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रोशनी की तलाश


हर लफ़्ज में रोशनी ढूँढती हुई ग़ज़लकार माधुरी राऊलकर अपने 19वें ग़ज़ल संग्रह तक आ पहुँची हैं। यह तलाश जारी है और रहनी चाहिए। सृजन बेचैनियों से उपजता है। उजाले समेटकर ग़ज़लों के हवाले कर देता है। 
प्रक्षेप प्रकाशन की इस कृति में कुल 72 ग़ज़लें समाविष्ट हैं।जीवन जगत की संक्रान्त छवियों को स्याही पहनाती हुई ग़ज़लकार अंततः कुछ निष्कर्षों तक पहुँचती हैं, जैसे समंदर तक पहुँची हुई नदियां ।हर लहर का अपना दर्द है, लय है, रवानी है,ध्वनि है। शोर है, मौन है, विलय की नैसर्गिकता है।
     
प्रणय प्रसंगों के रूमान  की महीन पच्चीकारी से अलग माधुरी की ग़ज़लों ने हमेशा सच के असमतल धरातल से कच्चा माल अर्जित किया है। उनकी पूर्ववर्ती और अद्यतन ताज़ा ग़ज़लों में एक फर्क  साफ ध्वनित होता है, जो जीवन का सारांश हस्तगत होने के बाद मिलता है-'क्या पता क्या सुबह शाम करते रहे। बस जीने का इंतजाम करते रहे।। जिन्दगी में कुछ भावुक मोड़ यादों की आमद से बनते हैं। माँ की याद  रूई के फाहे सी होती है- ‘दुआओं का सैलाब है माँ का होना।’ ‘इबादत बढ़ती गयी’ एक ऐसी ग़ज़ल है जो सच को खुली आँखों से देखने का साहस रखते हैं उन्हें जरूर पढ़नी चाहिए- ‘गुनाहों में जैसे इजाफा हो रहा। वैसी खुदा की इबादत बढ़ती गयी!’ और यह भी- ‘कुछ खुशियों की रौनकें और गम बेशुमार हैं। हर पन्ना लहू से भरा दिखता हर अखबार है।’
     
जीवन में आशा और निराशा के बीच जंग चलती रहती है।लेकिन ज्यादातर जीत उम्मीद की ही होती है।एक अनामिक आशावाद जिन्दगी को थामे रखता है। वक्त के बदलाव को- घर, आँगन, रिश्ते, समाज, मौसम सभी में व्याप्त विरोधाभासों को बड़ी शिद्दत से रेखांकित करती हैं माधुरी- ‘खूब दिखते रिश्तों के अंबार अभी। मगर मिलता नहीं सच्चा प्यार कभी।’
 
उनके तमाम संग्रहों में रूमान का अभाव सा पाया जाता है पर इसमें वे खुलकर कहती हैं - ‘अगर मेरे साथ होते आप। खुशी की बरसात होते आप।’ हुनर, शबनम, सफर, जिन्दगी, सरगम जैसे शब्द उनकी ग़ज़ल में अक्सर दिखाई देते हैं। उनकी ग़ज़ल को समझने के लिये मशक्कत नहीं करनी पड़ती।सहजगम्यता माधुरी की ग़ज़लों की खूबी है जो उनकी पहचान भी है।
जीवन के सारे उतार चढ़ाव उन्हें प्रभावित करते रहे पर वे निरायास ही ग़ज़लों में उतर  गये ।ग़ज़ल के प्रति उनकी दीवानगी में कोई कमी नहीं आई।अंततः वे पाठकों के लिये एक सूक्त दे जाती हैं जो संग्रह का प्राण स्वर है--
"जो सलीके से लिखना जानता है।ग़ज़ल उसी से निबाह करती है।"

समीक्षक- इन्दिरा किसलय
ग़ज़ल संग्रह- हर लफ़्ज में रोशनी
ग़ज़लकार- माधुरी राऊलकर
प्रकाशक- प्रक्षेप प्रकाशन
मूल्य- 125/-
समिक्षा 9194074539742354580
मुख्यपृष्ठ item

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