जन जन की भाषा हिंदी
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'भाषा हमारी आत्मा को वाणी देती है। हम अपना मन, अपने विचार, अपनी भावनाएं, अपने सुख दुःख अपनी भाषा में ही व्यक्त कर सकते हैं'।
हम भाषा में ही जीते हैं, भाषा से ही हमारी पहचान बनती है, उसके सहारे हम इस संसार को समझते हैं और स्वयं को व्यक्त करते हैं। भाषा वास्तव में मानव को मानव से जोड़ने में एक पुल का काम करती है ।और यह कार्य तब और अधिक सहज, सरल व संभव हो जाता है, जब किसी देश में एक ही भाषा को अधिक से अधिक लोग बोलते हों, समझते हों, जानते हों। किंतु व्यवहारिक रूप से देखें तो ऐसा संभव नहीं होता, विशेष रूप से उन देशों में जहां एक से अनेक भाषा भाषी लोग निवास करते हैं। संसार में ऐसे अनेक देश हैं जहां अनेक भाषाएं हैं, इनमें से कई देशों ने समझदारी से किसी एक भाषा को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया है, जो अनिवार्य भी है।
जहां तक अपने देश भारत की स्थिति की बात करें,तो प्रथम तो यह अत्यंत प्राचीन राष्ट्र है, समय समय पर यहां बाहर से अनेक जातियां आई, जो अपने साथ अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, सभ्यता साथ लेकर आई अतः हमारा देश एक बहुभाषी देश है। जहां अनेक भाषाएं हैं तो बोलियां भी कई हैं।कहा जाता है हर दस कोस पर लोगों की भाषा बदल जाती है,पर इतने बडे देश को उत्तर दक्षिण, पूर्व पश्चिम एक सूत्र में बांधकर रखने के लिए एक सशक्त संपर्क भाषा का होना अनिवार्य है।
अतः देश की स्वतंत्रा के पश्चात जब संविधान निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ तो एक लंबी बहस के बाद हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। जिसका प्रस्ताव दक्षिण भाषी भारतीय राजनेता श्री गोपाल स्वामी अइयंगर ने रखा था। इस तरह हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में हिन्दीतर भाषी व दक्षिण भारतीययों की भूमिका रही। जहां तक स्वाधीनता आंदोलन की बात है, हिंदी संपर्क भाषा के रूप में अपनी महत्ता सिद्ध कर चुकी थी। राष्ट्रीय आंदोलन के साथ हिंदी राष्ट्र प्रेम व राष्ट्रीय चेतना, के विकास का आवश्यक कारक बनी ।उसने पूरे देश को जोड़ने का कार्य किया।
वह भारत की सांस्कृतिक एकता का भी कारक बनी। अर्थात आजादी की लडाई के समय पूरा देश हिंदी के माध्यम से ही एक हुआ, एकता का प्रतीक बना। हमारे देश के नेता हिंदी द्वारा ही देश की जनता के साथ जुडे। ध्यान देने योग्य बात यह कि तब हिंदी को राष्ट्र भाषा किसी संविधान ने नहीं बनाया था। पूरे देश की जनता ने इसे स्वीकारा। तात्पर्य राष्ट्र भाषा बनने के लिए अधिक से अधिक जनता की सस्वीकार्यता अनिवार्य है।
इस दृष्टि से यदि हम देखें तो भारत की तमाम उन भाषाओं से हिंदी बोलने वालों, हिंदी को समझने वालों की संख्या अधिक है। फिर भी यदि हिंदी राष्ट्र भाषा बनने का सम्मान प्राप्त नही कर सकी है तो इसका कारण समय समय पर देश के कुछ राज्यों द्वारा हिंदी का विरोध है। उन्हें यह लगता है कि हिंदी उनपर लादी जा रही है। उदाहरणार्थ अभी हाल ही का एक उदाहरण लें। हमारे देश के गृह मंत्री ने किसी समिति की बैठक में हिंदी के व्यापक रूप से प्रयोग में लाये जाने की बात कही। यह एक सहज ही कथन था। किंतु दक्षिण के हमारे राज्य, विशेष कर कर्नाटक, तमिलनाडू को लगा कि हिंदी उन पर थोपे जाने का प्रयास किया जा रहा है
।।वैसे पहले भी यह मुद्दा उठाया जा चुका है।।समस्या के समाधान के लिए हमारे नेताओं ने हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता देकर अंग्रेजी को एक निश्चित अवधि के लिए (प्रारंभ में 15वर्ष) तक सहभाषा के रूप में स्वीकृति दी। किंतु आज तक वह अनिश्चित ही बनी हुई है। राजकाज के रूप में अंग्रेजी आज भी उच्चासन पर विराजमान है।
आवश्यकता आज हमें कश्मीर से कन्याकुमारी तक,एवं आसाम से लेकर कच्छ तक के हर भारत वासी को एक सूत्र में बांधकर रखने की, भारतीय एकता कायम रखने की है, जिसके लिए एक संपर्क भाषा की अत्यंत आवश्यकता है। जिसे महात्मा गांधीजी ने हिंदुस्तानी भाषा का नाम दिया।
जिसमें उर्दु समेत अन्य भाषा के शब्द भी सम्मिलित थे। यही ग्राह्य भी है, हमारे जैसे बहुभाषी, बहुधर्मी और बहु संस्कृति वाले देश के लिए, जो सबको अपनी भाषा लगे। कारण देश की अन्य तमाम भाषाओं के साथ साथ भारतीयता भी हमारी पहचान है। अर्थात हमारी पहचान हमारी भाषा हिंदुस्तानी ही है। कारण हिंदी की स्वीकृति अन्य सभी भाषाओं की तुलना में सर्वाधिक है।
