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भारतीय मानस के अन्वेषक थे प्रेमचंद : प्रो अर्जुन चव्हाण


नागपुर। प्रेमचंद  भारतीय मानस के अन्वेषक थे। उसकी इच्छाओं-अपेक्षाओं के रेखांकनकार थे। उन्होंने अपने समय को जिया था, इसीलिए वे व्यक्ति मानस तक सीमित नहीं रहे, समग्र मानव-समाज के प्रतिनिधि के रूप में आज भी उपस्थित हैं। उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता इसका प्रमाण है। 

यह बात शिवाजी विश्वविद्यालय कोल्हापुर के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो अर्जुन चव्हाण ने हिन्दी विभाग राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा 'प्रेमचंद जयंती' प्रसंग पर आयोजित व्याख्यान में कही। उनके वक्तव्य का विषय था- 'हमारे समय में प्रेमचंद'। 

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद इस अर्थ में कालजयी रचनाकार हैं कि उन्होंने तत्कालीन भारत की सामाजिक समस्याओं को न सिर्फ देखा बल्कि अपने स्तर पर उनके निदान के लिए सार्थक हस्तक्षेप किया। वे समझौतावादी या पलायनवादी नहीं थे। उनके समग्र साहित्य का स्वर यही रहा कि 'खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है आगे बढ़ते रहने की लगन का।' 

प्रो. चव्हाण ने कहा कि प्रेमचंद एक संघर्षशील व्यक्ति थे , रचना में भी और जीवन में भी। उनकी लेखनी राष्ट्र की कमोवेश समस्त समस्याओं को रेखांकित करती है। वे शोषित-पीडित- लांक्षित-अपमानित व्यक्ति की आवाज थे। वे अपने समय के ऐसे चश्मदीद हैं जिनकी गवाही पर बेखटक भरोसा किया जा सकता है और स-गर्व यह कहा जा सकता है कि वे जनमानस की भावनाओं को समझने वाले सच्चे राष्ट्रीय प्रतिनिधि हैं। उनका साहित्य हमें सिर्फ जीवन की समस्याओं से रूबरू नहीं कराता, बल्कि उनके समाधान का मार्ग भी सुझाता है। 

हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.मनोज पाण्डेय ने प्रास्ताविक रखते हुए कहा कि प्रेमचंद एक ऐसे कलमकार थे जिन्होंने मानवीय सरोकारों को सर्वोपरि रखा। वे सच्चे अर्थों में मानव- मूल्यों के आराधक थे। उनकी चिंता के केन्द्र में मनुष्य था, मनुष्य की जिजीविषा थी। उन्होंने परिधि की अनुगूंज को स्वर प्रदान किया। वे गांधी की तरह साहित्य में अंतिम -जन की वाणी थे। उन्होंने मनुष्यता के उच्चतर मूल्यों को कथाओं-कहानियों के जरिए रेखांकित किया। हमारे समय में उनका महत्व यही है कि उन मूल्यों, आदर्शों के साक्ष्य पर हम अपने समय की चिंताओं-समस्याओं को परखें।
         
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. संतोष गिरहे ने प्रेमचंद की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद आज पहले से अधिक प्रासंगिक हैं क्योंकि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे आज भी जीवित हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ सुमित सिंह ने किया। अर्चना द्विवेदी, अनुश्री सिन्हा, आरती द्विवेदी, विनय उपाध्याय, विजया थोरात आदि विद्यार्थियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर विचारोत्तेजक चर्चा-परिचर्चा भी हुई।
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