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विवाह संस्कार के बाजारीकारण के लिए समाज खुद जिम्मेदार है : तृप्ति तिवारी


नागपुर। विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन में 'चौपाल' उपक्रम के अंतर्गत 'पवित्र विवाह संस्कार का बाजारीकरण कैसे हुआ' इस शीर्षक पर परिचर्चा का आयोजन, हिंदी मोर भवन, सीताबर्डी, नागपुर में संयोजक विजय तिवारी तथा सहसंयोजक हेमंत कुमार पांडे इनके नेतृत्व में किया गया।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि, सुश्री तृप्ति द्वारिकाप्रसाद तिवारी, शिक्षिका, केंद्रीय विद्यालय, अजनी, नागपुर व विशेष अतिथि श्रीमती हेमलता तिवारी, कोषाध्यक्ष, नारायणी शक्ति फाउंडेशन, नागपुर, उपस्थित थे।
मदन गोपाल वाजपेई ने अपने व्यक्तव्य में कहा की, आज से 40, 50 वर्ष पहले, जिस प्रकार से, गांव और शहरों में परिवार, रिश्तेदार सगे संबंधी और पड़ोसियों  के सहयोग से कम से कम खर्चे में व विधिवत संस्कारों के साथ विवाह संपन्न होते थे। 

परंतु व्यक्ति के आर्थिक स्वतंत्रता, साधन संपन्नता व तंत्र विज्ञान के विकास के साथ समाज में विवाह संस्कार में दिखावा, फिजूल खर्ची व फैशन ने जगह बना ली है, और वैदिक विवाह संस्कार के लिए लोगों के पास कम समय होता है। जिससे कि वर वधु को चकाचौंध के सिवा उनके विवाह में संपन्न हुए संस्कार की बातें याद ही नहीं रहती, नाही वे अपने अगली पीढ़ी को कुछ दे पाते हैं। इसी वजह से आज विवाह के सप्तपदी, लाजहोम, मधुपार्क, सात वचन, मंगलसूत्र धारण, सिंदूरदान, ध्रुव दर्शन दीर्घकालिक वैवाहिक संबंध का अभाव वर्तमान में देखने को मिलता है।

एडवोकेट जगत बाजपेई ने तो इससे भी आगे बढ़कर समाज में फैल रही मानसिक विकृति के बारे में बताया। जिस प्रकार से समाज के युवक युवती अपने विवाह को इवेंट की तरह पेश करने के लिए अनेक प्रकार के लोन लेते हैं, और फिर वह अपने आप को आधुनिक, विकसित व ग्लैमरस प्रस्तुत करने के लिए प्री वेडिंग शूट, डेस्टिनेशन वेडिंग, हाई प्रोफाइल लंच हाई, प्रोफाइल ड्रेस, सेलिब्रिटी की तरह इवेंट्स और अनेक प्रकार की फिजूल खर्ची के बाद, मात्र 1 घंटे की अवधि में विवाह संस्कार में भी आचार्य व पंडितों को महत्व न देते हुए, सब कुछ भूल कर वीडियो और फोटो शूटिंग में शारीरिक व मानसिक रूप से व्यस्त रहते हैं। जिसके फल स्वरुप इसके विपरीत परिणाम नवयुवक युवती के जीवन में प्रतिबिंबित होता है।

राजेश अग्रवाल ने भी समाज में फैल रहे दिखावे की होड़ को विवाह में अनावश्यक बताते हुए फिजूल खर्ची व उसके दुष्परिणाम अनेक उदाहरण दिए। साथ ही उन्होंने अन्य सामाजिक संस्थाओं द्वारा सामूहिक विवाह आयोजित करने पर जोर दिया।

श्रीमती जया धोटे आधुनिक तंत्र प्रगति बेरोजगारी व सामाजिक आर्थिक विकास का उदाहरण देते हुए, उन्होंने विवाह में होने वाले खर्चों से किस प्रकार बाजार में अनेक कामगारों, कलाकारों, प्रोफेशनल्स को काम करने के अवसर मिलते हैं व इससे सामाजिक अर्थव्यवस्था संतुलन बताते हुए, इसे आज की समाज रचना में आवश्यक बताया है।

लक्ष्मीनारायण केसर ने अपने मनोगत व्यक्त करते हुए, कहा की विवाह एक आदर्श और पवित्र संस्कार है। इसे जितना ज्यादा हो सके परिवार रिश्तेदारों के बीच में ही संपन्न करके, जो राशि शेष रह जाती है, उसे नव दंपति के जीवन में आवश्यकता पड़ने पर उनके विकास के लिए देने की सिफारिश की।

धीरज दुबे नाव आजकल के विवाह में होने वाले फूल खर्च को अनावश्यक बताया वह उससे बचने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने अनेक सामाजिक संस्थाएं जैसे कि 'आर्य समाज', गायत्री परिवार इन संस्थाओं के माध्यम से, बहुत ही सरल ढंग से विधिवत विवाह संपन्न करा कर, एक छोटे, स्वादिश्ट, स्वास्थ वर्धक, सुरुचि भोज में भी आजकल की युवा विवाह संस्कार में बंध सकते हैं व अपना जीवन और भविष्य संवार सकते हैं।
श्रीमती अंजू पांडे जो समाजसेविका है, उन्होंने भी अपने अनुभव साझा करते हुए बताया की विवाह में होने वाले अनावश्यक खर्च को देखते हुए, वस्त्र परिधान, कर्कश शोर शराबी वाले संगीत नृत्य, अतिशयोक्ति की तरह परोसे से जाने वाले भोज से बचकर एक अत्यंत सादे व सरल तरीके से विवाह को संपन्न कराने की बात पर जोर देते हुए, उन्होंने समाज की गरीब कन्याओं की विवाह में सहायता करने की सिफारिश की।
अध्यक्षीय भाषण में सुश्री हेमलता तिवारी ने पवित्र विवाह संस्कार के बाजारीकारण की समस्या के कारण व उससे होनेवाले परिणाम तथा उपाय पर चर्चा की।  

सुश्री तृप्ति द्वारिकाप्रसाद तिवारी शिक्षिका ने अहमभाव, तथा तुलना करने की वृद्धि तथा वास्तविकता से कोसों दूर, बनावटीपन तथा दिखावे को इसका मूल कारण बताया। उन्होंने बच्चों के संतुलित तथा सर्वांगीण विकास पर चर्चा करते हुए, मानव मूल्य सिद्धांतों तथा भावनात्मक विकास का महत्व स्पष्ट किया। महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित योग सूत्र में सामाजिक नियमों के संदर्भ में "यम" के अंतर्गत सत्य, अहिंसा, असतेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य के पालन की महिमा भी बताई।

कार्यक्रम के अंत डॉ. कृष्णकुमार द्विवेदी मैं अपने विचार व्यक्त करते हुए सभी अतिथियों का व श्रोताओं का आभार प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में सफल बनाने में सर्वश्री डॉ. सौरभ शुक्ला, पत्थरकीने, अम्बरीष दुबे, पद्मदेव दुबे, जगत बाजपेई, हृदय चक्रधर, राजेश, ए जी मिले, गणेश सिंह ठाकुर, शत्रुघ्न तिवारी, सचिन शुक्ला, जयशंकर तिवारी, रविंद्र सिंह, सिद्धार्थ साखरे, भोजराज, डॉक्टर बच्चू पांडे इन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया।
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