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पारदर्शी मतदाता सूची : लोकतंत्र की नींव


लोकतंत्र की ताकत उसके मतदाताओं में होती है, लेकिन जब मतदाता सूची ही सवालों के घेरे में आ जाए, तो चुनाव की पारदर्शिता और विश्वसनीयता दोनों पर गहरा असर पड़ता है। वर्तमान समय में देश भर में मतदाता सूची की गड़बड़ी को लेकर घमासान मचा हुआ है। सत्ता पक्ष को छोड़ लगभग सभी राजनीतिक दल चुनाव आयोग पर सत्ताधारी दल के पक्ष में काम करने का आरोप लगा रहे हैं। इस सबके बीच देश के बाकी मुद्दों को विपक्ष जैसे भूल सा गया है। सिर्फ मतदाता सूची पर केंद्रित हो गया है। 

चुनाव आयोग का कहना है कि वह मतदाता सूची में डुप्लीकेट और फर्जी नाम हटाने की प्रक्रिया चला रहा है, जिससे चुनाव निष्पक्ष हो सकें। लेकिन विपक्ष को संदेह है कि जिन नामों को हटाया जा रहा है, उनमें अधिकांश उनके समर्थक हैं। यही कारण है कि आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

आरोप और जवाब

चुनाव आयोग बार-बार कह रहा है कि अगर किसी को आरोप लगाना है, तो वह प्रमाण के साथ हलफनामा दे, लेकिन विपक्षी दल इसके लिए तैयार नहीं हैं। वहीं, राजनीतिक मंचों से लगातार यह मांग उठ रही है कि मतदाता सूची की सफाई पारदर्शी तरीके से नहीं की जा रही है। बल्कि स्वार्थपूर्ण राजनीति का एक भाग है। उन्होंने मांग की है कि मतदाता सूची की जांच पारदर्शी की जाए और किसी भी पक्ष को नुकसान न हो।

गड़बड़ी की जड़ें

1. जनसंख्या की गतिशीलता – देश में लाखों लोग रोज़ाना रोजगार, शिक्षा या अन्य कारणों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, लेकिन वे पुरानी जगह से अपना नाम कटवाते नहीं हैं।
2. फर्जी दस्तावेज़ों की आसान उपलब्धता – फर्जी आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड का बनना अब कोई मुश्किल काम नहीं रहा।
3. सिस्टम में भ्रष्टाचार – कुछ स्थानों पर राजनीतिक दबाव, स्थानीय नेटवर्क और रिश्वतखोरी के कारण फर्जी नाम जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया होती है।

वर्तमान व्यवस्था की कमजोर कड़ी

- वोटर आईडी कार्ड को सबसे सुरक्षित पहचान पत्र नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसकी एंट्री का बड़ा हिस्सा अभी भी मैन्युअल स्तर पर किया जाता है।
- आधार कार्ड के साथ लिंक होने के बावजूद, मृतक या डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया धीमी और अपारदर्शी है।

सुधार के ठोस सुझाव

1. वोटर आईडी को PAN कार्ड से लिंक करना – PAN कार्ड अपेक्षाकृत सुरक्षित है और टैक्स सिस्टम से जुड़ा होने के कारण इसकी डुप्लीकेसी कम है।
2. 18 वर्ष की आयु पर रिटर्न फाइल अनिवार्य करना – इससे सभी नए वयस्क नागरिक सरकारी डेटा बेस में दर्ज होंगे और वोटर सूची स्वतः अपडेट होगी।
3. ऑनलाइन और रिमोट वोटिंग – यदि कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र से बाहर है, तो वह वर्तमान स्थान से भी वोट डाल सके। इससे प्रवासी मजदूर और छात्र भी मतदान कर पाएंगे।
4. वार्षिक मतदाता सूची ऑडिट – हर वर्ष स्वतंत्र एजेंसी द्वारा मतदाता सूची का सत्यापन।
5. डिजिटल बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन – चुनाव के दिन मतदान केंद्र पर उंगलियों के निशान या चेहरे की पहचान से वोट डालना, ताकि डुप्लीकेट वोटिंग समाप्त हो सके।
6. दंडात्मक प्रावधान – फर्जी दस्तावेज़ बनवाने, किसी और के नाम पर वोट डालने या मतदाता सूची में गलत जानकारी देने वालों पर सख्त कार्रवाई।

मतदान प्रतिशत बढ़ाने के उपाय

- मतदान के दिन "छुट्टी + ट्रैवल सुविधा" का प्रावधान।
- ऑनलाइन वोटिंग या पूर्व-निर्धारित मतदान विकल्प।
- युवाओं में जागरूकता अभियान और सोशल मीडिया पर वोटिंग चैलेंज।

लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप से काम नहीं चलेगा। मतदाता सूची को सटीक, सुरक्षित और पारदर्शी बनाना देश की प्राथमिकता होनी चाहिए। चुनाव आयोग को भी यह समझना होगा कि उसका भरोसा तभी कायम होगा जब वह अपने सभी कदम खुलकर जनता के सामने रखे।

अगर 99 प्रतिशत नागरिक बिना किसी बाधा के मतदान करें और हर वोट असली हो, तभी यह कहा जा सकेगा कि भारत का लोकतंत्र न केवल दुनिया का सबसे बड़ा, बल्कि सबसे मज़बूत भी है।

- डॉ. प्रवीण डबली (वरिष्ठ पत्रकार)
   नागपुर, महाराष्ट्र 
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