सर्वधर्म समभाव : एक विस्तृत विमर्श
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भारत सदियों से अनेक धर्मों, दर्शनों और आस्थाओं की संगम- स्थली रहा है। 'सर्वधर्म समभाव' उसी सांस्कृतिक विरासत की प्राणवायु है - एक ऐसी दृष्टि-संपन्न संकल्पना जो प्रत्येक व्यक्ति को अपने- अपने आराध्य का सम्मानपूर्वक पालन करने के साथ-साथ अन्य धर्मों के प्रति भी समान श्रद्धा, करुणा व सहअस्तित्व का भाव ग्रहण करने के लिये प्रेरित करती है।
संकल्पना का अर्थ एवं दार्शनिक पृष्ठभूमि
सर्व धर्म = सभी धर्मों की संपूर्ण शिक्षाएँ
सम भाव = समान दृष्टिकोण, निष्पक्ष अनुभव
- 'एकोऽहम् बहुस्याम्' - ऊपरी विविधता के भीतर अन्तःस्थित एकत्व का यह वैदिक घोष ही समभाव की जड़ है।
वेद : 'एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति' (ऋग्वेद 1|164|46) बताता है कि सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक नामों से पुकारते हैं।
उपनिषद्: प्रज्ञयोगोपनिषद् के षष्ठ अध्याय में ऋषि याज्ञवल्क्य तथा कौण्डिल्य का संवाद उद्धृत करता है -
ज्ञानविज्ञानयोः केन्द्रम् आलोकस्य निधानम् प्रभुम् ।
जिज्ञासावस्तुलोकं ज्वालयाम सूर्ततमम् ॥
- अर्थ: ज्ञान- विज्ञान के प्रखर आलोक में हम जिज्ञासा-जगत को प्रकाशित करें, जिससे प्रत्येक साधक परमप्रभु तक पहुँच सके।
ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक उदाहरण
काल-खंड महापुरुष / घटना समभाव का प्रत्यक्ष उदाहरण - मौर्य युग सम्राट अशोक कलिंग युद्ध के बाद अहिंसा व सर्वधर्मीय धम्म नीति, शिलालेखों में 'सकल- लोकहित'।
मध्यकाल संत कबीर, भक्त रविदास 'हिन्दू कहैं, तुरुक कहै' - सभी भेदों से परे 'साहेब' की वाणी।
16वीं सदी सम्राट अकबर ‘सुलह- ए- कुल’ (सबसे कोमल सद्भाव) एवं ‘दीन- ए- इलाही’ के माध्यम से धार्मिक संवाद।
औपनिवेशिक काल स्वामी रामकृष्ण परमहंस स्वयं पर ईसाई, इस्लामी, वैष्णव तथा अद्वैत साधनाएँ आज़माकर एक ही ईश्वर की अनुभूति का प्रतिपादन।
आधुनिक युग महात्मा गांधी प्रार्थना- सभाओं में गीता- क़ुरआन- बाइबिल के पाठ; ‘रघुपति राघव’ में 'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम'।
इसके अतिरिक्त, सिख पंथ की लंगर परम्परा, इस्लाम का सदक़ा- ज़क़ात, ईसाई सेवा- मिशन, जैन अहिंसा व बौद्ध करुणा - सभी में समभाव की आत्मा निहित है।
आधुनिक संवैधानिक व वैश्विक परिदृश्य
भारतीय संविधान की प्रस्तावना 'पंथनिरपेक्ष' (Secular) राज्य की घोषणा करती है; अनुच्छेद 25-28 प्रत्येक नागरिक को धर्म-पालन की स्वतंत्रता देते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ 1981 में स्वीकृत Declaration on the Elimination of All Forms of Intolerance and of Discrimination Based on Religion or Belief द्वारा सर्वधर्मीय समता को वैश्विक मानक बनाता है।
5. व्यवहारिक अनुप्रयोग
क्षेत्र समभाव को जीने की सरल विधि -
परिवार बच्चों के साथ सभी त्योहारों में सहभागिता, पुस्तकालय में विविध धर्म- ग्रन्थ।
विद्यालय मॉर्निंग असेंबली में सर्वधर्म प्रार्थनाएँ; मूल्य-शिक्षा में 'वसुधैव कुटुम्बकम्'।
समाज-सेवा रक्तदान शिविर, आपदा-राहत, भोजन बैंक - समुदाय से परे मानवीय मापदण्ड।
संचार-माध्यम सोशल- मीडिया पर किसी मत के विरुद्ध घृणा- भाषा न फैलाना; सत्यापन- पूर्वक साझा करना।
अंतर- विश्वास संवाद स्थानीय Interfaith Circles, मस्जिद- मंदिर- गुरुद्वारा यात्राएँ, संगोष्ठियाँ।
चुनौतियाँ व समाधान -
धर्म- केन्द्रित राजनीति : जब आस्था को सत्ता-साधन बनाया जाता है, तो समभाव क्षीण होता है।
समाधान - लोकशिक्षण, संवैधानिक सुदृढ़ता एवं मीडिया- जागरूकता।
अज्ञान / पूर्वाग्रह : सतही ज्ञान कट्टरता को जन्म देता है।
समाधान - पाठ्यक्रम में तुलनात्मक धर्म-अध्ययन, युवाओं के लिए ‘वॉलंटियर एक्सचेंज प्रोग्राम’।
सांप्रदायिक हिंसा : भावनात्मक उकसावे से हिंसा।
समाधान - त्वरित कानूनी दण्ड, पीस- काउंसिल, धार्मिक नेताओं की संयुक्त अपीलें।
सारांश : सर्वधर्म समभाव का अर्थ अपने धर्म से विमुख होना नहीं, अपितु भीतर की रोशनी पैना करना है - ऐसी रोशनी जिसमें दूसरे के आराध्य रूप भी आदरपूर्वक प्रतिबिम्बित हों। भक्ति, प्रार्थना, सद्विचार, सदाचार, परहित एवं शांति- मार्ग - ये अमोघ साधन सभी धर्मों के मूल में विद्यमान हैं। जब हम उन्हें हृदयंगम करते हैं, तो 'मैं' और 'तू' का द्वैत गलता है, 'हम' और 'सब' का निर्झर बहता है, और सामाजिक- सांस्कृतिक परिदृश्य अधिक ज्ञानमय, सात्त्विक एवं मंगलकारी बनता है।
'जहाँ विविध पुष्प खिले, वहीं सच्ची वाटिका महके'।
आइए, समभाव का यह बीज अपने आचरण-क्षेत्र में रोपें, सींचें और विश्व-मानवता के वृक्ष को पुष्पित-पल्लवित करें। इति।
- डॉ. अपराजिता शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़