खंडवा के खंडहर में बसी अमर आवाज़
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स्व. किशोर कुमार की जयंती (4 अगस्त) पर विशेष
खंडवा के मध्य स्थित एक जर्जर हवेली आज भी एक युग की गवाही देती है। यह वही स्थान है जहां 4 अगस्त 1929 को जन्मे थे हिंदी सिनेमा के सदाबहार, हरफनमौला कलाकार – किशोर कुमार।
यह हवेली, जिसे स्थानीय लोग ‘गौरी कुंज’ या ‘गांगुली हाउस’ के नाम से जानते हैं, आज एक खंडहर में तब्दील हो चुकी है। लगभग 100 साल पुराना यह घर, जिसमें कभी किशोर दा की हंसी और रियाज़ गूंजती थी, अब टूटन और उपेक्षा का प्रतीक बन गया है।
अमर कलाकार, मगर उपेक्षित धरोहर
आज जबकि किशोर कुमार की जयंती पर उनके गीत गूंज रहे हैं, वही उनकी जन्मस्थली अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। सरकारी दस्तावेजों में इसे "खंडहर" घोषित किया जा चुका है और नगर निगम ने इसे खतरनाक भवन बताते हुए नोटिस भी चस्पा किया था। हालांकि, जनता के विरोध के कारण तोड़फोड़ की कार्रवाई फिलहाल स्थगित है।
घर की देखरेख कर रहे 40 वर्षों से वहां रह रहे सीताराम काका बताते हैं –
‘दादा जब भी आते, दूध- जलेबी खाने की फरमाइश करते थे… आज यहां ना दादा हैं, ना उनके घर की रौनक। बस इंतज़ार है कि कब इसे कोई उठाकर इतिहास बना दे या बिल्डर निगल जाए!’
विवादों में विरासत
इस मकान का कुछ हिस्सा बाजार की दुकानों में बदल चुका है, जिनसे बहुत कम किराया आता है। वर्षों से इसे बेचने की चर्चा थी, और स्थानीय सूत्रों के मुताबिक इसे 14 करोड़ में किसी निजी कारोबारी को बेचा गया है – हालांकि इस सौदे की पुष्टि नहीं हो सकी है।
अब इस संपत्ति पर विवाद के बाद सौदा रद्दहो गया है और घर अब भी किशोर दा के परिजनों के नाम पर दर्ज है। ऐसे में न तो सरकार इसे राष्ट्रीय4 स्मारक बना पा रही है, और न ही परिवार इसके लिए कोई स्पष्ट निर्णय ले रहा है।
प्रशंसकों और समाज की पुकार
खंडवा और देशभर के किशोर प्रेमियों की मांग है कि इस घर को संग्रहालय या मेमोरियल में बदला जाए।
स्थानीय संगठनों जैसे ‘किशोर कुमार सांस्कृतिक प्रेरणा मंच’ ने सरकार से निवेदन किया है कि इसे अधिग्रहित कर एक राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए।
मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह ने भी संकेत दिया था कि अगर परिवार यह संपत्ति राज्य सरकार को सौंपे, तो यहां एक राष्ट्रीय स्तर का स्मारक बन सकता है।
सिर्फ मकान नहीं, यह भावनाओं का मंदिर है
किशोर कुमार के फैंस कहते हैं – *“यह घर महज इमारत नहीं, यह उनकी आत्मा का अंश है। जब तक यह खड़ा है, तब तक उनकी स्मृतियां जीवंत रहेंगी।”
वे यह भी कहते हैं कि – ‘किशोर दा किसी एक परिवार के नहीं, बल्कि पूरे देश की विरासत हैं।’
एक अपील – अब भी समय है!
क्या हम इंतजार करेंगे कि यह घर स्वयं गिर जाए या कोई बिल्डर इसे खरीद कर फ्लैट बना दे?
या फिर हम – सरकार, समाज और संगीतप्रेमी – एकजुट होकर इसे बचा लेंगे?
आज, जब किशोर कुमार के गाने फिर से हवा में तैर रहे हैं –
‘ज़िंदगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना..’
तो आइए, इस ‘सफर’ को एक ‘स्मारक’ का रूप दें।
खंडवा का ये खंडहर, एक संगीत तीर्थ बन सकता है.. यदि हमारी इच्छाशक्ति ज़िंदा है।
- डॉ. प्रवीण डबली
लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता
नागपुर, महाराष्ट्र