बलिदानी दिवस पर सिंधूपति महाराजा डाहिरसेन का पुण्यसिमरण
नागपुर। सिंधुड़ी नाट्य संस्था, सिंधुड़ी यूथ विंग और सिंधुड़ी सहेली मंच के संयुक्त तत्वाधान में वीर शिरोमणि, राष्ट्र प्रहरी राजा दाहिर का बलिदान दिवस जरीपटका स्थित धर्मदास दरबार में मनाया गया। सर्वप्रथम संस्था के पदाधिकारियों ने डाहिरसेन के फोटो पर माल्यार्पण किया।
कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए सिंधुड़ी यूथ विंग के अध्यक्ष राकेश मोटवाणी ने कहा कि ईस्वी शताब्दि के पश्चात् के इतिहास पर नज़र डालें तो सातवीं शताब्दि में सिंधू देश पर राजपूतों के राय राजवंश का राज्य था। इस राजवंश के अंतिम राजा राय साहसी द्वितीय थे। उनको कोई औलाद नहीं थी तथा उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती थी। जब उन्हें लगने लगा कि उनकी मृत्यू सुनिश्चित् है तो उन्होंने अपने प्रधानमंत्री कश्मीरी ब्राहम्ण चच को अपना राज्य सौंपा और अपनी युवा एवं अति सुंदर पत्नी सुहांदी से वंश को आगे बढ़ाने की प्रतिज्ञा ली और उनका विवाह चच से करवा दिया।
राजा चच और सुहांदी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम महाराजा डाहिर रखा गया। डाहिर वीर और पराक्रमी था। उनके राज्य में विदेशियों ने 14 बार हमारे देश पर हमले किए पर हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। अंत में वीर सम्राट दुश्मनों की मक्कार चाल का शिकार हो गए। उनकी मृत्यू के प्श्चात् उनकी धर्मपत्नी लाडीबाई तथा दोनों पुत्रियों ने दुश्मनों से उनकी मौत का बदला लिया।
वरिष्ठ रंगकर्मी और लेखक किशोर लालवानी ने कहा कि सिंध प्रदेश का इतिहास गौरवशाली रहा है। सिंधू घाटी की सभ्यता विश्व की सभ्यताओं में सबसे प्राचीन और उच्च कोटि की सभ्यता मानी गई है। चार वेदों की जननी पवित्र सिंधु नदी के किनारे ही इस सभ्यता का जन्म हुआ। हमें गर्व है कि हम इस सभ्यता के वारिस है। जब जब भारतवर्ष पर पश्चिमोत्तर दिशा से विदेशियों के आक्रमण हुए हैं, तब तब सिंध देश के पराक्रमी शासकों ने उनका दृढ़ता से सामना किया है तथा देशहित के लिए अपनी जान न्यौछावर करने से पीछे नहीं हटे हैं।
डाहिरसेन का पूरा परिवार इस बात की मिसाल है। युवा रंगकर्मी एवं समाजसेवी रोशन चावला ने कहा कि डाहिरसेन के जीवन पर आधारित किशोर लालवानी द्वारा लिखित एवं निर्माता निर्देशक तुलसी सेतिया द्वारा निर्देॅिशत नाटक के सिंधी में कई शो हो चुके हैं। नाटक का हिंदी में भी अनुवाद हो चुका है बहुत ही जल्द यह नाटक हिंदी में फेस बुक पर दिखाया जाएगा, ताकि सभी को भारत के इतिहास की सही सही जानकारी मिल सके, खासकर हमारी युवा पीढ़ी को। सिंधी समाज ने बहुत ही कष्ट सहकर, मेहनत करके इस मुकाम को प्राप्त किया है। अब युवा पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वे इस विरासत का संरक्षण करे।
सिंधुड़ी सहेली मंच की अध्यक्ष कंचन जग्यासी व महासचिव मंजू कुंगवानी ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का सफल संचालन विजय वीधानी ने किया एवं आए हुए गणमान्य व्यक्तियों का आभार प्रदर्शन मुकेश चैधरी ने किया. वरिष्ठ रंगकर्मी गुरमुख मोटवाणी, परसराम चेलानी, धर्मदास दरबार के प्रमुख चुन्नीलाल चेलानी, लक्ष्मण थावाणी, गिरीश लालवाणी, चंदू गोपानी, निशा केवलरामानी ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अथक प्रयास किये।
