हिंदी वर्तनी का मानकीकरण समय की माँग है : डाॅ.साताप्पा चव्हाण
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नागपुर। हिंदी वर्तनी का मानकीकरण समय की माँग है,हिंदी भाषा के विकास के लिए हमें देवनागरी लिपि का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। इस आशय का प्रतिपादन अहमदनगर महाविद्यालय, अहमदनगर के हिंदी विभाग के सहयोगी प्राध्यापक डाॅ. साताप्पा लहू चव्हाण ने किया।
मराठवाडा शिक्षण प्रसारक मंडल संचालित श्री मुक्तानंद महाविद्यालय, गंगापुर, जिला - औरंगाबाद, महाराष्ट्र के तत्वावधान में 'कार्यालयी हिंदी'इस विषय पर आयोजित एक दिवसीय हिंदी कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में वे अपना मंतव्य दे रहे थे।
महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ.मधुसुदन सरनाईक ने कार्यशाला की अध्यक्षता की। डाॅ.चव्हाण ने आगे कहा कि भारत में बहुभाषी शब्द संसाधक का विकास हो जाने के कारण भारतीय भाषाओं का संगणकीय प्रयोग बढता जा रहा है। प्रारंभ में कम्पूटर की भाषा का रूप स्पष्ट नहीं था।कम्यूटर में किसी भाषा का मानक रूप दिखाई नहीं देता था।
भारतीय भाषाओं को कम्यूटर प्रणाली में विकसित करने के लिए अनेक प्रयोग हुए। इन प्रयोगों के कारण ही भारतीय भाषाओं में विशेषत: हिंदी का मानक रूप विकसित होता गया। सी. डैक के कारण मानक हिंदी वर्तनी का कम्यूटर प्रणाली में सही प्रयोग हुआ। वैश्वीकरण के इस दौर में हिंदी बाजार में अछूती नहीं रही है। अत:आज हिंदी के महत्व को बाजारवादी कारणों से भी स्वीकार किया जा रहा है।
श्री विजय प्रभाकर नगरकर,अवकाश प्राप्त राजभाषा अधिकारी,भारत संचार निगम लिमिटेड, अहमदनगर ने 'कार्यालयीन हिंदी का स्वरूप' विषय पर मंतव्य देते हुए कहा कि राजभाषा का प्रयोग मात्र केंद्र सरकारी कार्यालयों के अंतर्गत प्रशासन के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के हितार्थ होना चाहिए। राजभाषा विभाग सी डैक के संयुक्त तत्वावधान में विकसित राजभाषा प्रवाह मोबाईल एप्प आज के वर्तमान समय में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस एप्प द्वारा अंग्रेजी सहित किसी भी अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से राजभाषा हिंदी सीख सकते हैं। कार्यालयीन हिंदी में मशीनी अनुवाद सहायक है,परंतु उसकी समीक्षा और सुधार मानवीय बुद्धि से होना आवश्यक है।
प्राचार्य डाॅ.शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख,पूर्व प्राचार्य,लोकसेवा महाविद्यालय,औरंगाबाद तथा कार्याध्यक्ष नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने 'सरकारी पत्राचार' पर अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि,सामान्य पत्राचार से सरकारी पत्राचार का प्रारूप भिन्न होता है। सरकारी पत्र की भाषा शालीन और मर्यादित होती है। अर्थात् सरकारी पत्र की भाषा सरल व स्पष्ट होती है। द्विअर्थी,अस्पष्ट तथा अनिश्चित अर्थ देनेवाले शब्दों से बचना चाहिए। इसप्रकार की जानकारी देते हुए सरकारी पत्राचार के कुछ प्रकारों पर भी चर्चा हुई।
महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ.मधुसुदन सरनाईक ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। आज हिंदी अपने अनेक रूपों में कार्यान्वित है। मातृभाषा,राष्ट्रभाषा,राजभाषा,
अन्तरराष्ट्रीय भाषा तथा अन्य अनेक रूपों में हिंदी का दर्शन होता है। कार्यालयी हिंदी राजभाषा के अंतर्गत आती है।
प्रारंभ में कार्यशाला की समन्वयक तथा महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डाॅ.मीना साहेबराव खरात ने कार्यशाला के महत्व को स्पष्ट करते हुए प्रास्तविक भाषण दिया। इस कार्यशाला में मराठवाडा शिक्षण प्रसारक मंडल केंद्रीय समिति सदस्य एडवोकेट लक्ष्मणराव मनाळ दादा, महाविद्यालय की उपप्राचार्या डाॅ. वैशाली बागुल, डाॅ. बी.टी. पवार, महाविद्यालय के अंतर्गत गुणता आश्वासन प्रकोष्ठ के समन्वयक डाॅ.विवेकानंद जाधव सहित सभी प्राध्यापक वर्ग तथा गूगलमीट पटल पर जुडे सौ से अधिक प्रतिभागियों की भागिदारी रही। कार्यशाला का संचालन डाॅ.नवनाथ साळुंके ने किया तथा डाॅ. प्रताप मिसाळ ने आभार व्यक्त किये
