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अधिक अपेक्षाएं निराशा को जन्म देती हैं : डॉ. शैलेष पानगांवकर


नागपुर। 'अधिक अपेक्षाएं निराशा को जन्म देती हैं और जब निराशा किसी व्यक्ति को घेर लेती है तो उसकी सोच और कार्यों में नकारात्मक लक्षण उभरने लगते हैं। ऐसी नकारात्मक मनःस्थिति  से बचने के लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह अपना मनोबल बनाए रखें और पूरी निष्ठा के साथ अपने कार्यों और लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहे..' ये उद्गार थे जाने माने मनोरोगतज्ञ डॉ. शैलेश पानगांवकर के जो उन्होंने विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के कार्यक्रम 'संवाद' में  साहित्यकार डॉ. सागर खादीवाला से बातचीत करते हुए व्यक्त किये। आपने मनुष्य  के स्वभाव और मानसिकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न बिंदुओं  का विश्लेषण करते हुए सदैव सकारात्मक बने रहने के उपाय भी बताए।


बाल्यावस्था से लेकर आज के मुकाम तक पहुंचने की जीवन- यात्रा के दौरान आए घटनाक्रम, उतार- चढ़ाव तथा स्मरणीय अनुभवों का रोचक ढंग से वर्णन करते हुए आपने युवा पीढ़ी को सलाह दी कि  जीवन के हर मोड़ पर आने वाली समस्याओं का स्थितप्रज्ञ की तरह अविचलित होकर सामना करते हुए खुले मन से विचार करने पर हर समस्या का हल निकाला जा सकता है। चिंता व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा क्रियाकलाप पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डालती है इसलिए चिंता-मुक्त रहने का प्रयास ही श्रेयस्कर है। 

मोबाइल की आदत को एक नशा बताते हुए उन्होंने कहा कि जैसे हर नशा व्यक्ति को कुछ ना कुछ नुकसान पहुंचाता है उसी प्रकार मोबाइल का नशा उससे कहीं अधिक हानि पहुंचा सकता है। अच्छी नींद के लिए सोने से आधा घंटा पहले मोबाइल देखना बंद कर देना चाहिए। श्रोताओं के प्रश्नों तथा मनोविज्ञान से संबंधित जिज्ञासाओं का आपने रोचक ढंग से समाधान किया। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के श्रोतागण  बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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