अजीब दास्तां
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पारो और महेश की सगाई एक अजीबो गरीब मोड़ से गुजर कर अपने आप में एक दास्तां बन गई महेश की दस दिनों की छुट्टी में दो अजनबी दिल ऐसे मिले, जैसे कि ऐसे लग रहा था, कि उनकी सदियों से पहचान हो।
महेश और पारो की सगाई की कहानी भी अजीब दास्तां है। महेश अपना ट्रेनिंग खत्म करके अपने घर दस दिनों की छुट्टी में आया। महेश के दोस्त दीनू को जब पता चला कि महेश छुट्टी पर घर आया तो दूसरे दिन सुबह-सुबह दीनू उसे मिलने आया और जोर जोर से हिला कर उसे जगाने लगा। महेश हरबदी में उठ कर बैठा, उसने दीनू से पूछा कि क्या हो गया। तू इतनी जल्दी मैं क्यों है, मैं छुट्टी में आया हूं कोई ड्यूटी पर भागना तो नहीं है मुझे। दीनू ने कहा मेरा एक दोस्त है, उसे कुछ सलाह की जरूरत है। मैंने उसे बताया था कि मेरा एक दोस्त है जो बहुत होशियार है जब वह छुट्टी में आएगा तब मैं महेश को आपके पास लेकर आऊंगा और हम मिलकर उसे सलाह देंगे। महेश ने कहा मैं उसे जानता नहीं और कोई सलाह नहीं देना चाहूंगा मुझे तू कोई परेशानी में मत डाल चैन से छुट्टी मनाने दे। दीनू कुछ देर चुप रहा फिर बोला वह बहुत अच्छा है तू उसे मिलेगा तो उसे अपना सा लगेगा। दीनू महेश के पीछे पड़ा तो महेश तैयार होकर दीनू के साथ उसके दोस्त के घर गया। दीनू पारो के भाई का दोस्त था। पारो एक सुंदर सुशील अच्छे घर की शांत लड़की थी। भाई को उसकी शादी की चिंता थी इसलिए पारो के भाई ने बात दोनों के पास निकाली थी। तब दीनू ने कहा था मेरा एक दोस्त है वह भी बहुत सुंदर है और अच्छी नौकरी में है। वह जब छुट्टी पर अपने घर आएगा तब मैं उसे लेकर आपके पास आऊंगा। पारो का दस बजे का कॉलेज था तो वह नौ बजे घर से निकल जाती थी। दीनू को महेश को उनके घर लाना था। अगर वह महेश को यह सब बताता तो महेश उसके साथ उनके घर आता ही नहीं क्योंकि महेश हरदम बोलता था कि अपने घर को पहले थोड़ा ठीक-ठाक करूंगा फिर शादी के लिए सोचूंगा अभी तो नौकरी शुरू हुई है पैसे जमाने में दो साल तो लगेंगे महेश का घर पुराने टाइप का था।
जब महेश और दीनू पारो के घर पहुंचे तो उसे घर का माहौल कुछ अजीब सा लगा पारो के घर थोड़ी भीड़ थी और कोई कहीं से झांक रहा था तो कोई कहीं से थोड़ी देर बाद एक सुंदर लड़की नाश्ता लेकर आई, फिर चाय लेकर आई। महेश को बड़ा अजीब लगा कि यह लोग इतने पहुंचे हुए हैं कि एक पराए लड़के के सामने अपनी लड़की से चाय नाश्ता दे रहे हैं। चाय नाश्ते के बाद दीनू और महेश वहां से निकल गए। दीनू महेश को अपने घर लेकर आया और थोड़ी ही देर के बाद पूछा महेश लड़की कैसे लगी तुझे। महेश यह सुनकर गुस्से से भर गया और दीनू से बोला यह सब क्या है एक पराई लड़की को मैं आंखें ऊपर करके कैसे देखूं वह तेरे दोस्त की बहन थी तू क्या करने के लिए ले गया था हा सलाह कुछ की नहीं और सीधे लड़की के बारे में पूछ रहा है। तेरा दिमाग खराब हुआ है। फिर दीनू ने विस्तार से महेश को सब बताया। मुझे लगा लड़की मेरी देखी हुई है और वो लोग भी बहुत अच्छे हैं तेरा जीवन सुधर जाएगा उस घर में शादी करके। शादी के बाद वह अपने मां के पास रहेगी जब तक तू घर ठीक नहीं करता अगर मैं तुझे लड़की देखने चल बोलता तो तू आता ही नहीं इसलिए मैंने बताया नहीं मुझे लगा एक बार पारो को देख लेगा तो तू अपना इरादा बदल देगा
