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ज़िद


ज़िद है मेरी जिंदगी खुद से जो मेरा
लक्ष्य है वो पाकर रहूंगा।
तकलीफों से गुजरकर बनाऊंगा अपना
रास्ता।
आंधी आये या तूफान अटल रहेगा मेरा
विश्वास।
जिद है मेरी खुद से अब नहीं रुकेंगे मेरे
कदम।

तूफानों का जोर है लेकिन जिद में कुछ
पाने का शोर है।
आग का दरिया हूं पार कर जाऊंगा हर
मुश्किल भरे रास्ते।
चट्टानों को भी तोड़ कर रास्ता मैं बनाऊंगा
जिद है मेरी खुद से अब पीछे नहीं मुड़ेंगे
मेरे कदम।

रास्ता रोकने वालों इतना मैं कमजोर नहीं।
ज़िद है तो कर ही लूंगा अपने लक्ष्य की प्राप्ति।
सूरज सा तेज है सीने में यूं ही नहीं कहता मैं
उस मां का बेटा हूं जो जिद के आगे कभी
घुटना टेकना मुझे सिखाया नहीं।
हारना मेरे खून में नहीं मैदान छोड़कर भाग जाना
मेरे संस्कार नहीं।

जिद है मेरी खुद से आंधी में दीप जलाना है
जो कभी बूझ ना पाए ऐसा कुछ कर जाना है।
कुछ पाने की जिद में सौ बार में गिरता हूं।
फिर उठ कर अपनी राह पकड़ लेता हूं।
जिद है मेरी खुद से अपने खुशियों का
शंख बजाऊंगा।

जो पाने का लक्ष्य लेकर निकला था उस
खुशी को लाकर अपनी मां का लाल कहलाऊंगा।
जिद है मेरी जिंदगी मैं अपने परिवार का मान बढ़ाऊंगा।

- सविता शर्मा 
मुंबई
काव्य 7726633738990086239
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