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विभीषिका


आसमान बन गया है आफत
हतबल हुई मनुष्य की ताकत
प्रकृति के आगे विवश, 
बेबस हताश मनुज
ज्ञान, विज्ञान, तंत्रज्ञान हुये अनुज।

कुदरत का हुआ रूप विकराल
बना है मानव के लिए काल
कश्मीर, उतराखंड, थराली
पंजाब, महाराष्ट्र, धराली।

बारिश ढहा रही कहर,
लबालब हो गये नहर
पानी मे डूबे शहर,
अनगिनत विकास की चाह
भटका रही मानव की राह।

दरकते पहाड़, कटते पेड़,
फुटते बादल टूटते ताल
खतरे मे प्रकृति नहीं, है मानव
मनुषय के भेष मे मत बनो दानव।

एक तरफ प्रकृति की भयावयता,
दुसरी तरफ धर्म की वर्चस्वता
क्या ? मोहम्द, क्या ? महादेव
देश मे तबाही मचाने इनको भी नहीं छोड़ा,

ऊपर से दोनों इनकी नादानी पर,
हो रहे चिंतित और दुखी,
ये धर्मवाद को लेकर हो रहे सुखी

शिक्षा, रोजगार, जलवायु परिवर्तन,
आदि चिंताओ को छोड़,
धर्म बचाने पर तुले है
मनुस्य ही नहीं बचा तो
धर्म का क्या करेंगे?

- प्रा. नीलिमा माटे
   नागपुर, महाराष्ट्र 
काव्य 3244526853142634376
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