उस समय तो महेश वहां से चला गया लेकिन जो एक नजर पारो को महेश ने देखा था तो महेश के आंखों के सामने उसके लंबे बाल आ रहे थे महेश को जहां बिठाया था। वहां से परदे के पीछे लंबे बाल अपने हाथों से समेट रही एक दुबली पतली लड़की नजर आ रही थी क्योंकि पर्दा पंखे की हवा से हिलते जा रहा था। महेश को देखना अच्छा लग रहा था लेकिन अपने दोस्त के घर में इस तरह की शरारत करना उसे अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए उसने उस तरफ से आंखे फेर कर अपनी कुर्सी थोड़ी खिसका ली थी। महेश बहुत हैंडसम था एक बार महेश को कोई देख लेता वह उसकी तारीफ किए बिना नहीं रहता था जब चारों के घर के आजू-बाजू वालों ने महेश को देखा तो उनके मुंह से यह निकला चेहरा क्या हीरे के जैसा चमक रहा था। चेहरे से नजर हत ही नहीं रही थी, देखते रहने को दिल कर रहा था जब बड़े बुजुर्गों का यह हाल था तो जवान लड़कियों का क्या हाल होता होगा। महेश को देखकर स्कूल कॉलेज मोहल्ले में लड़कियां महेश के पीछे पड़ती थी। कोई कोई चंद लड़की महेश को डायरेक्ट ही पूछ लेती कि मैं तुमसे शादी करना चाहती हूं, लेकिन महेश किसी लड़की को अपने आसपास भटकने नहीं देता था। इसलिए महेश ने जब पारो को दिखा, जब शादी की बात की तो महेश की आंखों के सामने पारो के लंबे बाल नजर आ रहे थे।
वैसे तो महेश ने नजर भर देखा भी नहीं था पारो को। जब पारो चाय दे रही थी तब सोसर गिरने ही वाली थी, क्योंकि पारो का भी हाथ श॔म और डर के मारे हिल गया था।महेश ने ऊपर देखा तो पारो का सुंदर चेहरा ढो सेकंड के लिए देखा। जब से दोनों की शादी की बात चल रही थी, तब से पारो का चेहरा महेश के आंखों के सामने आ रहा था। महेश ने बहुत सारी लड़कियों को करीब से देखा था लेकिन पारो जैसी लड़की नहीं मिली थी। इसलिए महेश चारों तरफ से सोच विचारों में घिर गया था। दीनू ने अपने घर छोटी सी पार्टी रखी थी जिसमें दोनों के पुराने बचपन के दोस्तों को दीनू ने बुलाया था। जब महेश शाम को दीनू के घर आया तो दोस्तों की भीड़ में महेश की आंखें किसी को खोज रही थी। दीनू ने भाप लिया और महेश से पूछा कि क्या ढूंढ रहा है। जब महेश ने बताया पारो का भाई भी तो तेरा दोस्त है तूने उसे नहीं बुलाया। दीनू ने जवाब दिया मुझे लगा अगर मैं पारो के भाई प्रभु को बुलवाऊंगा तो तू उसके सामने कटा कटा सा रहेगा और एंजॉय नहीं करेगा, इसलिए नहीं बुलाया। महेश पार्टी में डांस करने और गाना गाने में सबसे आगे रहता था, लेकिन आज महेश का दिल पार्टी में लग नहीं रहा था। महेश ने दीनू से कहा अभी मेरी छुट्टी खत्म होने में तीन दिन बाकी है। मैं एक बार पारो से अकेले में मिलना चाहता हूं। दीनू बहुत खुश हुआ और उसने तुरंत प्रभु को यानी पारो के भाई को फोन किया और दूसरे दिन पारो को कॉलेज मत भेजना महेश पारो से मिलना चाहता है। हम कल 11: 00 बजे तक सुबह आएंगे।
