में लगभग 20 से 22 प्रबंध काव्य और खंडकाव्य पाए गए । प्रबंध काव्य की रचना करने वाले प्रमुख कवि चिंतामणि, मंडन, लाल कवि, सुरति मिश्र,  सोमनाथ, गुमान मिश्र और रामसिंह हैं। 200 वर्षों के इस काल में रीति निरूपण की परंपरा का विकास और लक्षण ग्रंथों का लेखन हुआ। 

डॉ. रीता यादव, शासकीय दाऊ कल्याण कला एवं वाणिज्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलौदा,  बाजार,  छत्तीसगढ़ ने कहा कि - रीतिकाल के कवियों में व्यापक प्रवृत्ति रीति निरूपण रही है। अलंकारिकता और श्रंगारिकता जैसी विशेषताओं के साथ रीतिकाल के प्रबंध काव्यों में कथा विन्यास और चित्रण की अपेक्षा वस्तु वर्णन व प्रेम की प्रधानता है।  

संस्थान के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि-  हिंदी साहित्य के इतिहास में रीति काव्य का अपना एक स्थान है। काव्य कला की दृष्टि से रीति काल की उपलब्धियां कम नहीं हैं।

इस अवसर पर संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी की विशेष उपस्थिति रही। सरस्वती वंदना तथा गोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन  डॉ. रश्मि चौबे, प्रतिनिधि गाजियाबाद ने किया। डॉ. वंदना श्रीवास्तव,  लखनऊ ने स्वागत भाषण दिया। श्रीमती पुष्पा 'शैली' श्रीवास्तव, रायबरेली,  उत्तर प्रदेश ने आभार प्रदर्शन किया।
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