यह स्वीकृति केवल हमारे देश में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में है। हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा है। जिसका कारण भारत की विकास शील जनता है। आज हिंदी विभिन्न बोलियों से समन्वित भाषा है। देश विदेश में उसका संयुक्त परिवार है। आज जितने लोग पहली भाषा अर्थात मातृ भाषा के रूप में उसका प्रयोग करते हैं,उससे कहीं अधिक दूसरी, तीसरी या चतुर्थ भाषा के रूप में करते हैं ।जिसकी रैंकिंग अमेरिका की गैर सरकारी संस्था एथ्नोलाॅग के द्वारा की गई।
इस संस्था के अनुसार हिंदी विश्व में तीसरे नंबर की भाषा है। किंतु श्री जयंत प्रसाद नौटियाल, जो कि विश्व हिंदी संस्थान के महानिदेशक हैं, - के अनुसार, हिंदी का विश्व में प्रथम स्थान है, जो कि उनके शोध के आधार पर प्रमाणित है। संस्था प्रामाणिकरण के बीस चरण पूर्ण कर चुकी है। विश्व के शीर्ष 172, भाषाविदों विशेषज्ञों व विद्वानों ने भी इसकी पुष्टी की है। विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या- एक अरब, पैंतीस करोड़, तेरह सौ पचास, अर्थात प्रथम रैंकिंग है। जबकि अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या,एक अरब 26 करोड़ है अर्थात वह दूसरे नंबर पर है।
पूरे विश्व में हिंदी यदि 65 करोड़ लोगों की भाषा है, तो लगभग 50 करोड लोगों की दूसरी व तीसरी भाषा है, जो भारत के राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साथ नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, फिजी, मारिशस, सूरीनाम, ग्याना, त्रिनिदाद जैसे देशों में दूसरी व तीसरी भाषा के रूप में प्रयोग में लाई जाती है, अर्थात संपूर्ण विश्व में हिंदी बोलने व समझने वालों की संख्या अधिक है।
हिंदी के प्रचुर मात्रा में प्रचार व प्रसार का कारण है आज की डिजिटल दुनिया ।इंटर नेट पर हिंदी में प्रस्तुत सामग्री में 94% की वृद्धि हुई है, तो भारत के 63 करोड़ से अधिक लोग स्मार्ट फोन के माध्यम से हिंदी से जुड़े हैं। लगभग 93% युवा यू ट्यूब पर हिंदी का प्रयोग करते हैं। भारतियों द्वारा प्रति माह गूगल प्ले स्टोर से लगभग एक अरब एप्स डाउनलोड किये जाते हैं। अर्थात आज सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदी का खूब फैलाव हो रहा है। इसका कारण अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी में भी तकनीकी सुविधा का उपलब्ध होना है।
आज अंग्रेजी की तुलना में फेसबुक, ट्विटर पर हिंदी ज्यादा लोकप्रिय है ।नेटफ्लिक्स, अमेजन ने भी हिंदी के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।समस्त डिजिटल संसाधनों ने यदि हिंदी जानने वालों की संख्या में वृद्धि की है तो अंतर्राष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना ट्विटर हैंडल हिंदी में आरंभ किया है उसकी वेबसाइट हिंदी में उपलब्ध है।
सारांश में आज यदि हिंदी देश की सीमाओं को पार कर विदेशों तक फैली है, जन जन की भाषा बनी है तो उसमें उपरोक्त डिजिटल संसाधनों के अतिरिक्त उसकी सहजता, सरलता, बोलने, लिखने, पढ़ने की समानता, के साथ साथ उसकी निरंतर प्रहवानता भी है।वह समय के अनुसार अपने साथ साथ नये शब्दो को भी लेती चली है। अन्य भाषाओं के शब्दो को अपने में समाहित करती चली गई है ।हिंदी को जन जन की भाषा बनाने में भारतीय हिंदी सिनेमा, दूरदर्शन, आकाशवाणी पर प्रसारित हिंदी कार्यक्रमों की भी अहम भूमिका रही है। और इन सबके साथ साथ हम अपनी अमूल्य धरोहर अपने साहित्य उपन्यास, कहानियां, महान ग्रंथ, अन्य भाषाओं में उनके अनुवाद आदि को कैसे पीछे छोड़ सकते है? कैसे विस्मृत कर सकते है?, जिन्होंने हिंदी को घर घर तक पहुंचाया, हिंदी को जन जन की भाषा बनाया।
अपने देश में प्रायः अंग्रेजी के महत्व को रेखांकित किया जाता रहा है, अतः अब न केवल सरकारी योजनाओं के माध्यम से अपितु नई शिक्षा नीति में हिंदी को महत्वपूर्ण एवं उसका योग्य आसन देकर अधिक लोकप्रिय व जन जन की भाषा बनाने का सराहनीय कदम उठाया गया है। विश्वास है भविष्य में हिंदी और अधिक लोकप्रिय एवं जन जन की भाषा बनेगी।
- प्रभा मेहता
नागपुर, महाराष्ट्र
9423066820