जीवन में नकारात्मकता नहीं आने देना चाहिए : पं. शंकरप्रसाद अग्निहोत्री
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नागपुर। 'परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हो निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होना चाहिए तथा नकारात्मक सोच से स्वयं को दूर रखना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिए यह बहुत ज़रूरी है'। ये विचार थे सुपरिचित समाजसेवी व शिक्षा क्षेत्र में ख्यातनाम व्यक्तित्व पं. शंकरप्रसाद अग्निहोत्री के जो उन्होंने विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के लोकप्रिय कार्यक्रम 'संवाद' में साहित्यकार डॉ सागर खादीवाला से खुलकर बातचीत करते हुए व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि लगातार सीखने की इच्छा, खोज ,चिंतन तथा वैचारिक सक्रियता ये ऐसे तथ्य हैं जिनसे मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है। आलस्य को त्याग कर संपूर्ण एकाग्रता के साथ अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर रहना ही सफलता को सुनिश्चित करता है। जिज्ञासा का भाव ही वह कुंजी है जो जीवन के बंद द्वारों के ताले खोलने में सक्षम है। डॉ खादीवाला द्वारा व्यक्ति के आचरण के संदर्भ में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए पं. अग्निहोत्री ने बताया की प्रत्येक व्यक्ति ने अपने कर्म व वाणी को इस प्रकार सुंदर और संतुलित रखना चाहिए की उसके जीवन के पश्चात भी लोग उसे याद करें।
अपनी बाल्यावस्था से लेकर तो आज के मुकाम तक पहुंचने के दौरान आए विभिन्न पड़ावों, अनुभवों और रोचक संस्मरणों का उन्होंने विस्तार से उल्लेख किया।  शिक्षा- क्षेत्र व आध्यात्मिक सोच की ओर मुड़ने के करणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने आधुनिक टेक्नोलॉजी व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे नए आयामों का भी उल्लेख किया। कई आध्यात्मिक और पौराणिक प्रसंगों को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने मानव- जीवन के कल्याण में इनकी उपयोगिता प्रतिपादित की। श्रोताओं के प्रश्नों और जिज्ञासाओं का भी आपने बड़े रोचक ढंग से समाधान किया। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के श्रोतागण बड़ी संख्या में उपस्थित थे। 

