सत्ताईस नवंबर
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आज ही के दिन 27 नवम्बर 1990 को मध्य भारत का पहला किडनी प्रत्यारोपण किया गया। यह नागपुर के म्यूर मेमोरियल अस्पताल में किया गया।
इससे पहले मध्य भारत के मरीजों को किडनी के बिमारियों के चिकित्सा के लिए मुम्बई जाना पड़ता था जो मरीजों के लिए बेहद कष्टदायक होता था और खर्चा भी ज़्यादा होता था।
ज़ुल्फ़िकार अली, 18 बरस का युवक मेडिकल कॉलेज में बेहोशी हालत में भर्ती हुआ। उसे झटके आ रहे थे। पूरे बदन में सूजन थी। उसे पेशाब नहीं हो रही थी। जांच से पता चला कि उसकी किडनी ख़राब हो चुकी थी और उसे आजीवन डायलिसिस करने की सलाह दी गई थी। वह मेडिकल कॉलेज से छुट्टी लेकर मुझसे इलाज करवाने आया। मैंने उसे किडनी प्रत्यारोपण की सलाह दी।
ज़ुल्फ़िकार तब चंद्रपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में द्वितीय वर्ष का विद्यार्थी था।
उसकी माताजी का रक्तगट मिलता जुलता था। वह किसी भी हालत में अपनी किडनी दे कर अपने एकमात्र पुत्र को बचाना चाहती थी। उसकी जांच करने पर वह किडनी दान करने के लिए उपयुक्त पाई गई।
मैं, और मेरे सहयोगी डॉक्टर विजय श्रीखंडे और डॉ अरविंद जोगलेकर ने कई अस्पतालों से संपर्क किया और म्यूर मेमोरियल अस्पताल ही किडनी प्रत्यारोपण के लिए उचित लगा।
क्योंकि यह नागपुर के लिए बहुत अहम प्रक्रिया थी इसलिए मुंबई के जसलोक अस्पताल के वरिष्ठ सर्जन डॉ श्रीराम जोशी और उनके सहयोगी इंदौर के डॉ चंद्रशेखर थट्टे इस प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए नागपुर आए। नागपुर के कुछ विशेषज्ञों ने इस प्रक्रिया में मदद की। डॉ कोठेकर, डॉ हरीश वर्भे, डॉ मदनकर, डॉ राजू खंडेलवाल तथा डॉ अभय भल्मे ने बहुत सहयोग दिया।
क्योंकि यह शस्त्रक्रिया बहुत बड़ा पहला कदम था , मन में उत्साह और आशंकाएँ दोनों थीं।
आपरेशन सफल हुआ। प्रत्यारोपित किडनी ने तुरंत काम करना शुरू किया। ज़ुल्फ़िकार को पेशाब होने लगी।
किडनी प्रत्यारोपण उन दिनों बहुत बड़ी चुनौती थी। टेलिफोन, इलेक्ट्रिक सप्लाई की समस्या तो थी ही, स्टाफ़ के लिए भी यह पहला अवसर था।
शूर मेमोरियल अस्पताल के मेट्रॉन सिस्टर रत्नम और उनकी नर्सिंग स्टाफ़ ने बहुत सहयोग दिया। मुझे बाद में मालूम चला कि सभी नर्सों ने आपरेशन के दिन ईश्वर से प्रार्थना की थी और दिन भर उपवास रखा था। इस तरह का समर्पण बिरले ही देखने मिलते हैं। हमारे इस महत्वपूर्ण कदम से मध्य भारत में किडनी प्रत्यारोपण का श्रीगणेश हुआ।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर, महाराष्ट्र
