जोगी मतवाला
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मतवाला इक जोगी।
सुनो ज़िन्दगी! तुम क्या उसको
अपना सब कुछ दोगी।
वहाँ से आकर रहना यहाँ,
यहाँ से फिर है जाना
रब का इंजन खींच रहा है
दुनिया की हर बोगी।
दर्द महाजन बनकर आया,
माँग रहा है ब्याज
कहता प्यार उसी का धन है,
कितना शातिर ढोंगी।
जो पाता है वह खोता है,
अक्सर ऐसा होता
ज्ञान ध्यान से दूरी रखता,
भक्षक बना है भोगी।
प्रेय मार्ग से चलने वाला,
प्राणी दुख ही पाता
श्रेय मार्ग से चलता रहता,
सुख पाता है योगी।
जाग रही जो सजग आत्मा,
परमातम को प्यारी
लौ जिसकी जलती रहती है,
मुक्ति उसी की होगी ।
तन मरता है मन मरता है,
अमर आत्मा सबकी
ऐ मृत्यु! बताना जरा हमें,
किससे क्या तुम लोगी।
- परमात्मानंद पांडेय 'मतवाला'
नागपुर, महाराष्ट्र