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सांझी संस्कृति से जुडा़ है हिंदी साहित्य का अस्तित्व : डॉ. हरिसिंह पाल



भारत भूमि पूण्य भूमि हैंं। अतःहिंदी साहित्य का अस्तित्व सांझी संस्कृति से जुडा़ है। इस आशय प्रतिपादन नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने किया। विश्व स्तर की सुप्रतिष्ठित हिंदी सेवी संस्था विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ. प्र. के रजत महोत्सव के आभासी द्वितीय दिवस पर 'हिंदी साहित्य मे व्यक्त सांझी संस्कृति' मे आयोजित परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में वे अपना वक्तव्य दे रहे थे। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख, पुणे,महाराष्ट्र ने समारोह की अध्यक्षता की।

डॉ. हरिसिंह पाल ने आगे कहा कि साहित्य कभी भी धर्म,जाति,पंथ पर अवलंबित नहीं होता है।भारतीय संस्कृति में विश्व की संस्कृतियों का मिलन भी पाया जाता हैं।

मुख्य वक्ता डॉ. हरेराम बाजपेयी अध्यक्ष, हिंदी परिवार, इंदौर ने कहा कि संस्कृतियों का अनुपम श्रृंगार हिंदी में उपलब्ध है। हिंदी साहित्य के इतिहास के भक्ति काल व रीतिकाल पर दृष्टिपात करने के पश्चात प्रतीत होता है कि हिंदी साहित्य में गंगा जमुनी संस्कृति का अद्भुत मिलन पाया जाता है ग्रहण शीलता हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता है।

मुख्य वक्ता डॉ रामनिवास साहू बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ने प्रतिपादित किया कि सांझी संस्कृति में सर्व संभावनाओं का दर्शन होता है। हिंदी साहित्य में सांझी संस्कृति वास्तव में शोध का विषय है, जिसे उन्होंने सोदाहरण समझाया।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसमें सभी भारतीय भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने की अद्भुत शक्ति विद्यमान है। कतिपय विदेशी भाषाओं के शब्द हिंदी में पाए जाते हैं।

इस अवसर पर काव्य पाठ भी हुआ ,जिसमें मुख्य अतिथि डॉ मीरा सिंह, अमेरिका तथा विशिष्ट अतिथि सुश्री इंदु बैरठ, एन.एच.कालचेस्टर, ब्रिटेन ने अपनी कविताओं के माध्यम से काव्य पाठ आरंभ किया।तत्पश्चात डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ, गुजरात, आचार्य अनमोल, नई दिल्ली, सुश्री अनुपमा प्रधान, शिलांग, मेघालय, श्रीमती गायत्री चौधरी, गंजाम, उड़ीसा, सुश्री प्रियंका गावित, नासिक, महाराष्ट्र, सुश्री कंचन शेंदुर्णीकर, इंदौर, मध्य प्रदेश, प्रेम तन्मय, जोधपुर, राजस्थान, डॉ शीना इप्पन, केरल, श्रीमती शकुंतला तरार, रायपुर, छत्तीसगढ़, राज टेकड़ीवाल, बेंगलुरु, कर्नाटक द्वारा अपनी सुंदर कविताओं को प्रस्तुत किया गया। श्रीमती प्रीति राही, बेंगलुरु, कर्नाटक ने अवधी भाषा के दो गीत प्रस्तुत करके सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

समारोह का आरंभ इंदौर, मध्य प्रदेश की कुमारी अवनी की सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुआ। स्वागत उद्बोधन प्रोफ़ेसर लता चौहान बेंगलुरु, कर्नाटक ने किया। श्रीमती पुष्पा शैली श्रीवास्तव ने प्रस्तावना की। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।

दिवस प्रमुख डॉ पूर्णिमा झेंडे, नासिक, महाराष्ट्र ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। तथा विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की छत्तीसगढ़ इकाई की हिंदी सांसद डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने  समारोह संचालन किया। रमाकांत प्रसाद ने तकनीकी सेवाएं प्रदान की।

समारोह की सफलता हेतु डॉ अनुसूया अग्रवाल महासमुंद, छत्तीसगढ़, डॉ रजिया शहनाज शेख, बसमत नगर, महाराष्ट्र, डॉ सुनीता प्रेम यादव, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, डॉ रश्मि चौबे गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ प्रो लता चौहान, बेंगलुरु, कर्नाटक ने विशेष प्रयत्न किये।

इस भव्य आयोजन में दर्शक के रूप में ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, डॉ राजश्री तिरविर, कर्नाटक, डॉ विनय कुमार पाठक, बिलासपुर, छत्तीसगढ़, नरेंद्र भूषण, लखनऊ, मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी, सोनभद्र, उषा किरण, बिहार, प्रो महमूद पटेल, महाराष्ट्र, डॉ मेदिनी अंजनीकर, मुंबई, डॉ वंदना अग्निहोत्री, इंदौर, डॉ सीमा वर्मा, ज्योति जैन, इंदौर, डॉ जेबा रशीद, जोधपुर, डॉ पूर्णिमा मालवीय, डॉ बेबी कोलते, पुणे, डॉ सुमन अग्रवाल, भोपाल, डॉ वंदना श्रीवास्तव, लखनऊ, डॉ समीर सैयद, अशोकनगर, महाराष्ट्र, श्री कान्हा कौशिक रायपुर, छत्तीसगढ़ सहित लगभग पांच सौ प्रतिनिधियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की।
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