नये बरस पे
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चलती जाए
कुछ परिचित
कुछ आगंतुक आए ।
मेल-मिलाप
और प्रीत-बंधन
जान अंजान
दुर्जन सज्जन ।
प्रेम की डोर
हृद को बांधे,
सुख चहुँ ओर
सब में बांटे
मेरे सखा
ओ बंधु मेरे
बिसरो अवगुण
दुर्गुण सब मेरे ।
हंसते-रोते
खेलकूद में,
पढ़ाई-लिखाई
भाग-दौड़ में,
यह साथी
जीवन पथ पर
साथ निभाता
दुर्गम-पथ पर ।
चार पलों के
रंगमंच पर
फूल-काटों से
जीवन पथ पर,
जीवन नैया
खेते जाएं
गले लगाएं
मिलते जाएं ।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव’
नागपुर, महाराष्ट्र