दूसरे दिन सुबह 11: 00 बजे दीनू महेश को लेकर आया। महेश ने नेवी ब्लू कलर का सूट पहना था। महेश का गोरा रंग काले ब्लू कलर में और निखर गया था। घर के कमरे में पारो और महेश में अमने-सामने बैठे थे। पारो का दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि के गले से आवाज नहीं निकल रही थी। पारो थोड़ी तिरछी होकर बैठी थी पूरा चेहरा महेश के सामने नहीं था। वह बहुत शर्मीली थी। महेश ने पारो से पूछा आप अपनी मर्जी से शादी कर रही है या घर वालों के दबाव में आकर बोल रही है। पारो ने एक ही वाक्य बोला जो घर वालों की मर्जी है वही मेरी मर्जी, क्योंकि घरवाले जो भी करेंगे मेरे भले के लिए करेंगे। बस दोनों तरफ से हां हो गई लेकिन यह सब बात महेश ने अपने मां से नहीं कही थी। सब होने के बाद महेश ने अपनी मां को बताया। इधर मां नाराज हो गई फिर महेश को मां को समझाने में एक दिन चला गया। महेश को निकलने में एक दिन रह गया था। शाम को आसपास के लोग बुलाकर सगाई कर दी क्योंकि टाइम नहीं था ज्यादा तैयारी करने में। दूसरे दिन महेश को सुबह निकलना था। सगाई के वक्त पारो के साथ कॉलेज से चार लड़कियां आई थी। दो पारो की कॉलेज फ्रेंड थी और दो क्लासमेट थी। जब उसकी फ्रेंड ने महेश की सुंदरता की तारीफ की तो पारो का चेहरा खुशी से लाल हो गया। पारो को खुशी से कुछ भी सूझ नहीं रहा था। उसे लग रहा था सारे जहां की खुशी ईश्वर ने उसकी झोली में डाल दी है।
सगाई हो गई महेश अपने घर चला गया दूसरे दिन निकलना था। तो सुबह 9: 00 बजे महेश पारो के घर मिलने आया। 11: 00 बजे की ट्रेन थी। महेश को सामने कुर्सी पर बिठाया और पारो को उसकी बुआ ने महेश के पैर छूने बोला। पारो जब पैर छूने नीचे झुकी तो महेश ने अपने पैर पीछे किये, तो पारो ने ऊपर देखा। महेश की आंखों में थोड़ी शरारत थी। जैसे पारो ने ऊपर देखा तो महेश ने पैर सामने कर दिए। महेश पारो का पूरा चेहरा देखना चाहता था। क्योंकि पारो इतनी शर्मीली थी एकदम सामने आती ही नहीं थी और आई भी तो नजर नीचे झुका लेती थी। महेश को पारो को अच्छे से देखने का चांस नहीं मिल रहा था। इसलिए महेश ने शरारत की थी। थोड़ी ही देर के बाद पारो के भाई ने गाड़ी निकली स्टेशन जाने। महेश और पारो को पीछे बिठाया और प्रभु और दीनू सामने बैठे। दूसरे गाड़ी में दीनू की मां बहन और पारो की मां बैथी, गाड़ी पारो के पिता चला रहे थे। पारो और महेश चुपचाप बैठे थे। एक दो बार महेश ने परो की चूड़ियों को अपनी उंगली से इधर-उधर घुमाए। जब पारो के हाथ को महेश की उंगलियां छूने लगी तो मानो पारो के पूरे शरीर में कम कंपी होने लगी पारो ने अच्छी नजर से महेश को देखा। महेश ने एक शॉप पर उसे कहा स्टेशन नजदीक आ गया कुछ बात करनी है तो कर लो नहीं तो बाद में पछताना पड़ेगा। लेकिन शर्मीली पारो क्या बात करती। उसकी तो बोलती बंद थी। महेश के साथ बैठकर वह अपने आप को बहुत गर्व महसूस कर रही थी। पारो अपना हाथ महेश के हाथ के पास लाने की कोशिश कर रही थी। उसे दिल से लग रहा था कि महेश पूरे रास्ते उसकी चूड़ियां से खेले। जब गाडी में बैठे धे तब दोनों में बहुत दूरियां थी लेकिन धीरे-धीरे दोनों इतना पास आ गए कि दोनों को पता ही नहीं चला कि कब दोनों के हाथ टकराने लगे। अब तो स्टेशन आ गया था। दोनों नीचे उतरे, महेश ने कुली को आवाज दी और अपना सामान उठाकर कुली के पीछे-पीछे स्टेशन के अंदर जाने लगा तभी सब लोग महेश के पीछे अंदर तक गए।
