शिक्षा के साथ प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रणाली लागू करने की जरूरत
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नागपुर (आनंदमनोहर जोशी)। मनुष्य जीवन अनमोल है। आज आधुनिक भारत के समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत से कहीं ज्यादा आधुनिक जापान शिक्षा के मामले में आगे बढ़ रहा है। जापान के विद्यार्थियों को कक्षा एक से चौथी कक्षा तक के विद्यार्थियों को खानपान, साफ सफाई, कृषि, स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक विकास के साथ उद्योग की प्रायोगिक शिक्षा दे जा रही है। यहां तक छोटे बच्चों को प्रवेश समारोह जिसे न्युगकुशिकी कहा जाता है। साथ ही दीक्षांत समारोह जिसे सोत्सुग्योषिकी कहा जाता है। इन समारोह में बच्चों को आयोजन करके जानकारी प्रायोगिक तौर पर स्कूल में दी जाती है।
जापान में अनोखे स्कूल वर्तमान समय में बनाए गए है। जिसमें लिखित परीक्षा की जगह छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए स्कूल में जीवनशैली के रोजाना उपयोगी के शौचालय जाने, शौचालय की साफ सफाई, सुबह के मंजन, शाला में प्रायोगिक तौर पर सब्जियां के प्रकार, सब्जी काटना, सब्जी भोजन तयार करना, गर्म भोजन परोसना, भोजन के बाद साफ सफाई, छात्रों के सर्वांगीण विकास के दौरान खेल, व्यायाम, गर्मी में तैराकी प्रशिक्षण, बरसात, बाढ़,भूकंप के दौरान आपदा प्रबंधन, अग्निकांड के दौरान जीवनरक्षा प्रशिक्षण, ज्ञानवर्धक रोचक और उपयोगी कौशल विकास के प्रायोगिक परीक्षण दिए जाते है।
यही नहीं बच्चों को सिलाई, बुनाई , आरी, किलों,तकनीकी प्रायोगिक प्रशिक्षण, गृह विज्ञान पाठ्यक्रम, सुंदर लेखन के प्रयोग भी सिखाए जाते है। साथ ही कक्षा एक, दो तक कलम, पेंसिल से लिखाई, कक्षा तीन से माध्यमिक शिक्षा की पेन, स्याही, ब्रश से प्रायोगिक परीक्षण दिए जाते हैं। इसके साथ कृषि, बागानों में बीज बोना, फूल, फल, फसल तयार करने से लेकर फसल कटाई तक की प्रायोगिक शिक्षा केवल माध्यमिक स्तर पर दी जा रही है। इस दौरान सभी छात्र छात्राओं की शारीरिक जांच में आंख, दंत चिकित्सक,सफाई के साथ दांत में कीड़े लगने पर तुरंत उपचार डॉक्टर द्वारा किए जाते है। जबकि यह शिक्षा दुनिया के अनेक देशों में प्रायोगिक तौर पर इस तरह नहीं दी जा रही है।
जापान जैसे छोटे देश में मानव जीवन का महत्त्व बच्चों को माध्यमिक शिक्षा में ही बताया जाता है। वहीं दुनिया के देशों में विज्ञान, कला, वाणिज्य संकाय से स्नातक, स्नातकोत्तर की शिक्षा लेने के बाद भी रोजगार नहीं मिल रहा है। आज भारत जैसे देश की प्राथमिक,माध्यमिक शिक्षा को प्रायोगिक प्रशिक्षण के साथ शालाओं में शुरू करना जरूरी है। प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रणाली से रोजगार के अवसर बढ़ने के साथ हमारा देश विकसित देश की श्रेणी में आएगा। आज जबकि मनुष्य की औसत आयु 70 से 75 और उससे कम हो रही है। ऐसे में देश के भावी नागरिक को बचपन से प्रायोगिक शिक्षा देने की आवश्यकता है।
वर्तमान में विश्व में हिंसा, बेरोजगारी, खेत में अनाज,फल,फूल की फसल के पर्याप्त मात्रा में तयार नहीं होना, कानून का उलंघन आदि में व्यापक बदलाव प्राथमिक,माध्यमिक शिक्षा में सुधार करके ही किए जा सकते है। इसके लिए कृषि, कानून, स्वास्थ्य, वाणिज्य, विज्ञान, भौतिक, रसायन, प्राणिशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, अभियांत्रिकी, इतिहास, भूगोल की प्राथमिक शिक्षा के साथ प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रणाली लागू करने की जरूरत है।