बरखा बहार
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चारों ओर खुशियों की सौगात है लाई।
झूम उठे हैं पेड़ - पौधे,
पंछी - नदिया नर और नारी
सबके मन में उमंग है भारी।
बरसात के आगमन से
प्यासी धरती होती है तृप्त,
जैसे किसी सजनी को
मिले उसका साजन होकर उन्मुक्त।
खेत खलियान खिल उठे हैं,
पेड़ पौधे झूम उठे हैं ।
किसान अपने खेतों में
कर रहा हल से जोताई,
पर उसके पास है रुपए की कोताई।
आंखें गड़ाए जिसके इंतजार में होता है हलधर,
बरखा आते ही उसकी आंखों में
चमक उठते हैं सपने हजार।
लेकर लाखों के कर्ज,
सोच अपने परिवार का निभाऊंगा फर्ज
कई बार अतिवृष्टि और असमय बरसात
हो जाती फसल नष्ट,
तब बेकार होते उसके सारे कष्ट।
- प्रा. नीलिमा माटे
नागपुर, महाराष्ट्र