दीनू के बहन के पास पारो खड़ी थी, गाड़ी यानी ट्रेन आने का टाइम नजदीक नजदीक आ रहा था पारो की दिल की धड़कन में तेजी हो रही थी। पता नहीं 2 दिन में महेश से उसे इतना लगाव हो गया था कि वह कितने दिनों से महेश के साथ है। धीरे-धीरे पारो की आंखें नम होती जा रही थी। शर्म के मारे वह जल्दी से अपनी आंखें पोंछ लेती थी। कुछ देर बाद पारो के सीने में दर्द इतना बढ़ गया कि अपनी धड़कनों की आहट उसे सुनाई देने लगी। कभी लगता दौड़कर महेश के सीने से लगकर खूब फूट कर रोए। लेकिन सबके सामने ऐसा कर नहीं सकती थी। महेश को भी महसूस हो रहा था कि वह कोई अपने को छोड़कर जा रहा है। आर्मी की ट्रेनिंग खत्म करके महेश अपने घर आया था। इन दिनों में महेश में बहुत बदलाव आया था वह बहुत कठोर हृदय का बन चुका था और आंसू उसकी आंखों से कोसो दूर चले गए थे। लेकिन आज जब पारो को वह छोड़कर जा रहा था तो उसके सीने में भी दर्द हो रहा था और उसकी भी आंख नम हो रही थी। वह अपने मन को बहुत समझाने की कोशिश कर रहा था उसके समय समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसा बंधन है जिस लड़की को सालों में मैंने कभी देखा नहीं ना कोई पहचान। अभी चार-पांच दिन पहले मिला हूं और मुझे इतनी बेचैनी हो रही है छोड़कर जाने को। दिल ही नहीं कर रहा इस शहर को छोड़ने का। पहले यहां रहने को दिल नहीं था। इसलिए मैं आर्मी में गया और आज का दिन है कि मुझे शहर से दूर जाने का दिल नहीं कर रहा। पैर इतने भारी लग रहे हैं मानो कह रहे हैं उनको कहीं जाने का दिल ही नहीं है। मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था की हे ईश्वर मुझे शक्ति दो मैं कमजोर पढ़ रहा हूं इस रास्ते में से कैसे माया और अपनापन है एक पराई लड़की इतनी अपनी सी लगने लगी। महेश पारो की नजर एक दूसरे को देख लेते।
महेश ने बहाना करके दीनू के बहन से बात करने आ गया क्योंकि पारो दीनू के बहन के पास ही खड़ी थी। फिर दीनू की बहन ने मजाक से बोल ही दिया कि मुझसे बात करने नहीं आए आप पारो से मिलने आए हो भैया। महेश ने शरारत से कहा ठीक है यह समझ ले। क्या करूं आप लोग हमें मिलने नहीं दे रहे सब पास पास खड़े हो। जब महेश वहां आया तो परो के आसुं भर आए। इस बार वह खूद को रोक नहीं सकी। क्या करें ईश्वर ने यह रिश्ता ऐसे बनाया है की जिसने भी इस रिश्ते का महत्व समझा वह जोड़ी पूरे जीवन में एक दूजे के साथ ऐसा ही प्यार लुटाते हैं। उनका प्यार कभी कम नहीं होता, पल-पल बढ़ते ही रहता है। यह सब सोचते सोचते ट्रेन आ गई और महेश ट्रेन में सामान लेकर चढ़ गया। सामान जगह पर रखकर दरवाजे में आकर खड़ा हो गया। ट्रेन छूट गई और पारो फूट फूट कर रोने लगी। इस बार उसका रोना शर्म से परे था, इस बार उसे खुद कुछ याद नहीं था कि उसके पास कौन खड़ा है। उधर महेश हाथ हिलाते हुए जा रहा था। जब तक नजर से ओझल नहीं हो गया सब हाथ हिलाते रहे। थोड़ी देर में किसी ने चेन खींची तो ट्रेन रुक गई। तो सब दौड़ कर सामने गए, फिर एक नजर पारो और रमेश ने एक दूजे को कुछ क्षण के लिए देखा और फिर ट्रेन चलने लगी। फिर से महेश हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ गया। अपनी सीट पर बैठकर पारो के नाम की अंगूठी को ध्यान से देखने लगा और वह चार दिन की यादों में खो गया।
- मालती माणिक
लखनऊ, उत्तरप्रदेश